Free Hindi Book Indu Saampradhay In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
सांप्रदाय का शब्द सिर्फ एक हिंदू मत में ही सुनायी दे रहा हैं। एक मंदिर को जाकर पूजाएँ करके कुछ लोग कहते हैं कि यही हमारा सांप्रदाय है। और कुछ लोग ऐसे भी हैं कि एक शादि करके कहते हैं कि हमने सांप्रदाय के मुताबिक शादि की हैं। उसी तरह एक जाति के लोग एक ही तरह के कपडे पहनते हुये कहते हैं कि यहीं हमारा सांप्रदाय है। और भी खुले तरीके से बयान करें तो इंदू मत में एक एक जाति (वर्ण) के लोग एक एक तरीके पर चलते हुये कह रहे हैं कि हमारा वर्ण का सांप्रदाय यही है। इसतरह सांप्रदाय कहलानेवाला शब्द बहुत जगहों पर सुनायी देने के बावजूद हकीकत में यह कोई नहीं जानता कि सांप्रदाय का क्या मतलब है? इंदूमत हिंदूमत की तरह बदलगया हुआ इस ज़माने में अपने आप को हिंदू कहते हुये वह मनुष्य जिसे अपने मत का निजस्वरुप (असलियत) तक नहीं मालूम, सांप्रदाय क्या चीज़ हैं इसका भी ज्ञान उसे न होने के कारण, अगर कोई भी उससे कहता है कि यह सांप्रदाय हैं या फलाना काम सांप्रदाय है तो फौरन बिना सोचे समझे उनकी बात पर यकीन करके उसीको (यानि दूसरे लोगों ने जिसे सांप्रदाय कहा था उस कार्य को ही) सांप्रदाय समझ रहा हैं लेकिन उस मामले में ईश्वर ने खुद को दी हुयी अखल का इस्तेमाल बिलकुल भी नहीं कररहा है। कुछ लोग ऐसा समझ रहे हैं कि अगर एक मनुष्य मरजाता हैं तो उसके मृतदेह को ज़मीन में दफनाने के काम को भी सांप्रदाय समझ रहा है। और एक प्रात में कुछ लोग ऐसा समझ रहे हैं कि मृतदेह को लकडियों से जलाना भी सांप्रदाय ही है। कुछ लोग इसतरह कहते हैं कि सांप्रदायों के बारे में हम तो नहीं जानते, लेकिन जो लोग इसका ज्ञान रखते हैं जैसे वे कहते हैं वैसा सुनना ही अच्छी बात है।
इसतरह जैसे वे कहते हैं वैसे ब्लैन्डली (अंधेपन के साथ) सुनने पर भी जब एक ही काम दो क़िस्म से रहता हैं तो फिर उन दोनों में से कौनसा तरीके को सांप्रदाय कहना चाहिये? इसतरह सवाल ज़रुर उठेगा। वे लोग जो अखलमंद होते हैं इसतरह के लोपभूयिष्ट यानि दो तरह के बातों को देखकर कुछ लोग कहते हैं कि यह सब अंधविश्वास है, और वे लोग असली सत्य को नहीं ढूँढते ऊपर से अपने आप को हम हेतुवादियाँ हैं कहते हुये सत्य से दूर हो रहे हैं। ऐसी सूरत में वे लोग जो अपने आप को सत्यवाद (आस्तिकवाद) कहते हैं वे किसी भी काम को पकडके सांप्रदाय कहसकते हैं, जो लोग अपने आप को हेतुवादियाँ कहते हैं वे हर सांप्रदायबद्धवाली काम को पकड कर अंधविश्वास कह सकते हैं? इन दोनों के बीच सांप्रदाय (रिवाजें) तो कब का गायब होगये। इस ज़माने में सत्यवाद के नाम पर असत्यवाद मौजूद हैं, हेतुवादियों के नाम से नास्तिवादियाँ मौजूद हैं तो आज जो भी आचरण या अमल किया जा रहा है वह हर काम आस्तिकवादियों के लिये सांप्रदाय है तो, वह हर काम जिसका विवरण (जानकारी) नहीं मालूम उन कामों को नास्तिवाद अंधविश्वास समझ रहे हैं।
ऐसी हालत में इधर आस्तिकवादियों के लिये उधर नास्तिवादियों के लिये सांप्रदाय (रिवाजें) क्या चीज़ है यह बात मालूम होना बहुत ज़रुरी हैं। जब फूल अलग अलग से रहते हैं तो उन्हे हार का नाम नहीं दिया जाता, जब उन फूलों को एक धागे (सूत्र) से बाँधा........
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | इंदू सांप्रदाय | Indu Saampradhay |
Author: | Acharya Prabodhanand Yogeswar |
Total pages: | 146 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 1.4 ~ MB |
Download Status: | Available |

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