रॉयल बंगाल रहस्य | ROYAL BENGAL RAHASYA HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

मूड़ो हँय बूड़ो गाछ

हात गोन भात पाँच

दिक पाउ ठीक ठीक जवाबे।

फाल्गुन ताल जोड़

दूई माझे भूई फोड़

सॅन्धाने धन्दाय नॅवाबे ॥

फेलूदा ने कहा था, "इस बार हम लोगों के साथ जंगल में घटी घटना के बारे में लिखते समय इन छह पंक्तियों के संकेत के साथ लिखना शुरू करना; यह संकेत घटना के अन्तिम आधे हिस्से से जुड़ा हुआ है।" इसीलिए जब मैंने उनसे 'ऐसा क्यों' जानना चाहा तो वे बोले, "यह भी एक शैली है। ऐसा करने से पाठकों में खुजली (उत्सुकता) पैदा होगी।" उनके इस जवाब से मैं सन्तुष्ट नहीं था यह समझकर ही शायद वे दो मिनटों के बाद बोले, "पहेली से कहानी शुरू करने से जो भी यह कहानी पढ़ेगा उसे शुरू से ही कहानी को लेकर माथापच्ची करने का मौका मिल जाएगा।"

मैं फेलूदा के कहे अनुसार ही इस पहेली को शुरू में ही दे रहा हूँ, लेकिन साथ में यह भी बता देता हूँ कि माथापच्ची करके शायद ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा, कारण यह संकेत बहुत आसान नहीं है। इसने फेलूदा तक को भी उलझा दिया था। हालाँकि उनके समझा देने के बाद यह मसला मेरे लिए भी बहुत आसान हो गया था।

इससे पहले तक फेलुदा के सभी खतरनाक अभियानों के बारे में लिखते समय में लोगों और जगहों का असली नाम ही लिखता आया हूँ, इस बार किसी के मना कर देने के कारण मैं ऐसा नहीं कर रहा हूँ। हालाँकि काल्पनिक नाम के लिए फेलूदा से सहयोग लेना पड़ा था। वह बोले थे, 'यह जगह भूटान सीमा के आसपास स्थित है, इसे बताने में कोई आपत्ति नहीं है। जगह का नाम बदलकर लिख दे-लक्ष्मणबाड़ी। जो सज्जन इस कहानी के मूल नायक हैं उनकी पदवी सिंहराय लिख सकता है। बंगाल में इस नाम के अनेक जमींदार थे और उनमें से बहुतों का मूल निवास था राजपूताना। उन लोगों में से बहुतों ने बांग्लादेश में आकर टोडरमल की मुगल-सेना में शामिल होकर पठानों के विरुद्ध युद्ध किया था और स्थायी रूप से बांग्लादेश में रहकर पूरी तरह से बंगाली बन गए थे।

में फेलूदा की फरमाइश से ही यह कहानी लिख रहा हूँ, कहानी के चरित्र और जगहों के नाम ही केवल काल्पनिक हैं; घटना पूरी तरह सत्य है जो कुछ भी मैंने देखा-सुना था उसके अतिरिक्त मैं कुछ नहीं लिख रहा हूँ।

यह घटना कलकत्ता से शुरू होती है। 27 मई, रविवार, समय सुबह के साढ़े नौ बजे। तापमान 100 डिग्री फॉरनहाइट। गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं। फेलूदा कलकत्ता के ही फारडाईस लेन के एक हत्या के मामले में एक आलपिन का सूत्र पकड़कर अपराधी की शिनाख्त करके चर्चित हो गए थे। दो पैसे कमाकर निश्चिन्त हो छुट्टी मना रहे थे। मैं अपने डाक टिकट के एलबम में भूटान के कुछ डाक टिकट चिपका रहा था। इतने में जटायु वहाँ आ धमके।

रहस्य-रोमांच वाले उपन्यासों के लेखक लालमोहन गांगुली उर्फ जटायु आजकल महीने में कम-से-कम दो बार हमारे घर आते हैं। आजकल उनकी किताबों की बिक्री बहुत बढ़ गई थी इसलिए उनकी आमदनी भी अच्छी-खासी थी। महोदय को इसका थोड़ा घमंड भी था, लेकिन जब से फैलूदा ने उनकी कहानियों में तरह-तरह की गलतियाँ निकालना शुरू कर दिया था, तब से लालमोहन बाबू उनका बहुत सम्मान करते हैं और कोई भी नई रचना छपवाने से पहले फेलूदा को अवश्य दिखा लेते हैं।

