Free Hindi Book Brahmacharya In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
आज के दूषित वातावरण अर्थात् दूषित संग, आहार और भौतिकवादी सोच से युक्त शिक्षा प्रणाली के कारण 'बिन्दुपात अर्थात् वीर्यनाश करना' यह बालकों एवं युवाओं के मनोरंजन का एक अंग-सा बन गया है; जबकि जिसको वे मनोरंजन (मौज-मस्ती) का अंग समझ रहे हैं, यह सबसे बड़ा महामारी रोग है । यह रोग कैंसर और टीबी आदि से भी ज्यादा खतरनाक और प्राणघातक है क्योंकि उन रोगों की तो औषधि है किन्तु इसकी तो कोई औषधि भी नहीं है ।
इसलिए सावधान! इसको मौज-मस्ती या खिलवाड़ मत समझिये । जो लोग इस रोग से ग्रसित हैं, वे अपनी मृत्यु का स्वयं वरण कर रहे हैं क्योंकि वीर्य जीवनीशक्ति है और वीर्य का नाश ही जीवन का नाश (मृत्यु) है। भगवान् शंकर की अकाट्य उक्ति है -
मरणं बिन्दुपातेन जीवनं बिन्दुधारणात् । एवं संरक्षयेद् बिन्दु मृत्युं जयति योगवित् ।।
'बिन्दु (वीर्य) का रक्षण (धारण) ही जीवन है और उसका क्षय (नाश) ही मृत्यु है। अतः वीर्य की (सर्वतोभावेन) रक्षा करनी चाहिए, उससे योगवेत्ता पुरुष मृत्यु को जीत लेता है ।'
जो वीर्य के साथ खिलवाड़ करते हैं निःसंदेह वे किसी योग्य नहीं रह जाते हैं अर्थात् सारहीन हो जाते हैं और जो वीर्य को धारण करते हैं, वे अमरत्व प्राप्त कर लेते हैं अर्थात् देवत्व को प्राप्त या भगवत्स्वरूप हो जाते हैं।
अतः हमें यदि मृत्यु से अमरता की ओर जाना है 'मृत्योर्मा अमृतं गमय' तो इसके लिए संयम परमावश्यक है ।
वीर्य का नाश करने वाले लोग भयानक रोगों से ग्रसित हो जाते है, उनका जीवन सुख-शान्ति से रहित अर्थात् दुःखमय हो जाता है, जवानी में ही बुढ़ापे के सारे लक्षण उनमें प्रकट हो जाते हैं और उनकी विचार-शक्ति भी इतनी दुर्बल हो जाती है कि वे घोर विषयों के गुलाम हो जाते हैं, परमार्थ-पथ पर भी चलने लायक नहीं रह जाते क्योंकि श्रुतियों में लिखा है -
'नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः' (मुण्डकोपनिषद्)
'जो बलहीन है, वह भगवत्प्राप्ति नहीं कर पाता है ।'
बलहीन होने से तात्पर्य न वे एकरस भजन कर पाते हैं और न उनमें काम-क्रोधादि वेगों को या प्रतिकूलता आदि को सहने की ही सामर्थ्य रह जाती है; क्योंकि 'वीर्य का ह्रास' हो जाने के कारण आत्मबल का उनमें अत्यन्ताभाव हो जाता है । 'आत्मबल' बिन्दु धारण करने से प्राप्त होता है। महर्षि पतञ्जलिजी ने योग-दर्शन में लिखा है - 'ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः' (साधनपाद ३८)
'ब्रह्मचर्य की सम्यक् प्रतिष्ठा (दृढ़ स्थिति) हो जाने पर सामर्थ्य का लाभ होता है अर्थात आत्मबल की प्राप्ति होती है।'
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | ब्रह्मचर्य | Brahmacharya |
Author: | Sri Premanand Maharaj |
Total pages: | 75 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 12.7 ~ MB |
Download Status: | Available |

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