प्राणायाम स्वास्थ्य की कुंजी | PRANAYAM SWASTHYA KI KUNJI HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

Pranayam Swasthya Ki Kunji Hindi Book Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

किस कारण से मैं प्राणायाम की चमत्कारिक शक्ति की खोज में प्रवृत्त हुई मैं स्वयं को भाग्यशाली लोगों में से एक मानती हूं। मैं एक चिकित्सक हूं जो अब भी कुछ बेहतर करने के प्रयास में हूं। चिकित्सा मेरे लिए केवल व्यवसाय नहीं है वरन वह मंच है जो मुझे मानवता के समीप लाने में सहायक है।

समय के साथ स्वास्थ्य के प्रति मेरा दृष्टिकोण भी बदला है। इसी के साथ बीमारी और स्वास्थ्य के प्रति मेरी दृष्टि भी विस्तृत हुई है। मैंने महसूस किया है कि बीमारी हमारी ओर नहीं आती वरन हम बीमारी को आमंत्रण देने वाला माहौल तैयार करते हैं। हम कैसे काम करते हैं, हमारी गतिविधियां, हम क्या और कैसे खाते हैं, हम कैसे सोचते हैं, हमारी भावनाएं और हमारे रिश्ते और जीवन के प्रति हमारा रवैया ये सभी हमारे स्वास्थ्य में बडी भूमिका निभाते हैं।

सामान्यतः हम अपनी श्वास को फॉर ग्रांटेड समझते हैं। जब हम किसी बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं, हम तभी जागते हैं। हम सभी के लिए चिकित्सकीय सहायता का प्रमुख अर्थ होता है बीमारी के लक्षणों का निदान कर पाना। यह कार्य दवाइयों से हो जाता है मगर बीमारी जड से खत्म नहीं होती। इलाज रोक देने पर लक्षण पुनः प्रकट होने लगते हैं और अक्सर दवा लेना शुरु करने के बाद भी स्थिति खराब से खराब होती जाती है। उसके बाद हम अपनी जीवन शैली पर गौर करने और उसे बदलने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इसमें पहला कदम होता है स्वस्थ भोजन ग्रहण करना और नियमित व्यायाम करना और फिर हम यह देखकर प्रसन्न होते हैं कि स्वास्थ्य के प्रति हमारे दृष्टिकोण में नया उत्साह, नया विश्वास जाग रहा है।

कई लोग लगातार दवा लेते रहें, भोजन व व्यायाम का ध्यान रखते रहें, बीमारी में किए जाने वाले परहेज आदि भी करते रहें फिर भी उनके स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार न होता देखकर मुझे प्रतीत हुआ कि एक चिकित्सक होने पर भी हम लोगों की सही मायनों में चिकित्सा नही कर पा रहे हैं। हम लोग सामान्यतः रोग के लक्षणों को खत्म करने के लिए और बीमारी की तीव्रता को कम करने के लिए दवा देते हैं। हम उन दवाओं के दुष्प्रभावों को न तो रोक सकते हैं न ही नियंत्रित कर सकते हैं। इस अवस्था में हम किसी की चिकित्सा का दावा कैसे कर सकते हैं?

स्वयं मेरा सोराइसिस नामक भयानक त्वचा रोग की चपेट में आना मेरी आंखें खोलने हेतु काफी था। मुझे महसूस हुआ कि रोग के स्थान को जैसे दमा के लिए फेफडों को, गठिया के लिए जोडों को, सोराइसिस के लिए त्वचा को देखना बडा ही सतही इलाज है। हम जो भी देखते हैं या लक्षणों के रूप में प्रमाणित करते हैं वह वास्तव में भौतिक स्तर पर ही है मगर इसके परे शरीर के गहराई में जो कुछ घटता है, उससे हम अनजान रहते हैं। व्यक्ति रोग के लक्षणों का निदान दवाओं से कर सकता है मगर वह रोग लंबे समय तक बना ही रह सकता है या शरीर में घर बना सकता है।

