भूतिया जहाज | BHUTIA JAHAJ HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

'बेरे' वाली लड़की

फिर उस लड़की को देखा।

उस वक्त रात के ठीक बारह बज रहे होंगे।

ऊपर की डेक पर अभी तक रेलिंग के किनारे खड़े होकर हिन्द महासागर की रात की शोभा देख रहा था।

'मिड्ल वाच' यानि जहाज के माल का पहरा शुरू होता है ठीक रात के बारह बजे।

मिड्ल वाच का घण्टी तब तक नहीं बजी थी, फिर भी, बारह बजने में ज्यादा-से-ज्यादा मिनट भर का समय बाकी रहा होगा- यह बात मैं सेकेण्ड मेट ऑगडेन को डेक पर आते देख दावे के साथ कह सकता था।

सेकेण्ड मेट की हैसियत से ऑगडेन पर ही मिड्ल वाच की जिम्मेवारी थी। वे इन्सान नहीं, यंत्र थे मानो। घड़ी की सूईयों की तरह उनकी सारी गतिविधियाँ हुआ करती थीं। सिर्फ गतिविधियाँ ही घड़ी की सूईयों-जैसी नहीं थीं, बल्कि जहाज की हर छोटी-बड़ी बातों का उन्हें चलता-फिरता विश्वकोश और गणितशास्त्र कहा जा सकता था। समुद्र जब घने कोहरे से ढका होता था, आकाश में एक भी तारा नहीं दिखता था, तब भी वे अक्षांश-देशान्तर देखकर जहाज के अवस्थान के बारे में सटीक रूप से बता सकते थे। हिन्द महासागर पर जहाज में तैरते हुए ही सुदूर चीन के शंघाई में कब चाँद उगा है और उत्तरी ध्रुव अँचल का स्पिटबर्जन सागर कब से जम जाता है- वे बता सकते थे। ऐसे तो ऑगडेन सीधे-सरल व्यक्ति थे, सिर्फ एक मामले में उनका रौद्र रूप कभी-कभी देखने मिलता था। जहाज के कम्पास के आस-पास यदि कोई नाविक अगर गलती से चाकू, कैंची वगैरह छोड़ जाय, तो फिर उसकी शामत आ जाती थी। क्रोधाग्नि से दहकते ऑगडेन का चेहरा देखने के साथ एक दुर्भेद्य रहस्य का समाधान देखने का सौभाग्य मुझे इस यात्रा में प्राप्त होगा- ऐसा मैंने सोचा भी नहीं था।

मुझे गुड नाईट कहते हुए ऑगडेन के आगे बढ़ जाने के बाद केबिन में लौटने के लिए मैंने कदम बढ़ाये।

ऊपर की डेक से केबिन को जाने वाली सीढ़ियों के पास पहुँचते ही मुझे ठिठककर रूक जाना पड़ा। सीढ़ियों नीचे की डेक के कॉरीडोर तक जाती थीं। उस कॉरीडोर के बगल में ही हमारा केबिन था। कॉरीडोर प्रायः अन्धेरे में डूबा हुआ था। उस धुंधली रोशनी में ही लड़की को तेज कदमों से कॉरीडोर के दूसरे किनारे की ओर जाते हुए देखा।

ठिठका रहा मैं पल भर के लिए ही, उसके बाद जो होगा देखा जायेगा वाले मनोभाव के साथ मैं सीढियाँ उतर गया।

लेकिन कहाँ वह लड़की! कॉरीडोर का पूरा चक्कर मैं एक बार लगा आया। इस डेक पर मात्र दो प्रथम श्रेणी के केबिन थे। उनमें से एक में हम लोग और दूसरे में स्वयं कैप्टन रह रहे थे। कॉरीडोर समाप्त हो रहा था नीचे जहाज के खोल में उतरने वाली सीढ़ियों के पास। वहीं पर माल-असबाब रखने के गुदाम से लेकर इंजनघर तक तथा नाविकों के रहने की जगह थी। किसी महिला के लिए वहाँ छुपकर रहना असम्भव था!

जबकि छुपकर न रहने पर यह नारी इस जहाज में रहती कैसे थी! दो दिनों पहले जहाज के बन्दरगाह छोड़ने के बाद ही उस दिन ऐसी ही आधी रात के वक्त लड़की को उसी नीचे वाले कॉरीडोर में देखा था। उस दिन ऊपर वाली डेक से मैं नीचे नहीं उतर रहा था, बल्कि रात में नीन्द न आने के चलते ऊपर वाली डेक पर जाने के लिए केबिन से बाहर निकल रहा था। दरवाजा खोलते ही कॉरीडोर के दूसरे किनारे पर उस लड़की को देखा था। मुझे देखते ही लड़की सीढ़ियों से नीचे खोल में उतर गयी थी।

इस जहाज में तब मैं सवार हुआ ही था, यात्री और कौन-कौन हैं नहीं जानता था। इसलिए मैं हैरान तो नहीं हुआ था, पर थोड़ा अटपटा लगा था। यह जहाज माल ढोने वाला मामूली ट्रैम्प स्टीमरराग था, आम तौर पर इनमें यात्री नहीं होते। बन्दरगाह पर जहाज में सवार होते समय किसी महिला यात्री को तो कम-से-कम नहीं ही देखा था।

इस बात को उठाने के लिए ही मैंने कैप्टन से पूछा था कि इस जहाज में और कोई यात्री है या नहीं।

"और कोई यात्री!" कैप्टन डिग्बी ने आश्चर्य के साथ कहा था, "और कोई यात्री कहाँ से आयेगा? इस जहाज में यात्री-केबिन तो मात्र एक ही है, जिसमें आप लोग हैं।"

"नहीं" थोड़ा झेंपते हुए मैंने कहा था, "मेरा मतलब फर्स्ट क्लास के अलावे किसी और क्लास के यात्री तो हो सकते हैं न?"

"नहीं जनाब, नहीं!" डिग्बी ने कहा था, "फर्स्ट सेकेण्ड किसी भी क्लास का कोई केबिन और नहीं है। हमारे इस जहाज में यात्री लिये ही नहीं जाते। बड़ी लाईन के बढ़िया जहाजों के रहते इस रद्दी जहाज में यात्रा करना चाहेगा भी कौन? सिर्फ आप लोगों के.......

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:भूतिया जहाज | Bhutia Jahaj
Author:Premendra Mitra
Total pages:21
Language: हिंदी | Hindi
Size:0.8 ~ MB
Download Status:Available


Bhutia Jahaj written by Premendra Mitra | Ebook size 0.8 MB | Includes 21 Pages | Find the free PDF download link of “Bhutia Jahaj” below and read it right away.

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