Free Hindi Book Tum Pehle Kyun Nahi Aaye In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
किताब: Tum Pahle Kyon Nahi Aaye (कहानी संग्रह)
लेखक: कैलाश सत्यार्थी
ISBN: 978-93-94902-86-2
प्रकाशक: राजकमल पब्लिशिंग
कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को विदिशा, मध्य प्रदेश में हुआ। उन्होंने भोपाल विश्वविद्यालय (अब बरकतुल्ला विश्वविद्यालय) से बी.ई. किया तथा ट्रांसफॉर्मर डिज़ाइन में मास्टर्स डिप्लोमा प्राप्त किया। किशोरावस्था से ही वे सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध मुखर रहे — छुआछूत, बाल-विवाह और बाल मजदूरी के खिलाफ उनका सतत संघर्ष रहा है।
1981 से आज तक उनकी अगुवाई में ढाई लाख से अधिक बच्चों को बाल-मज़दूरी और गुलामी से मुक्त कराया गया है। जोखिमभरी छापामार कार्रवाइयों के दौरान उन्हें कई बार जानलेवा हमलों का सामना करना पड़ा। 1998 में उन्होंने 'बालश्रम-विरोधी विश्वयात्रा' आयोजित की, जो 103 देशों से होकर गुज़री और लगभग छह माह चली। इस अभियान के प्रभाव से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल-श्रम रोकने वाले कानून बने और कई देशों ने उन्हें लागू किया।
विश्वभर के बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए 1999 में उन्होंने 'ग्लोबल कैंपेन फ़ॉर एजुकेशन' प्रारम्भ किया। शिक्षा को मूल अधिकार बनाने के लिए 2001 में वे 'भारत यात्रा' पर निकले — परिणामस्वरूप संविधान संशोधन हुआ और 'Right to Education' (शिक्षा का अधिकार) क़ानून लागू हुआ। 2017 में बाल-यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ उन्होंने 11,000 किलोमीटर की 'भारत यात्रा' की, जिसने यौन अपराधों के लिए कड़े कानून बनाए जाने को प्रेरित किया।
बाल मजदूरी और मानव-दुर्व्यवहार रोकने के लिए उन्होंने मुक्ति आश्रम, बाल आश्रम और बालिका आश्रम स्थापित किए, जहाँ पुनर्वास, शिक्षा और नेतृत्व विकास पर विशेष काम होता है। उनके मानवीय योगदान के लिए उन्हें 2014 में नोबेल शान्ति पुरस्कार सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले — जैसे 'रॉबर्ट एफ़. कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवार्ड', 'हार्वर्ड ह्यूमनिटेरियन अवार्ड', 'मेडल ऑफ़ इटैलियन सीनेट' और 'Defenders of Democracy Award'। कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद पीएचडी से सम्मानित किया है।
इस किताब में प्रस्तुत कहानियाँ लेखक के वर्षों के अनुभवों पर आधारित दस्तावेज़ हैं — वे उन बच्चों की जिंदगियाँ हैं जिनकी पीड़ा ने लाखों बच्चों की बेड़ियाँ तोड़ीं। ये कहानियाँ पत्थर व अभ्रक की खानों, ईंट-भट्ठों, क़ालीन कारखानों, सर्कस, खेतिहर मजदूरी, जबरिया भिखमंगी, बाल विवाह, ट्रैफिकिंग, यौन उत्पीड़न, घरेलू बाल मजदूरी और नरबलि जैसी सामाजिक विसंगतियों का सशक्त चित्र देती हैं।
पुस्तक में शामिल कुछ कहानी शीर्षक हैं: "ईश्वर की ग़लती की सज़ा", "मुझे क्यों", "तुम पहले क्यों नहीं आए", "एक-एक करके खुलते बंद दरवाज़े", "दो रसगुल्ले", "अब्बू के लिए क्या", "अमेरिकी राष्ट्रपति होना ज़रूरी है?", "ख्वाहिशों की छलाँगें", "मुझे मोम की गुड़िया मत समझना", "क्या मैं अभी भी बच्ची हूँ?", "तबेले में तेरह गाय-भैंसों के साथ चौदहवाँ मैं", "मुझे बचा ले भैया जी!", "एक थी सुल्ताना", "एक ज़िंदा दोस्त की क़ब्र पर" और परिशिष्ट: "बच्चों का शोषण कैसे रोकें"।
भूमिका में लेखक बताते हैं कि ये कहानियाँ उनके हृदय-पटल पर चालीस वर्षों की देन हैं — केवल लिखे शब्द नहीं, बल्कि वे आवाज़ें हैं जो अदृश्यता से बाहर आईं। ये कहानियाँ अँधेरों पर रोशनी, निराशा पर आशा, अन्याय पर न्याय और क्रूरता पर करुणा की जीत का संदेश देती हैं। लेखक ने अधिकतर बच्चों को बड़ा होते देखा है और उनके साथ बिताए अनुभवों से मिली सीखें साझा की हैं।
यह संग्रह न केवल पाठक को भाव-विभोर करता है, बल्कि बाल-श्रम, बाल-दुरुपयोग और मानव तस्करी जैसे मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए उपयोगी संसाधन भी है। शोध, NGO काम और शिक्षा नीति से जुड़े पाठकों के लिए यह पुस्तक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रस्तुत करती है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | तुम पहले क्यों नहीं आए | Tum Pehle Kyun Nahi Aaye |
Author: | Kailash Satyarthi |
Total pages: | 151 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 2.5 ~ MB |
Download Status: | Available |

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