Free Hindi Book Narak Yatra In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
अस्पताल का मुर्दाघर।
अस्पताल की लम्बी, बेतरतीब इमारत के अंत में एक टूटी पगडंडीनुमा सड़क थी, जो वहाँ समाप्त होती थी जहाँ इस समय एक ओर एक कमरे में लाश पड़ी थी तथा दूसरी ओर एक साइकिल खड़ी थी। साइकिल के कैरियर में लंबी लाठी थी, जिसने इस इलाके में अच्छे-अच्छों की हड्डी-पसली बराबर की थी। लाठी हवलदार बलभद्दर की थी। लाश न मालूम किसकी थी। जिसकी थी, उसके रिश्तेदार उस कमरे के बाहर पास के मैदान में सिर झुकाए बैठे थे। साइकिल भी न मालूम किसकी थी। थाने में खड़ी थी, हवलदार ले आए थे। यह अस्पताल का मुर्दाघर था। लोग इसे प्यार से चीरघर या पोस्टमार्टम-रूम भी कहते थे क्योंकि यहाँ लाशों को चीरकर, फाड़कर, आँतों, मस्तिष्क आदि की गहराइयों में उतरकर विद्वान डाक्टर यह तय करता था कि मौत कैसे हुई? देश की कर्तव्यपरायण पुलिस, सदैव चपल वकील, जैबी-जासूस तथा न्याय करने को आतुर न्यायालय इन पोस्टमार्टम रिपोर्टों की गंभीरता से प्रतीक्षा करते थे। इसी भिनकते, घिनाते, गंधाते कमरे में बड़ी-बड़ी हत्याओं के केस सुलझाए जाएँगे, ऐसा भोला विश्वास देश के कानूनविदों का था। उस इलाके में जो भी मरकर पुलिस के हत्थे चढ़ता, वह यहीं पहुँचता था।
साइकिल के पास ही बीड़ी धौंकते हुए बलभद्दरजी खड़े थे। वे बहुत देर से खड़े थे। अब बात बरदाश्त के बाहर थी। वे कब तक प्रतीक्षा करते? वे कब तक प्रतीक्षा करते कि मृतक के रिश्तेदार इनके पास आकर लेन-देन की बात अंतिम तौर पर तय कर डालें! पर वे आ ही नहीं रहे थे। उन्होंने एक अंतिम नजर मुर्दे के रिश्तेदारों की ओर डाली और बीड़ी जमीन पर फेंककर उस तरफ इशारा किया। किसी ने नहीं देखा। तब उन्होंने "अबे ओ, इधर तो आ" भी कहा, परन्तु किसी ने ध्यान नहीं दिया। तब उन्होंने साथ खड़े सिपाही को पुलिस की कानूनी भाषा में समझाते हुए कहा, "जाकर पकड़ तो लाना मादर को।" सिपाही जा पाता, तब तक शायद उधर बैठे लोगों तक हवलदार बलभद्दर की बेचैनी पहुँच गई। उनमें से एक उठकर मरे कदमों से इधर आया। इसकी शक्ल एकदम अंदर पड़ी लाश से मिलती-जुलती थी, 'स्साला, एकदम ऐसा लगता है कि मुर्दा ही उठकर आ गया हो' बलभद्दर बुदबुदाए, पर वे डरे नहीं। वे हवलदार थे। उन्होंने अच्छे-अच्छे जिंदा लोगों को ठीक किया था; यह तो मुर्दे का भाई ही था। फिर भी न मालूम किस भावनावश, शायद अंदर दबे भयवश, उन्होंने साइकिल के कैरियर से निकालकर लाठी हाथ में ले ली और मुर्दे के भाई से बोले, 'क्यों भैया, क्या तय किया?"
"क्या बताएँ दारोगाजी, कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें?" मुर्दे का भाई मुर्दे-सी आवाज में बोला।
पूछी। "लाश सड़ जायेगी, तब समझोगे क्या?" बलभद्दरजी ने उसकी इच्छा
"दो हजार कहाँ से लाएँ? आप ही बताइए न।"
"दो हजार का मुँह मत देखो," हवलदार ने समझाया। "दो हजार से कम में डाक्टर शर्मा नहीं मानने के। यही रेट है उनका। तुम्हारे भाई ने आत्महत्या की है, सही बात है। पर यही बात रिपोर्ट में लिखने का शर्माजी दो हजार लेते हैं..
"बहुत लेते है," मुर्दे का रिश्तेदार बड़बड़ाया।
"बहुत कौन-सा? तीन-तीन लड़कियाँ हैं उनके। कौन शादी कराएगा-
बताओ भला?" हवलदार ने फटकारा।
"कुछ कम करा दें सरकार।"
"और जो कहीं डाक्टर शर्माजी ने हत्या का मामला बना दिया न बेटा, तो सीधे घुसोगे पाँच लाख की जेल में। फिर थानेदार को दस हजार देना पड़ेंगे और वकील घर बिकवा देगा," हवलदार ने धमकाया।
"क्या करें, कुछ समझ नहीं पाते।"
"समझो, जल्दी करो। शर्माजी की ड्यूटी खत्म होने को है। स्साले डाक्टर तोमर आ गए, तो उनका रेट पाँच हजार है," बलभद्दरजी ने आगत संकट से अवगत कराया।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | नरक यात्रा | Narak Yatra |
| Author: | Gyan Chaturvedi |
| Total pages: | 277 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 3 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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