कसप | KASAP HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

उपन्यास में जहाँ भी कुमाऊँनी शब्दों का प्रयोग हुआ है उनका अर्थ वहीं दे दिया गया है। इसके कुछ संवादों में जो कुमाऊँनी हिन्दी प्रयुक्त हुई है वह पाठक को थोड़े अभ्यास से स्वयं समझ आ जायेगी। यह हिन्दी, कुमाऊँनी का ज्यों-का-त्यों अनुवाद करते चलने से बनती है और कुमाऊँ में इसी का आम तौर से व्यवहार होता है। इस कुमाऊँनी हिन्दी के कुछ विशिष्ट प्रयोग समझ लेना आवश्यक है।

'कहा', 'बल' वाक्य के अन्त में आया 'कहा' अतिरिक्त आग्रह का सूचक है - 'बहुत सुन्दर दिखती है, कहा' का मतलब है, 'मैं कह रही हूँ वह बहुत सुन्दर दिखती है।' वाक्य के अन्त में आया 'बल' (बोला) इंगित करता है कि ऐसा किसी और ने कहा, ऐसा हमने किसी और से सुना। 'बड़ी सुन्दर दिखती है, बल।' का मतलब है 'सुना, बहुत सुन्दर दिखती है।' 'मैं नहीं खाता, बल।' का मतलब है 'उसने कहा है कि मैं नहीं खाऊँगा।'

ठहरा : हिन्दी में 'आप तो अमीर ठहरे' जैसे प्रयोग हो सकते हैं। कुमाऊँनी हिन्दी में होते ही नहीं, धड़ल्ले से होते हैं। कुमाऊँनी में 'भया' और 'छ' दोनों से क्रिया-पद बनते हैं लेकिन 'भया' को अधिक पसन्द किया जाता है और कुमाऊँनी हिन्दी में उसे 'ठहरा' अथवा 'हुआ' का रूप दिया जाता है। 'तू तो दीदी पढ़ी-लिखी हुई', 'आप तो महात्मा ठहरे।' जैसे प्रयोग कुमाऊँनी हिन्दी को विशिष्ट रंग देते हैं।

वाला ठहरा : कुमाऊँनी और कुमाऊँनी हिन्दी में 'करता था' कहा जा सकता है किन्तु इस तरह का 'अतीत' भयंकर रूप से अतीत सुनायी पड़ता है। अतएव 'छी' की जगह 'भयो' का सहारा लिया जाता है और 'भयो' का 'वाला ठहरा' अथवा 'वाला हुआ' के रूप में अनुवाद किया जाता है। यथा कुमाऊँनी हिन्दी में 'वह हमसे मिलने आता था' या 'मिलने आया करता था' को 'वह हमसे मिलने आनेवाला ठहरा' 'वह हमसे मिलने आनेवाला हुआ' कहा जायेगा। स्वाभाविक ही है कि इस आग्रह के चलते कुमाऊँनी हिन्दी में 'वाला' और 'ठहरा' की भरमार है। मूल कुमाऊँनी में क्रिया के साथ 'एर' जोड़ देने से 'वाला' का भाव पैदा करने की प्रीतिकर परम्परा है यथा 'करणेर' माने 'करनेवाला', 'जाणेर' माने 'जानेवाला'।

'जो' : इस हिन्दी शब्द का कुमाऊँनी हिन्दी में कई तरह से उपयोग किया जाता है: 'अगर' के अर्थ 'जो तो तुझे जल्दी हो, चला जा'। 'मैं तो नहीं' के अर्थ में- 'जो करेगा तेरी खुशामद !' 'पता नहीं कौन' के अर्थ में 'जो कर जाता होगा यह तोड़-फोड़।' 'थोड़े ही' और उसके कुमाऊँनी समानार्थी 'क्या' को अतिरिक्त बल देने के लिए- 'मैं जो थोड़ी हूँ तेरा यार।' 'ऐसा जो क्या।' 'तो' के अर्थ में- 'क्या जो कह रहा था वह?'

