Free Hindi Book Ret Ki Machhli In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
"रेत की मछली" की संक्षिप्त सारांश (Short Summary in Hindi):
"रेत की मछली" कांताभारती (Kanta Bharti) का लिखा हुआ चर्चित हिंदी उपन्यास है।
कांताभारती दलित चेतना से जुड़े महत्वपूर्ण साहित्यकार माने जाते हैं। उनके लेखन का केंद्र दलित समाज का जीवन, संघर्ष, शोषण और अस्मिता है। "रेत की मछली" में उन्होंने हाशिए पर जी रहे समाज की पीड़ा, सामाजिक अन्याय और जातिगत भेदभाव को गहराई से प्रस्तुत किया है।
उपन्यास की विशेषताएँ
- यह उपन्यास दलित जीवन की वास्तविकता को उजागर करता है।
- इसमें रेत और मछली का प्रतीकात्मक प्रयोग है – रेत में मछली का जीना असंभव है, उसी तरह जातिगत ढांचे में दलितों का सहज जीवन जीना कठिन बना दिया गया है।
- उपन्यास की भाषा सरल और संवेदनशील है, जिससे पाठक सीधा जुड़ाव महसूस करता है।
- यह सिर्फ पीड़ा का चित्रण नहीं करता, बल्कि प्रतिरोध और बदलाव की चेतना भी पैदा करता है।
महत्व
"रेत की मछली" को हिंदी दलित साहित्य की एक सशक्त कृति माना जाता है। यह न सिर्फ साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी परिवर्तन की चेतना जगाती है।
कथा-सार : रेत की मछली (कांताभारती)
यह उपन्यास दलित समाज के जीवन-संघर्ष और उनकी अस्तित्व-यात्रा की कहानी है। कांताभारती ने इसमें दलितों की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक दशा का यथार्थ चित्रण किया है।
1. प्रतीकात्मक शीर्षक
- मछली पानी में जीती है, पर अगर उसे रेत में डाल दिया जाए तो उसका जीवित रहना असंभव हो जाता है।
- इसी प्रकार दलित समाज को भी उस व्यवस्था में जीना पड़ता है जहाँ उनकी स्वाभाविक जीवन-स्थितियाँ छीन ली गई हैं।
2. मुख्य कथावस्तु
- उपन्यास में एक दलित परिवार और उसके आस-पास का समुदाय केंद्र में है।
- जातिगत भेदभाव, गरीबी, बेरोज़गारी और अपमानजनक परिस्थितियों में जीते हुए भी वे सम्मान और पहचान की तलाश करते हैं।
- समाज उन्हें बार-बार “रेत में मछली” की तरह दम तोड़ने पर मजबूर करता है।
3. संघर्ष और पीड़ा
- दलित पात्र रोज़मर्रा की जिंदगी में शोषण, बहिष्कार और दमन का सामना करते हैं।
- शिक्षा और रोज़गार पाने में उन्हें भेदभाव झेलना पड़ता है।
- गाँव-समाज में उनकी स्थिति दोयम दर्जे की बनी रहती है।
4. प्रतिरोध और चेतना
- उपन्यास केवल पीड़ा का चित्रण नहीं करता, बल्कि यह बताता है कि दलित समाज चुप नहीं रहेगा।
- पात्र अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं और सामाजिक बदलाव की चेतना जगाते हैं।
- यह उपन्यास “बेबस मछली” से आगे बढ़कर संघर्षरत मछली की तस्वीर प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष
“रेत की मछली” दलित साहित्य का एक प्रभावशाली और मील का पत्थर उपन्यास है। इसमें दलित जीवन की असंभव-सी प्रतीत होने वाली परिस्थितियों को सामने लाकर यह संदेश दिया गया है कि बदलाव कठिन ज़रूर है, लेकिन असंभव नहीं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | रेत की मछली | Ret Ki Machhli |
Author: | Kanta Bharti |
Total pages: | 146 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 47.4 ~ MB |
Download Status: | Available |

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