Free Hindi Book Ajnabi In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
एक
आज माँ की मृत्यु हो गई। हो सकता है, कल हुई हो-ठीक-ठीक नहीं बता सकता। 'आश्रम' से आए आए तार में बस इतना ही लेखा है, "तुम्हारी माँ का स्वर्गवास हो गया। अन्त्येष्टि कल है। हार्दिक संवेदना।" इस मज़मून में तो काफी गुंजाइश है। हो प्रकता है, मृत्यु कल ही हुई हो।
मारेंगो का वृद्धाश्रम अल्जीयर्स नगर से कोई पचासेक नील दूर है। दो बजे की बस लूँ तो दिन छिपे से काफी पहले पहुँच लूँगा। शव के सिरहाने 'रतजगा' की प्रथा निभाकर कल शाम तक आसानी से लौटा भी जा सकेगा। अपने साहब से दो दिन की छुट्टी माँग ली है। ऐसे मौके पर वे मना भी कैसे करते? फिर भी जाने क्यों, मुझे लगा जैसे वे कुछ झुंझला उठे। मैं बिना सोचे ही बोल पड़ा-"माफ कीजिए साहब, इसमें देखिए, मेरा तो कोई कसूर नहीं..."
बाद में खयाल आया कि यह सब मुझे नहीं कहना था। मुझे माफी माँगने की क्या ज़रूरत थी? यह तो खुद उन्हें ही बाहिए था कि हमदर्दी जताते या ऐसी ही कोई औपचारिक बात कहते। परसों गमी के कपड़ों में देखकर, शायद ऐसा कुछ कहें। फिलहाल तो लगता ही नहीं कि माँ नहीं रहीं। अन्त्येष्टि से पक्का हो जाएगा-कहिए, बाकायदा सरकारी मुहर लग जाएगी।
मैंने दो बजे की बस ली। चिलचिलाती गर्म दोपहर का समय था। रोज की तरह आज भी मैंने सेलेस्ते के रेस्त्राँ में खाना खाया था। आज सब कोई बेहद मेहरबान थे। सेलेस्ते बोला, "माँ की बराबरी कोई नहीं कर सकता।" जब मैं बाहर आया तो सब के सब मुझे दरवाज़े तक छोड़ने आए। आते-आते तो एकदम हड़बड़ी-सी मच गई। ऐन मौके पर मुझे काली टाई और बाँह पर बाँधने का काला मुहर्रमी पट्टा लाने के लिए इमानुएल के यहाँ भागना पड़ा। उसके चाचा भी कुछ बस दौड़ते-दौड़ते पकड़ी। सड़क और आसमान का दौड़ता चौंधा, पैट्रोल का बदबूदार धुआँ और रास्ते के झटके और फिर ऊपर से, वह भाग-दौड़ शायद इसीलिए मैं बैठते डी ऊँघने लगा। बहरहाल, ज़्यादातर रास्ता सोते-सोते कटा। आँखें खुलीं तो देखा, एक सिपाही पर लदा हूँ। उसने बत्तीसी बमकाकर पूछा, क्या मैं दूर से बस में बैठा आ रहा हूँ? बात करने को मेरा मन नहीं था। इसलिए सिर्फ सिर हिलाकर बात खत्म कर दी।
गाँव से आश्रम की दूरी कोई मीलभर से ज़्यादा होगी। पैदल ही रास्ता तय किया। सीधे माँ को देखना चाहा तो बौकीदार बोला कि पहले वार्डन से मिलना होगा। वार्डन व्यस्त थे इसलिए थोड़ी राह देखनी पड़ी। जितनी देर में बैठा राह देखता रहा, चौकीदार मुझसे गप्पें लड़ाता रहा। फिर मुझे दफ्तर ले गया। वार्डन सफेद बालोंवाला ठिगना-सा आदमी था। कोट के काज में 'लीजन आफ ऑनर' का प्रतीक, छोटा-सा गुलाब, लगाए हुए (यह पदक 1802 में नेपोलियन प्रथम ने फौजी या सामान्य जीवन में की गई महत्त्वपूर्ण सेवाओं के बदले चलाया था)। वार्डन अपनी नीली-नीली ग्नीली आँखों से मुझे देर तक देखता रहा। फिर हमने हाथ मेलाए। मेरे हाथ को वह इतनी देर हाथ में लिये रहा कि मुझे बेचैनी महसूस होने लगी। इसके बाद मेज पर रखे रजिस्टर को उलट-पलटकर बोला :
"मदाम म्योरसोल तीन साल पहले इस आश्रम में आई श्रीं। जीविका का उनका अपना कोई साधन नहीं था इसलिए उनका सारा भार आपके ही ऊपर था।"
मुझे ऐसा लगने लगा मानो वह मुझे किसी बात के लिए अपराधी ठहरा रहा हो, इसलिए मैंने सफाई देनी शुरू की तो रसने बीच में ही टोक दिया "बेटा तुम अपनी सफाई क्यों......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | अजनबी | Ajnabi |
| Author: | Albert Camus |
| Total pages: | 138 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 48 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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