Free Hindi Book Da Se Dukh Badi ee Se Ishwar In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
किताबों की यात्रा अनुशासन की यात्रा है, बंधने बाँधने की यात्रा है। फिर वो शब्द हो या मन, जो मुझे कभी रास नहीं आया। सालों तक सोशल मीडिया पर लिखकर भूल जाने के क्रम को तोड़ते हुए मन की चाह के विपरित यह किताब आप सभी के सामने है। मेरे पास नया ज्यादा कुछ नहीं होता पर, बिखरे को समेटने की कला मैंने म से विरासत में पाई है। प्रेम के बिना जीवन कम सुंदर होता है और मेरी मानिए तो दुःख के बिना भी। सुख का सूरज लगातार चमकता रहे तो मन के माथे पर पसीने की बूंदें, चमकने लगती हैं इससे उदासी की प्यास जगती है और मनुष्य न चाहते हुए भी दुःख खोजने लगना है। सुख जीवन की थाली का मीठा है तो दुःख नमक...।
जीवन बंधने की चाह से शुरू होता हे और न बांधने की चाह पर ख़त्म। यात्रा करने की चाह, छुपे हुए पंख देती है। हँसने की इच्छा के साथ ही पुतली के पीछे बन जाती है आँसू की पहली बूँद। क्षमा करते-करते एक दिन मनुष्य बुद्ध बन जाता है और सब कुछ छोड़कर चल देता है। जीवन में प्रेम ऐसी तपस्या की तरह आया जिसके तफल होने पर सामने उपस्थित हुए देवता से कोई वर नहीं माँगना था। प्रेम की ऐसी तपस्या ने मेरे मन को मंदिर कर दिया और ईश्वर उसमें अपने आप ही आकर प्रतिष्ठित हो गया। प्रेम में जय उसकी नहीं जो प्रेम पाना सीख गया बन्कि प्रेम में जय उसकी है जो दानवीर कर्ण की तरह प्रेम का दान करना सीख गया।
ईश्वर को एक समय जीवन में ऐसे याद किया जैसे कोई अपने सबसे बड़े अपराधी को याद करता है, उसके लिए सबसे बड़ा दण्ड सोचता है और यह संभव न होने पर खीझता है। एक समय ऐसे जैसे जन्म-जन्म से यही प्रियतम हो, कृतज्ञता से न आँख मिला पाना संभव हुआ न कुछ कहना। जो समर्पित किया जा सका वो बस आत्मा के आँसू थे। जिसने दुःख को पूजना सीख लिया, सुख; स्वयं देवता बन उसके जीवन के मंदिर में प्रतिष्ठित होने को तरसता है।
यह किताब छोटी-छोटी रंग-बिरंगी टहनियों से अपनी छत बनाने की यात्रा है। यह किताब स्मृति है उस जीवन की जो दुःख से चला, जिसने प्रेम नदी पर अपनी प्यास बुझाई और जो अब ईश्वर की गोद में सुस्ताता है। संभवतः हमें दुःख में प्रेम नहीं, साथ चाहिए होता है और ठीक ऐसे ही प्रेम में प्रेमी नहीं ईश्वर चाहिए होता है। हम जीवनभर बनते हैं और इस निर्माण में सबसे अधिक चोट दुःख की छैनी की होती है। जिसने जिसे बनाया, वही उसका देवना...। यदि यह सत्य है तो दुःख ही हमारा देवता है। बारिश से प्यास बुझाने वालों का गला कभी न कभी सूखता ही है। हम कभी नहीं समझ पाते कि दरअसल प्रेम गंतव्य होता ही नहीं। प्रेम पर रुका रहना प्रेम को एक दिन उदासी में बदल देता है और फिर उस उदासी को ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूर नहीं कर पाता।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | द से दुःख, बड़ी ई से ईश्वर | Da Se Dukh Badi ee Se Ishwar |
| Author: | Payal Rathore |
| Total pages: | 128 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 8.4 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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