Free Hindi Book Jab Sahar Humara Sota Hey In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
बहुत पहले किसी ने कहा था... "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।" हम खून देते-देते ऐनेमिक हो गए। आज़ादी अभी तक नहीं मिली। या कि... मिल गई?
इसी सवाल का जवाब जानने का एक उन्मादी और बावरा प्रयास था... 'जब शहर हमारा सोता है।'
आज इस नाटक के मंचन के दस साल बाद इसके बारे में लिखते हुए लफ़्ज़ों के भीग जाने का ख़तरा है जिसके लिए एडवांस में माफ़ी गुज़ार हूँ।
1991 का अंत चल रहा था। 'नेटुआ' और 'होली हो चुके थे!' एन.के. शर्मा निर्विवाद रूप से 'एक्ट-वन' के 'ऑफिशियल डायरेक्टर' चुने जा चुके थे! 'नेटुआ' ने मनोज वाजपेयी के साथ वही किया था जो 'सत्या' ने फ़िल्मों में किया! 'होली' से आशीष विद्यार्थी एक धूमकेतु की तरह उभरकर आए थे! और संग में आए थे वो साठ-सत्तर अनकहे-अनसुने नौजवान (मैं लड़कियों को भी साथ गिन रहा हूँ) जिनको आने वाले कल में उत्तरी भारत के थियेटर की एक अभूतपूर्व शुरुआत बन जाना था! वो 'एक्ट-वन आर्ट ग्रुप' का सर्वोत्कृष्ट काल था जब हम चाँद से नीचे किसी भी चीज़ की ख़्वाहिश नहीं रखते थे।
कहते हैं, चौबीस-चौबीस घंटे का निष्काम कर्म करने से दिव्य-दृष्टि मिल जाती है! शायद 'एक्ट-वन' को भी बाबरी मस्जिद के गिरने से लेकर मुंबई के बम विस्फोटों तक का अहसास वक़्त से पहले हो चुका था! और उसकी मुखालिफ़त भी वक़्त से पहले तैयार थी...'हमारे दौर में!'
साहिर लुधियानवी, कैफ़ी आज़मी, अमरजीत चंदन, बशीर बद्र, संजीव दत्ता, अरविंद बब्बल और थोड़े-बहुत पीयूष मिश्रा के लिखे उन नुक्कड़ नामों के ज़िंदा कार्यक्रम 'हमारे दौर में' में लोगों से सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की विनयपूर्ण अपील नहीं थी बल्कि इंसानियत की तरफ़ से एक झन्नाटेदार थप्पड़ के साथ ये हिकारत भरा पैग़ाम था कि इतिहास नाम की आग के साथ मत खेलो। जो इसकी आँच को भूल जाते हैं, वो अभिशप्त होते हैं उसे दोहराने के लिए। मत भूलो कि बदला लेने के ख़्वाहिशमंद को हमेशा दो चिताएँ एक साथ सजाकर रखनी चाहिए।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | जब शहर हमारा सोता है | Jab Sahar Humara Sota Hey |
| Author: | Piyush Mishra |
| Total pages: | 124 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 12 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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