Free Hindi Book Shyamakali Mahavidya In Pdf Download
All New hindi book pdf free download, श्यामाकाली महाविद्या | Shyamakali Mahavidya download pdf in hindi | Goswami Prahallad Giri Books PDF| श्यामाकाली महाविद्या, Shyamakali Mahavidya Book PDF Download Summary & Review.
पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
प्रस्तुत ग्रन्थ श्रीश्यामाकाली महाविद्या की उपासना का एक सम्पूर्ण निर्देशक है। श्रीश्यामाकाली महाविद्या की उपासना 'श्रीविद्या' के अन्तर्गत निरूपित है। इसमें श्रीयन्त्रात्मक श्रीश्यामाकाली यन्त्र की अर्चना की जाती है और इस पीठ रूपी यन्त्र की अधिष्ठात्री पीठशक्ति श्रीश्यामाकाली है। श्रीदक्षिणामूर्त्ति 'शिव' ही गुरु हैं; श्रीश्यामाकाली महाविद्या का शान्तात्मक बीजरूपी पारम्परिक मन्त्र ही 'श्रीश्यामाकाली-महाविद्या-मन्त्र' है तथा श्रीश्यामाकाली महाविद्या ही 'देवता' है। ग्रन्थ के दो खण्ड हैं- ज्ञानखण्ड तथा सपर्याखण्ड। 'ज्ञानखण्ड' में श्रीविद्यात्मिका श्रीश्यामाकाली महाविद्या के पारम्परिक अत्यन्त गूढ़ रहस्यों का निरूपण सरल भाषा में किया गया है; जबकि 'सपर्याखण्ड' के अन्तर्गत अपने आप दीक्षित होने की विधि, पूजाविधि तथा वन्दना का निरूपण हुआ है। 'कालजयी' बनाने की यह एक सम्पूर्ण पद्धति है। ग्रन्थ का मूल संस्कृत तथा अनुवाद हिन्दी भाषा में निरूपित है। यह संस्करण श्रीविद्या के अन्तर्गत श्रीश्यामाकाली महाविद्या की पारम्परिक उपासना का अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ रत्न है।
Introduction
जगतका सर्वश्रेष्ठ प्राणी है 'मानव'। मानव हीं एक ऐसा व्यक्ति है जो कि सब कुछ करनेके लिए समर्थ है। उसमें ऐसी क्षमता विद्यमान है जिससे कि वह 'प्रकृति' पर भी नियन्त्रण पानेमें सफल हो सकता है। उसके पास 'विवेक' नामका एक ऐसा विलक्षण साधन है जिसका कि वह प्रारम्भिक रूपसे प्रयोग करके पदार्थको पहचान लेता है और उसके बाद बुद्धिके द्वारा एक निर्णयात्मक विचारको सुनिश्चित कर लेता है। उसी निर्णयात्मक विचारसे व्यक्ति अपने प्रयोजनकी सिद्धिके लिए तदनुकूल प्रक्रियाको अपनाते हुए भिन्न-भिन्न साधन तथा शक्तियोंका आश्रय लेता है। विकेन्द्रित शक्तियोंके कारण व्यक्ति अपने कार्यमें सफलताको प्राप्त नहीं कर पाता है अतः वह किसी निर्देशकके पास जाकर उसके उपायकी जिज्ञासा करता है। ऐसा निर्देशक 'गुरु' के रूपमें समाजमें मान्य होता है। 'गुरु' जिस ज्ञान तथा उपायसे 'गुरुता'को प्राप्त है उसीको प्राप्त करने हेतु निर्देश देता है। गुरु सर्वप्रथम विकेन्द्रित शक्तियोंको केन्द्रीभूत करता है। यह केन्द्रिीभूत शक्ति ही 'श्री' है और इसके ज्ञानको 'श्रीविद्या' कहते है। यही केन्द्रिीभूत एकमात्र शक्ति 'श्री' प्रयोजनवश दश बिन्दुओंमें कलात्मरूपसे 'महाविद्या' के रूपमें आविर्भूत होती है। 'महाविद्या' बिन्दुमें अवस्थित होनेके कारण 'शिव-शिवात्मक समरसाकारताको प्राप्त करती है।