हैं, है, हूँ आदि का लोप: 'रुक, मैं भी आ रही।' अर्थात्, 'रुक, मैं भी आ रही हूँ।'

प्रश्नवाचक में क्रियापद 'रहा है' का 'हुआ है' की तरह उपयोग 'सच्ची, तुम्हारे वहाँ वह मूँछवाला कौन आ रहा है?' अर्थात्, 'सच, तुम्हारे वहाँ मूँछवाला कौन आया हुआ है?'

प्रश्नवाचक में वर्त्तमान के क्रियापद से तुरन्त भविष्य का बोध : 'यह लड्डू खाता है?' अर्थात् 'यह लड्डू खायेगा?' 'कैसा करता है?' अर्थात् 'क्या करने का इरादा है?'

प्रश्नवाचक में भविष्य के क्रियापद से वर्त्तमान के विस्मय का बोध : 'इतनी रात गये कौन आ रहा होगा?' अर्थात् 'इतनी रात गये कौन आया है?'

'फिर' : 'तब', 'क्या' और 'तो' के अर्थ में भी 'फिर' का उपयोग किया जाता है। यथा 'फिर क्या करती में!' 'मैंने दिये उसे पैसे, फिर!' 'क्या खाता है फिर?'

'देना' : कर देना, बता देना जैसे प्रयोग हिन्दी में भी होते हैं किन्तु कुमाऊँनी हिन्दी में यह 'देना' कभी पूरी गम्भीरता से, कभी परिहास में हर क्रिया के साथ भिड़ाया जा सकता है- 'मेरे साथ आ देता है?' अर्थात् 'मेरे साथ चले चलोगे?' 'मेरा सिर खा देता है?' अर्थात् 'मेरा सिर खाने की कृपा तो करोगे?'

भाववाचक संज्ञाएँ : कुमाऊँनी में 'ओल', 'एट', 'एन' प्रत्यय लगाकर संज्ञाओं और क्रियाओं में भाववाचक संज्ञाएँ धड़ल्ले से बनायी जाती हैं। 'कुकुर' में 'ओल' मिलाकर 'कुकर्योल' बनेगा जिसका अर्थ होगा 'कुत्तागर्दी'। 'पगल' मैं 'एट' मिलाकर 'पगलेट' बनेगा जिसका अर्थ होगा 'पागलपन'। जलने और भुनने में 'एन मिलाने से 'जलैन' और 'भुनैन' बनेंगे जिनका अर्थ होगा जलने की गन्ध, भुनने की गन्ध।

'और ही' : इसका प्रयोग 'बहुत ज्यादा', 'विशिष्ट प्रकार की' का बोध कराने के लिए होता है- 'और ही बास आ रही थी, कहा!' अर्थात् 'भयंकर बदबू आ रही थी।'

आप ही: जब कुमाऊँनी हिन्दी में कहा जाता है 'आप ही रहा' तो उसके मतलब होते हैं इसे 'अपने आप रहने दो' यानी 'रहने दो'। यथा 'आप ही जाता है।' का अर्थ है 'जाने दो उसे !'

घरेलू नाम : स्त्रियों के नाम के संक्षिप्त रूप में 'उली' और पुरुषों के संक्षिप्त नाम में 'इया' या 'उवा' लगाकर लाड़-भरे घरेलू नाम बनते हैं। 'सुबली' माने सावित्री, 'सरुली' माने सरोज, 'परुली' माने पार्वती, 'रधुली' माने राधा आदि। देवीदत्त से 'देबिया', हरिश्चन्द्र से 'हरिया', प्रेमवल्लभ से 'पिरिया', रघुवर से 'रघुवा' आदि। नामों के आगे 'औ' लगा देने से भी प्यार-भरे सम्बोधन का आभास मिलता है- 'पुरनौ' माने 'रे पूरन !'

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:कसप | Kasap
Author:Manohar Shyam Joshi
Total pages:290
Language: हिंदी | Hindi
Size:2.3 ~ MB
Download Status:Available


Kasap written by Manohar Shyam Joshi | Ebook size 2.3 MB | Includes 290 Pages | Find the free PDF download link of “Kasap” below and read it right away.

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