Free Hindi Book Shri Gita Govindam In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
श्रीगौड़ीय वेदान्त समितिके प्रतिष्ठाता एवं आचार्यकेशरी नित्यलीलाप्रविष्ट ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशत श्रीश्रीमद्भक्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराजकी अहैतुकी अनुकम्पासे उन्हींकी प्रीतिके लिए कविकुलतिलक श्रीजयदेव गोस्वामीकृत श्रीगीतगोविन्दका यह अभिनव संस्करण प्रकाशित हो रहा है।
किसी भी ग्रन्थको पढ़कर उसका शब्दार्थ ग्रहण करना एक बात है और गम्भीर भावार्थको समझकर उससे भलीभाँति परिचित होना एक और बात है। शब्दार्थ समझना अधिकतर सहज होने पर भी गम्भीर भावार्थ समझना उतना सहज नहीं है। जो इस ग्रन्थका अधिकारी नहीं है, उसके लिए तो भावार्थ ग्रहण करना नितान्त असम्भव है। इसीलिए सभी प्राचीन ग्रन्थोंके प्रारम्भमें अधिकारी और अनधिकारीकी बात बतलायी गयी है। किसी-किसी महानुभाव ग्रन्थकारने अनधिकारियोंको उन-उन ग्रन्थोंको पाठ करनेमें, जिसके लिए वे अनधिकारी हैं, शपथ देकर उनको पढ़नेके लिए निषेध किया है। इसका उद्देश्य क्या है? उद्देश्य और कुछ नहीं, अनधिकारी उन ग्रन्थोंको पाठकर सही अर्थ समझनेके बदले दूसरा अर्थ समझ लेंगे और परिणामस्वरूप हितके बदले अहित ही होगा। पूज्यपाद श्रीजयदेव गोस्वामीने भी अपने ग्रन्थके सर्वप्रथम मङ्गलाचरणमें ही अधिकारकी बात स्पष्ट कर दी है-
यदि हरिस्मरणे सरसं मनः यदि विलास-कलासु कुतूहलम् ।
मधुर-कोमल-कान्त पदावलीं शृणु तदा जयदेव-सरस्वतीम् ॥
अर्थात् उन्होंने कहा है कि श्रीहरिकी सुखद स्मृतिकी यदि मनमें इच्छा हो अथवा यदि तुम हरिका प्रीतिपूर्वक स्मरण करना चाहते हो अथवा श्रीहरिके विलास-नैपुण्यको जाननेका हृदयमें कौतूहल हो, तो तुम इस ग्रन्थका पाठ करो, अन्यथा तुम इस ग्रन्थका पाठ मत करो। मेरी यह कोमलकान्त पदावली तुम्हारे निकट जितनी भी मधुर और कोमल हो, तुम अनधिकारी इसका पाठ मत करो। यदि तुम्हारे हृदयमें कौतूहल हो और उनके रासविलासको जाननेकी इच्छा हो, तो मेरी कोमलकान्त पदावली तुम्हारे निकट बहुत ही मधुर, कोमल और अत्यन्त कमनीय विवेचित होगी।
इतना स्पष्ट करनेके बाद भी अनधिकारियोंके निकट श्रीजयदेव कवि पार नहीं पा सके। उनके मधुर एवं अलंकृत भाषाके आकर्षणके कारण वे इस ग्रन्थका पाठ करते हैं और अन्तमें उसका यथार्थ भावार्थ या मर्म ग्रहण करनेमें असमर्थ होकर अभद्रकी भाँति कविकुल चूड़ामणि श्रीजयदेवको ही गालीगलौज करते हैं। ऐसा तो होगा ही। वे तो श्रीहरिको नहीं पहचानते, वे हरिकी मधुर स्मृतिके निकट भी जाना नहीं चाहते। वे केवल स्वयंको समझते हैं। वह भी देहेन्द्रियात्मक स्वयंको समझते हैं। वे अपने शरीर और इन्द्रियोंको सखकर समझकर उसे ही चरम सख मानते हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | श्री गीत गोविंदम | Shri Gita Govindam |
Author: | Jaydev |
Total pages: | 448 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 2.5 ~ MB |
Download Status: | Available |

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