महाविद्याएँ दश हैं। वे हैं-१. श्यामाकाली, २. तारा, ३. षोडशी, ४. भुवनेश्वरी, ५. भैरवी, ६. छिन्नमस्ता, ७. धूमावती, ८. बगलामुखी, ९. मातङ्गिनी तथा १०. कमला।
श्रीश्यामाकाली 'प्रथमा' महाविद्याके रूपमें सर्वोच्च स्थान पर आसीन है। इसकी उपासनासे साधक 'काल' पर विजय प्राप्त कर लेता है और तदनुसार वह 'चन्द्राकृष्टि' तथा 'सूर्याकृष्टि' में सफल हो जाता है। ऐसा कालजयी व्यक्ति सब कुछ करनेमें समर्थ होता है। उसके सारे प्रयोजन अनायास ही सिद्ध होते जाते हैं। इसलिए तो दश महाविद्याओंमें श्रीश्यामाकालीको महाविद्याके रूपमें प्रथम स्थान प्राप्त है। श्रीश्यामाकाली महाविद्याके साधककी वाणी सदैव फलवती होती है। ऐश्वर्य तो उसकी इच्छामात्रसे उसे प्राप्त हो जाते हैं; बल्कि ऐसा साधक सर्वोच्च सत्ता पर भी आसीन हो जाता है।
श्रीश्यामाकाली महाविद्याका यन्त्र-श्रीश्यामाकाली महाविद्याकी उपासना 'श्रीविद्या' के अन्तर्गत की जाती है। 'श्रीविद्या' की उपासनाका सर्वश्रेष्ठ साधन है 'श्रीयन्त्र'। श्रीविद्याकी अङ्गमहाविद्या होनेके कारण श्रीश्यामाकाली महाविद्याका यन्त्र दशचक्रात्मक 'श्रीयन्त्र' है। दश चक्र हैं-१. त्रैलोक्यमोहनकर 'चतुरस्र' चक्र, २. त्रैवर्गसाधनकर 'त्रिवृत्तक' चक्र, ३. सर्वाशापरिपूरक 'षोडशदल' चक्र, ४. सर्व-सङ्क्षोभणकर 'अष्टदल' चक्र, ५. सर्वसौभाग्यदायक 'चतुर्दशार' चक्र, ६. सर्वार्थसाधक 'बहिर्दशार' चक्र, ७. सर्वरक्षाकर 'अन्तर्दशार' चक्र, ८. सर्वरोगहर 'अष्टार' चक्र, ९. सर्वसिद्धिप्रद 'त्रिकोण' चक्र तथा १०. सर्वानन्दमय 'बिन्दु' चक्र। 'श्रीयन्त्र' के अन्तर्गत नौ त्रिकोण होते हैं। इसलिए इसे 'नव-त्रिकोणात्मक' चक्र कहते हैं। इसके ऊर्ध्वाग्र कोणवाले चार त्रिकोण शिवात्मक हैं तो अन्य अधोऽग्र कोणवाले पाँच त्रिकोण शक्त्यात्मक हैं। इस प्रकार 'श्रीयन्त्र' शिव-शिवात्मक यन्त्रके रूपमें प्रसिद्ध है।
श्रीयन्त्रात्मक श्रीश्यामाकाली महाविद्याके यन्त्रकी अधिष्ठात्री पीठशक्ति श्रीश्यामाकाली महाविद्या 'देवता' है। यह श्रीयन्त्रात्मक सभी फलोंको देनेमें समर्थ है। यह एक ही महाविद्या भिन्न-भिन्न प्रयोजनवश भिन्न-भिन्न रूपात्मक होनेके कारण आद्याकाली, दक्षिणकाली, गुह्यकाली, भद्रकाली, श्मशानकाली, महाकाली, सिद्धकाली आदि नामोंसे जानी जाती है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | श्यामाकाली महाविद्या | Shyamakali Mahavidya |
Author: | Goswami Prahallad Giri |
Total pages: | 366 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 103 ~ MB |
Download Status: | Available | Rare |

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