Free Hindi Book Awara Bheed Ke Khatare In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
हरिशंकर परसाई देश के जागरूक प्रहरी रहे हैं-ऐसे प्रहरी, जो खाने और सोने वाले तृप्त आदमियों की जमात में हमेशा जागते और रोते रहे। उनकी रचनाओं में जो व्यंग्य हैं, उसका उत्प्रेरक तत्त्व यही रोना है। रोने वाले हमारे बीच बहुत हैं। कहते हैं कि रोने से जी हलका होता है। वे जी हलका करते हैं और फिर रोते हैं। झरना बन जाता है उनका मानस। उनकी शोकमग्नता आत्मघाती भी होती है।
जनभाषा में एक कवि कबीर है, जिसने राह के बटमारों की गतिविधियों को खूब पहचाना। उसने जासूसी की। कपट को पारदर्शी आँखों से चीरने का काम उसने जीवनपर्यन्त किया। ऐसा ही दूसरा लेखक उसकी बिरादरी में हुआ परसाई।
हिन्दी में अनेक तृप्त लेखक हैं जो उसके कृतित्व को लेखन की श्रेणी में नहीं मानते। पत्रकार कहते हैं। भाषा के खुरदरेपन से चिढ़ है। आन्तरिक लोक के कुहरे से वे कुछ अलौकिक रत्न लाते हैं। उनकी भाषा में विशेष प्रकार की दूरी होती है।
हरिशंकर परसाई का लेखन लेखकों की जमात में शामिल होने का नहीं है, उनकी जमात असंख्य जनता है। उन्होंने जनता के लिए केवल साहित्य की चर्चा नहीं की। उन्होंने जनता की गरीबी, सामाजिक विसंगतियाँ और विपदाएँ देखीं। सामाजिक चिन्तन की पृष्ठभूमि में अपनी संवेदना की दिशा तय की। अनियंत्रित और अनिर्दिष्ट संवेदना से दान-पुण्य के मूल्यों में भले वृद्धि हो, पर जनतंत्र के सामाजिक मूल्य उससे नहीं बनते। परसाई के लेखन की यही सारवस्तु है।
हरिशंकर की मनोरचना विचारक की है। वे इस दृष्टि से बहुज्ञ हैं। सहज भाषा में विचारों के भार को हलका कर वे निबन्ध लिखते रहे हैं। इस पुस्तक में इसी तरह के निबन्ध हैं। परसाई जी विचारों को व्यवहार की आँख से देखते हैं, इसीलिए उनका निरूपण विश्वसनीय है। सिद्धान्तों की व्यर्थता, समाजवाद और धर्म, महात्मा गांधी से कौन डरता है, स्वस्थ सामाजिक हलचल और अराजकता, भारतीय गणतंत्र- आशंकाएँ और आशाएँ, आचार्य नरेन्द्रदेव और समाजवादी आन्दोलन, धर्म, विज्ञान और सामाजिक परिवर्तन विचार-मंथन के लेख हैं।
मंथन की प्रक्रिया में परसाई उन लोगों पर गहरी निगाह रखते हैं जो उन सिद्धान्तों के प्रवक्ता हैं। उनके यहाँ अन्तर्विरोधों की पड़ताल निर्मम होती है। अपने समय की ज्वलन्त समस्याओं के प्रति शासन, स्वयंसेवी संस्थाओं, राजनीतिक दलों का जो नकली रवैया रहा आया है, उसकी फोटोग्राफी स्वतंत्र भारत में इतनी संजीदगी के साथ और कहाँ है? धर्म के नकली रूप ने साम्प्रदायिकता विकसित की, राजनीति के दुरुपयोग ने भ्रष्टाचार और विज्ञान के दुरुपयोग ने उपभोक्तावाद और यंत्रवाद बढ़ाया। इससे धर्म, राजनीति और विज्ञान बदनाम हुए।
हरिशंकर परसाई समाज की पटरी से उतरती गाड़ी को सीधे रास्ते में लाने का प्रयत्न करते हैं। भ्रम और शक्तिशाली माया जाल पर तीखे प्रहार करने का साहस परसाई के लेखन में निरन्तर मौजूद है। अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक, राजनीतिक और सामाजिक सन्दर्भों की पहचान के भरोसे परसाई के निबन्धों में लोकव्याप्ति का गुण पाया जाता है। खूबी यह है कि वस्तु और भाषा की सार्थक एकता के लिए परसाई बेमिसाल हैं।
निबन्धों का यह संग्रह परसाई जी की मृत्यु के बाद प्रकाशित हो रहा है। पुस्तकों की भूमिकाएँ उन्होंने हमेशा छोटी-छोटी लिखी हैं। आलोचकों या समृद्ध पुरुषों से उन्होंने भूमिकाएँ नहीं लिखवाईं। पहली पुस्तक 'हँसते रोते हैं' में भी यह नहीं किया। उनके पाठकों का दायरा इतना व्यापक है कि इसका आकलन करना सम्भव नहीं है। पाठकों की ही ताकत है, जिसके बल पर उनका लेखन स्थापित है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | आवारा भिड़ के खतरे | Awara Bheed Ke Khatare |
| Author: | Harishankar Parsai |
| Total pages: | 159 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 3 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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