Free Hindi Book Jaun Elia: Ek Ajab Ghazab Shayar In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
जौन साहब की इस किताब को आने में सात बरस बिल्कुल उसी तरह लगे जैसे उनके मजमूए बहुत देर से शाये हुए। हाँ, वजह अलग-अलग हो सकती है। साल 2011 की बात है, एक दिन इंटरनेट का सफ़र करते-करते न जाने कहाँ से मैं जौन साहब के इस क़तआ तक पहुँच गया-
शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी नाज़ से काम क्यों नहीं लेती
आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेती
ये क़तआ मुझे पागल होने से बचा सकता था, मगर अंदाज़े-जौन का क्या, उससे तो नहीं बचा जा सकता था। सो, ज़ाहिर सी बात है- मैंने जौन साहब के नशे में उतरना शुरू कर दिया और जौन साहब की शायरी ने अपना असर दिखाना। होते-होते यूँ हुआ कि साल 2011 के अंत तक में जौन में डूब गया। एक-एक वीडियो देख डाला गया, क़तआत और ग़ज़लें याद होना शुरू हो गईं। मैं यहाँ इस बात पर ज़ोर ज़रूर देना चाहूँगा कि तब तक मैंने सैकड़ों शायरों को सुन रखा था, उनकी किताबें पढ़ रखी थीं, उन पर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में देख रक्खी थीं। लेकिन जौन साहब को सुनने के बाद मैं पागल हो गया और ये बात मैं पूरे होश-ओ-हवास में बोल रहा हूँ। उन दिनों में यूनिवर्सिटी में कवि सम्मेलन और मुशायरे कराया करता था। सो, बहुत से नए लड़कों से मुलाक़ात होती रहती थी और मैं उनसे कहा करता था - "लिखो कम, पढ़ो ज़ियादा। पढ़ने से आपकी गिरहें ज़रूर खुलेंगी, लिखने का क्या है,
हमारे बुजुर्ग इतना सब लिख के तो गए हैं, कभी-कभी लगता है कि अब कुछ गुंजाइश ही नहीं रही। हाँ, अगर उस सबके बाद भी लगे, तब ही लिखो।" फिर एक दिन ऐसे ही मैंने जौन साहब का ज़िक्र किया। मेरी ही तरह सबको लगा कोई विदेशी लेखक है या फिर होगा कोई भी.. लेकिन जब शेर सुनाए गए तो फिर होना क्या था, अब बैठकें मेरे कमरे पर होने लगीं। फिर जौन साहब की वीडियो ने तो कमाल कर दिया और पागलों की गिनती में इज़ाफ़ा होने लगा। मैंने तब से खुद को 'एकलव्य' की तरह शागिर्द और जौन साहब को 'द्रोण' की तरह उस्ताद मान लिया। अब लोग मुझे भी जौनियत का शिकार यानी 'पागल' कहने लगे। मैं ही नहीं आज जो भी लोग जौन साहब को डूबकर सुनते हैं, इसी पागलपन के शिकार हैं।
एक बार की बात है कि मैं अपने घर आया हुआ था। कुछ शेर अपने तो कुछ शेर जौन साहब के गुनगुनाता रहता था-
ऐ शख़्स अब तो मुझको सभी कुछ कुबूल है ये भी कुबूल है कि तुझे छीन ले कोई
*
हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दखल दे कोई
*
इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्र काश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई
तो मेरी मम्मी कहा करतीं कि ये सब क्या बोलता रहता है, फिर मेरा जवाब होता-
आज का दिन भी ऐश से गुज़रा सर से पा तक बदन सलामत है
मेरा भाई जानता था कि मैं किसी जौन एलिया को सुनता रहता हूँ, तो उसने कहा - "मम्मी, एक पागल आदमी है, इसने उसे सुन लिया है। इसलिए ये सब पागलपन करता रहता है।" लेकिन आज मैं देखता हूँ सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से पागल आशिक़ हैं, जो उस बेफ़िक्री के मुरीद हैं। अब भई, जौन साहब के बारे में जितना मिल सकता था हमें मिल गया, अब और कहाँ से मिले? भूख बढ़ने के साथ-साथ अब दिक़्क़त शुरू हुई, अब जो भी मिल रहा था वो उर्दू की लिपि में था और वो न तो मेरी समझ में आने वाला था न मेरे आस-पास के उन लोगों को। कई लोग तो इस चक्कर में उर्दू भी सीखने लगे, तब जाकर मैंने सोचा क्यूँ न एक किताब जौन साहब की शायरी पर लिखी जाए ताकि जिन लोगों को 'तिश्नगी-ए-जौन' है, वो अपनी भाषा हिंदी में जौन साहब से रू-ब-रू हो पाएँ। लेकिन वो कहते हैं न - 'न जाने किस अजाब में पड़ा हुआ हैं मैं'- बस कछ वैसा ही सिलसिला हो गया। जिंदगी.......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | जौन एलिया एक अजब ग़ज़ब शायर | Jaun Elia: Ek Ajab Ghazab Shayar |
| Author: | Jaun Elia |
| Total pages: | 237 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 1.6 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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