यह प्रयास कुछ ऐसा ही है कि हम किसी हिमखंड की चोटी की ओर देखते हुए बीमारी कहाँ से पैदा हुई है इसका अनुमान लगा रहे हो। दवाओं की सहायता से भले ही आप चोटी को अर्थात लक्षणों को काट सकते हैं मगर हिमखंड फिर भी वहां बना ही रहेगा। जिन्न जितने अधिक समय तक जीयेगा, वह बलवान होता जाएगा। और इस जिन्न को बलवान बनाने में हमारी दबी-कुचली भावनाएं, हमारे विचार, शिकायतें और अनसुलझी भावनाएं जैसे डर, दुविधा और मोह सभी हमें ऐसे दुष्चक्र में उलझाते हैं जो बीमारी को जन्म देता है, उसे पोषित करता है। हमारा हर विचार, हरेक अनुभव अपनी प्रकृति (नकारात्मकध्सकारात्मक) के अनुसार शरीर में रसायन स्त्रावित करता है। अतः मन के प्रबंधन के बिना कोई भी दवा, कोई व्यायाम, कोई भोजन सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकता। शरीर-मन का प्रबंधन ही स्वास्थ्य प्रबंधन का मर्म है।

यदि हम किसी गंभीर बीमारी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो हमें ऐसी विधि चाहिए जो बीमारी रूपी हिमखंड के हरेक हिस्से को नष्ट कर सकें। वह कुंजी है प्राणायाम- योग का श्वास अभ्यास। श्वास का अभ्यास प्रारंभ करते समय मेरा प्राथमिक उद्देश्य था श्वास की शुद्धि और शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालना। नियमित अभ्यास के बाद मुझे प्राणायाम के न केवल शारीरिक वरन मानसिक प्रभावों का भी अनुभव होने लगा।

प्राणायाम ने मेरे मन पर पडे आवरण को हटाया और संपूर्ण स्वास्थ्य की ओर देखने के लिए स्पष्ट दृष्टि के द्वार खोल दिए।

श्वास के साथ हमारा रिश्ता संवेदनशील, सीधा और सहज रहना चाहिए चूकिं श्वास हमारी मानसिक अवस्था को दिखाती है। जब हम गुस्से में होते हैं तो श्वास तेज हो जाती है और जब आराम की अवस्था में होते हैं तो श्वास धीमी होती है। मन में सतत उमडते विचारों के घने बादल मन को बुद्धिमत्ता भरी सोच की राह से हटा देते हैं।

जैसे-जैसे हम प्राणायाम का अभ्यास करते जाते हैं, मन का कोलाहल शांत होता जाता है और मन सुनियोजित और तटस्थ होता जाता है। जब किसी चलती हुई फिल्म की गति धीमी होती है तो हम हरेक चित्र को अलग से देख पाते हैं। उसी तरह श्वास धीमी होने से हम जीवन के हर पहलू को स्वयं से विलग होकर स्पष्टता और तटस्थता से देख पाते हैं। यह हमारी आंतरिक बुद्धि को शक्ति देता है जिससे जीवन के कठिन क्षणों में वह सही निर्णय लेने और सही प्रतिक्रिया देने का कार्य पाती है।

श्वास को धीमा मगर पूर्ण करके प्राणायाम यह कार्य करता है। इसने मुझे जीवन के दर्शन की ओर निर्देशित करते हुए स्व चिकित्सा के द्वार मेरे लिए खोल दिए। कैसे?

१. मैने सीखा कि किसी अन्य व्यक्ति की तरह ही में भी बीमारी की चपेट में आने के लिए उतनी ही कमजोर हूं।

२. मैंने महसूस किया कि केवल बीमारी से लडना अपनेआप से ही युद्ध करने जैसा है। इसकी बजाय मैंने अपनेआप को विलग करके, घटनाओं को अकर्ता भाव से बिना अतिरेक में बहे देखना प्रारंभ किया।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:प्राणायाम स्वास्थ्य की कुंजी | Pranayam Swasthya Ki Kunji
Author:Dr. Renu Mahtani M.D.
Total pages:227
Language: हिंदी | Hindi
Size:3.6 ~ MB
Download Status:Available


Pranayam Swasthya Ki Kunji written by Dr. Renu Mahtani M.D. | Ebook size 3.6 MB | Includes 227 Pages | Find the free PDF download link of “Pranayam Swasthya Ki Kunji” below and read it right away.

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