अक्षरों के साये | AKSHARON KE SAAYE HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

तब-जब पिता थे. मैं देखती कि वे प्राचीन काल के ऋषि इतिहास और सिक्स इतिहास की नई घटनाएं लिखते रहते, सुनाते रहते। घर पर भी सुनाते थे, और बाहर बड़े-बड़े समागमों में भी लोग उन्हें फूलों के हार पहनाते थे- उनके पांव छूते थे....

उनके पास खुला पैसा कभी नहीं रहा, फिर भी एक बार उन्होंने बहुत-सी रकम खर्च की, और सिक्स इतिहास की कई घटनाओं के स्लाइड्स बनवाए जो एक प्रोजेक्टर के माध्यम से, दीवार पर लगी बडी-सी स्कीन पर दिखाते, और साथ-साथ उनकी गाथा-अपनी आवाज़ में कहते, लोग मंत्र-मुग्ध से हो जाते थे...

एक बार अजीब घटना हुई। उन्होंने एक गुरुद्वारे की बड़ी-सी दीवार पर एक स्कीन लगा कर वे तस्वीरें दिखानी शुरू कीं, आंगन में बहुत बड़ी संगत थी, लोग अकीदत से देख रहे थे, कि उस भीड़ में से दो निहंग हाथों में बर्छ लिए उठ कर खड़े हो गए, और ज़ोर से चिल्लाने लगे यहां सिनेमा नहीं चलेगा...

मैं भी वहीं थी, पिता मुझ छोटी-सी बच्ची को भी साथ ले गए थे। और मैंने देखावे चुप के चुप खड़े रह गए थे। एक आदमी उनके साथ रहता था, उस सामान को उठा कर संभालने के लिए, जिसमें प्रोजेक्टर और स्लाइड्स रखने निकालने होते थे...

पिताजी ने जल्दी से अपने आदमी से कुछ कहा और मुझे संभाल कर, मेरा हाथ पकड़ कर, मुझे उस भीड़ में से निकाल कर चल दिए...

लोग देख रहे थे, पर खामोश थे। कोई कुछ नहीं कह पा रहा था- सामने हवा में दो बछें चमकते हुए दिखाई दे रहे थे...

यह घटना हुई कि मेरे पिता ने खामोशी अख्तियार कर ली। सिक्स इतिहास को लेकर, जो दूर-दूर जाते थे, और भीगी हुई आवाज़ में कई तरह की कुरबानियों का जिक्र कहते थे, वह सब छोड़ दिया...

एक बाद बहुत उदास बैठे थे, मैंने पूछा- क्या वह जगह उनकी थी? उन लोगों की? कहने लगे नहीं, मेरी थी। स्थान उसका होता है, जो उसे प्यार करता है... मैं खामोश कुछ सोचती रही, फिर पूछा- आप जिस धर्म की बात करते रहे, क्या वह धर्म उनका नहीं है?

पिता मुस्करा दिए कहने लगे धर्म मेरा है, कहने को उनका भी है, पर उनका होता तो बर्छ नहीं निकालते... उस वक्त मैंने कहा था आपने यह बात उनसे क्यों नहीं कही? पिता कहने लगे-किसी मूर्ख से कुछ कहा-सुना नहीं जा सकता...

वह बड़ा और काला बक्सा फिर कभी नहीं खोला गया। उनकी कई बरसों की मेहनत, उस एक संदूक में बंद हो गई हमेशा के लिए...

बाद में जब हिंदुस्तान की तक्सीम होने लगी, तब वे नहीं थे। कुछ पूछने- कहने को मेरे सामने कोई नहीं था... कई तरह के सवाल आग की लपटों जैसे उठते-क्या यह ज़मीन उनकी नहीं है जो यहां पैदा हुए? फिर ये हाथों में पकड़े हुए बर्छ किनके लिए हैं? अखबार रोज़ खबर लाते थे कि आज इतने लोग यहां मारे गए, आज इतने वहां मारे गए... पर गांव कस्बे शहर में लोग टूटती हुई सांसों में हथियारों के साये में जी रहे थे....

बहुत पहले की एक घटना याद आती, जब मां थी, और जब कभी मां के साथ उनके गांव में जाना होता, स्टेशनों पर आवाजें आती थीं- हिंदू पानी, मुसलमान पानी, और मैं मां से पूछती थी क्या पानी भी हिन्दू मुसलमान होता है? तो मां इतना ही कह पाती-यहां होता है, पता नहीं क्या क्या होता है...

फिर जब लाहौर में, रात को दूर-पास के घरों में आग की लपटें निकलती हुई दिखाई देने लगीं, और वह चीखें सुनाई देतीं जो दिन के समय लंबे कर्फ्यू में दब जाती थीं... पर अखबारों में से सुनाई देती थीं- तब लाहौर छोड़ना पड़ा था...

थोड़े दिन के लिए देहरादून में पनाह ली थी-जहां अखबारों की सुर्खियों से भी जाने कहां-कहां से उठी हुई चीखें सुनाई देतीं... रोज़ी-रोटी की तलाश में दिल्ली जाना हुआ-तो देखा-बेघर लोग वीरान से चेहरे लिए उस ज़मीन की ओर देख रहे होते, जहां उन्हें पनाहगीर कहा जाने लगा था... अपने वतन मैं बेवतन हुए लोग...

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:अक्षरों के साये | Aksharon Ke Saaye
Author:Amrita Pritam
Total pages:132
Language: हिंदी | Hindi
Size:3.5 ~ MB
Download Status:Available


Aksharon Ke Saaye written by Aksharon Ke Saaye | Ebook size 3.5 MB | Includes 132 Pages | Find the free PDF download link of “Aksharon Ke Saaye” below and read it right away.

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