लेकिन इस बार उनके हाथ में कागजों का बंडल नहीं था। उन्हें देखकर ही में समझ गया था, उनके आज आने का उद्देश्य कुछ और ही है। महोदय कमरे में आकर सोफे पर बैठ गए फिर अपनी जेब से हरे रंग के तौलिये का एक टुकड़ा निकाल कर पसीना पोंछकर की तरफ देखकर बोले घूमने

फेलूदा तख्त पर पीठ के बल लेटकर हायरडाल की लिखी हुई पुस्तक 'आकू-आकू' पढ़ रहे थे, लालमोहन बाबू की बातें सुनकर कुहनी के बल सिर उठाकर बोले, "जंगल के बारे में आपकी डेफिनेशन (परिभाषा) क्या है?"

"एकदम से सेंट परसेंट जंगल, जिसे फॉरेस्ट कहते हैं।"

"पश्चिम बंगाल में?"

"यस सर।"

"ऐसा तो सुन्दरवन या तराई जंगल के अतिरिक्त और कहीं नहीं है। सारे जंगलों को तो काटकर साफ कर दिया गया है।"

"महीतोष सिंहराय का नाम सुना है?"

सवाल पूछकर लालमोहन बाबू ने गर्व से हँसते हुए अपने चमकते हुए प्रायः चौबीसों दाँत एक साथ दिखा दिए। महीतोष सिंहराय का नाम मैंने भी सुना है। फेलूदा के पास उनकी एक शिकार की किताब है-सुना है किताब बेहद रोमांचक है।

"वह तो उड़ीसा, असम या ऐसी ही किसी जगह रहते हैं न?"

लालमोहन बाबू तुरन्त अपनी कमीज की जेब से एक चिट्ठी निकालते हुए बोले, "नो सरा वह डुवार्स में रहते हैं-भूटान सीमा के पास। मैंने अपनी आखिरी पुस्तक उन्हीं को भेंट की है। मेरे साथ उनका पत्र-व्यवहार हुआ था।"

"मतलब आप जीवित व्यक्ति को भी पुस्तक समर्पित करते हैं?"

यहाँ लालमोहन बाबू के पुस्तक समर्पित करने के बारे में कुछ कहना जरूरी है। महोदय ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों के अतिरिक्त किसी को पुस्तक भेंट नहीं करते हैं, और उनमें से अधिकांश भगवान को प्यारे हो चुके हैं। उदाहरण के लिए 'मेरुमहान्तक' को समर्पित किया था रॉबर्ट स्कॉट की स्मृति में, 'गोरिल्ला का ग्रास' डेविड लिविंग्स्टोन की स्मृति में, 'आणविक दानव' (फेलूदा का कहना है उसका अधिकांश गप्प है) आइंस्टाइन की स्मृति में। आखिरी पुस्तक 'हिमालय पर हृतकम्प' भेंट करते समय लिख बैठे, "शेरपा-शिरोमणि तेनजिंग नौरगे की स्मृति में।" फेलूदा तो आग-बबूला, बोले- "आपने जीते-जागते इनसान को एकदम मार डाला?" लालमोहन बाबू हकलाते हुए बोले तो, "वे लोग तो लगातार पहाड़ पर चढ़े हुए थे-बहुत दिनों से अखबारों में उनका नाम वगैरह नहीं देखा था इसीलिए सोचा पैर फिसलकर शायद...।" द्वितीय संस्करण में समर्पण का पन्ना बदलकर उसमें संशोधन कर दिया था।

महीतोष सिंहराय एक अच्छे शिकारी हैं इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि वे इन लोगों की तरह प्रतिष्ठित हैं? फिर भी अपनी पुस्तक उन्हें समर्पित क्यों की, यह पूछने पर लालमोहन बाबू बोले, "इस पुस्तक में जंगल के मामले में बहुत सारी बातें महीतोष बाबू की 'बाघे-बन्दूके' (बाघ और बन्दूक) पुस्तक से ली गई है।" उसके बाद मुस्कराकर जीभ काटकर बोले, "यहाँ तक कि एक पूरी घटना भी, इसीलिए उन्हें थोड़ा प्रसन्न करना जरूरी था।"

"आप अपने उद्देश्य में सफल हुए हैं?" फेलुदा ने पूछा।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:रॉयल बंगाल रहस्य | Royal Bengal Rahasya
Author:Satyajit Ray
Total pages:61
Language: हिंदी | Hindi
Size:20 ~ MB
Download Status:Available


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