Free Hindi Book Manke Mere Man Ke In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
सुखद अनुभूति मिश्रित अत्यंत हर्ष का पल है यह मेरे लिए कि एक लंबे अंतराल के बाद आज फिर उपस्थित हूँ आप जैसे सहृदय, सुविज्ञ, सुधीजनों के समक्ष अपने रिदय से उद्भूत भाव सुमनों से गढ़ा प्यारा-सा गुलदस्ता लिए। अत्यंत विनम्र भाव से आपको सौंपती हूँ, माला के मनके से पावन अपने मन के सहज स्वतःस्फूर्त ये कोमल उद्गार, पृष्ठों के इन नेहभीने धागों में गूंधकर, इस विश्वास के साथ कि इनसे गढ़ा गया मनके रूपी गीतों का ये नवल-धवल हार आपके हृदय को थोड़ा-बहुत तो अवश्य स्पर्श कर पाएगा। साथ ही समय की कठिनताओं, विद्रूपताओं का शमन करने, लक्ष्य सिद्धि के मार्ग पर निरंतर अग्रसर रहने, आत्मनिर्भर बनने, मन को शांत-निर्मल-निर्विकार बनाने, जीवन को उसके सहज-सरल रूप में हृदयंगम करने, कुदरत के जड़-चेतन सभी अवयवों के प्रति आत्मिक सौहार्द व औदार्य भाव बनाए रखने एवं अपने गौरवशाली अतीत को याद करते हुए देश प्रेम के भाव को हृदयंगम करने में बहुत अधिक भी नहीं तो अपनी स्वल्प भूमिका निभाने में अवश्य कामयाब हो पाएगा।
कहते हैं मानव-मन कभी शान्त नहीं रहता, इसमें अनवरत असंख्य भावों का ज्वार नित्य उमड़ता-घुमड़ता, बनता मिटता रहता है लेकिन जरा सा ध्यान भटकते ही माला के बिखरे मनकों की तरह भावों के ये मनके भी चंचल बालक की तरह हाथ छुड़ाकर, छिटककर न जाने कहाँ ओझल हो जाते हैं, बहुत खोजने पर भी हाथ नहीं आते। बस जिन्हें हम अपने शब्दों में कैद कर पाते हैं, वे पृष्ठों पर अंकित होकर सहृदयों के हृदय का हार बन जाते हैं।
ये वक्त भी क्या ही विचित्र शय है जो सदियों से या यूँ कहें अनादि काल से निरंतर इक पल भी रुके बिना अपनी धुन में एक अनंत यात्रा पर अनथक आगे बढ़ता ही चला जा रहा है, सभी जागतिक घटनाओं को अनवरत अपने अंदर विलय करते हुए। आज वक्त जिस परिदृश्य को आत्मसात कर रहा है, वह निश्चित ही आने वाले समय के लिए बहुत ही चिंताजनक है।
आज धरा का हाल बुरा है, वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है, पर्यावरण खतरे में हैं, वन्य संपदाएँ धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रहीं हैं, वायु प्रदूषित हो रही है, जल संकट गहरा रहा है। रिश्ते-नाते दरक रहे हैं। हमारी अपनी परंपराएँ और संस्कृति नित हास की ओर अग्रसर हैं। हम अपने परंपरागत मूल्यों और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। उस पर नित्य नयी-नयी व्याथियाँ जीवन लीलने को तैयार बैठी हैं। समूचे विश्व को अपना परिवार मानते हुए सभी के प्रति सहृदयत्ता और प्रेम का भाव ही हमें इन सभी विनाशकारी शक्तियों से जूझने का साहस दे सकता है। अंतर्बाह्य जगत की ऐसी तमाम परिस्थितियों से जनमे मनोभावों को ही शब्दों में बाँधने का प्रयास किया है मैंने अपने इन गीतों में। अपनी बात आप तक पहुँचाने में कहाँ तक सफल हो पायी हूँ, यह जानने के लिए आपकी बेवाक प्रतिक्रियाओं का मुझे शिद्दत से इंतजार रहेगा। आपसे मिली स्वस्थ सार्थक टिप्पणियाँ निश्चित ही मेरा मनोबल बढ़ाते हुए मेरा मार्ग प्रशस्त करेंगी।
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के लाल किले की प्राचीर से अपना भाषण देते हुए कहा था- "अमृत काल का लक्ष्य भारत और भारत के नागरिकों के लिए समृद्धि की नई ऊँचाइयों पर चढ़ना है।"
यही कामना है कि उनका यह कथन अक्षरशः सत्य सिद्ध हो और हम अपने लक्ष्य-पथ पर निरंतर अग्रसर रहते हुए देश को खुशहाल और समृद्ध बनाने में अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन कर सकें।
अस्तु, अपने इन सभी मनोभावों को आप तक पहुँचाने में मुझे जिन स्वजनों-परिजनों का प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से निरंतर सहयोग मिलता रहा है, उन सबके प्रति श्रद्धावनत हो अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। पूरे मनोयोग व आत्मीयता के साथ 'मनके मेरे मन के' की भूमिका लिखने के लिए आदरणीय श्री विजय कांत द्विवेदी जी का एवं मेरी रचनाओं का प्रकाशन कर उसे सुंदर कलेवर प्रदान करने के लिए भाई सत्यम सिंह बघेल जी का हृदय से आभार अभिव्यक्त करती हूँ।
~ सीमा अग्रवाल
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | मनके मेरे मन के | Manke Mere Man Ke |
| Author: | Dr. Seema Agrawa |
| Total pages: | 108 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 1.7 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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