Free Hindi Book Garbh Evam Prasav Gyan In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
स्त्री यौन तंत्र एवं मासिक चक्र
(Maternal Anatomy and Menstrual Cycle)
- डॉ. अलका पांडेय
बाह्य यौन अंग
भग (Vulva) भग ही स्वों का बाहय यौन अंग है। इसके अनेक उपांग हैं, जिनमें सबसे सुस्पष्ट अंग है-बृहदोष्ठ।
वृहदोष्ठ (Labia Majora)- मध्य रेखा पर एक-दूसरे से मिलनेवाले दो ओष्ठ योनि को ढाँपते हैं। स्त्री के खड़े रहने पर इनसे एक सैंकरे विदर की-सी आकृति बनती है। ये मुख्यतया यौनि गुहा में नमी बनाए रखनेवाली कुछ लघु ग्रंथियों और वसा की परतों से मिलकर बने होते हैं।
जघन पटल (Mons)- यह जघनास्थि के ऊपर त्वचा से ढकी हुई वसा की एक परत है, जिस पर वयःसंधि काल में रोम उग आते हैं।
छुद्रोष्ठ (Labia Minora) बृहदीष्ठ के ठीक नीचे ये दी अपेक्षाकृत छोटी और अधिक संवेदनशील परतें होती हैं। ये भगनासा के सामने उसके ऊपरी हिस्से पर दोनों ओर से मिलती हैं।
भगनासा (Clitoes)- यह तीव्र संवेदी तंत्रिकाओं से भरा हुआ अत्यंत लघु अंग है, जिसमें संवेदित होकर तन आने की क्षमता होती। अनेक बातों में इसकी पुरुष के शिश्न से समानता की जा सकती है। यह समागम के समय स्त्री के यौनानंद और काम-तृप्ति का प्रमुख आधार होता है।
मूत्र छिद्र (Urethral Orifice)- यह भगनासा के थोड़ा नीचे एक छोटा मूत्र मार्ग है, जी अंदर जाकर मूत्राशय से जुड़ता है।
योनि छिद्र (Vaginal Orifice)- मूत्र छिद्र के ठीक नीचे यह योनिगुहा का द्वार होता है।
बार्थोलिन ग्रंथियाँ (Bartholin Glands)- योनि छिद्र के दोनों ओर एक-एक छोटी ग्रंथि होती है। इनसे समागम के समय एक चिकने द्रव पदार्थ का स्राव होता है, जिससे समागम की क्रिया में आसानी होती है।
योनि (Vagina)- योनि मलाशय के ऊपर और मूत्राशय के नीचे अवस्थित होती है और 3 से 4 इंच गहरी होती है। यह अंदर ऊपर की ओर कोणीय रूप से बढ़ते हुए गर्भाशय ग्रीवा (C'ervis) तक जाती है। अत्यंत लचीली होने के कारण इसमें काफी फैलाव की क्षमता होती है। समागम के समय पुरुष अंग इसी हिस्से से मिलता है और शुक्राणु को सर्वप्रथम प्राप्त करने का स्थान भी यही है।
अपने कार्य की सुगमता के लिए योनि में चिकनापन बनाए रखने की एक प्राकृतिक प्रणाली होती है। इसमें बनरहनेवाली इस चिकनाई का स्तर मासिक चक्र के अलग-अलग दिनों में भिन्न-भिन्न होता है। यौन उत्तेजना के समय भी यह स्निग्धता बढ़ जाती है।
आंतरिकयौनअंग
गर्भाशय ग्रीवा (Cervix)
योनि गुहा का ऊपरी छोर गर्भाशय ग्रीवा पर खुलता है। यह गर्भाशय का निचला बाहरी हिस्सा है और काफी संकरा होता है। गर्भाशय ग्रीवा में मौजूद ग्रंथियों से श्लेष्मा (Cervical Mucus) का साथ होता है। इस साव की प्रकृति मासिक चक्र के भिन्न-भिन्न चरणों में भिन्न-भिन्न होती है। यह परिवर्तन स्त्री के विशिष्ट यौन हॉर्मोंनों, इस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन दूद्वारा निर्देशित होता है। डिंव-क्षरण के दिनों में इस श्लेष्मा-स्राव में काफी अनुकूलता आ जाती है, ताकि शुक्राणु इसमें से तैरकर अपने गंतव्य तक सुगमता से पहुँच सके।
गर्भाशय (Uterus)
गर्भाशय मांसपेशी से बना हुआ नाशपाती के आकार का पोला, लगभग 3 इंच लंबा, 2 इंच चौड़ा और 1 इंच मोटा आंतरिक अंग है। यह अंदर से एक गुफा के समान होता है। इसके आकार में बहुत अधिक परिवर्तन की क्षमता होती है। विकसित होता गर्भ यहीं आवास करता है। इसी में उसका पोषण होता है, जिससे वह शिशु का रूप लेता है।
गर्भाशय का स्थान शरीर की मध्यरेखा में श्रोणिगुहा में होता है और यह आगे की ओर झुका होता है। इसकी भित्ति पर अंदर की ओर विशेष प्रकार के ऊतक से बनी एक पतली अंतःपरत (एंडोमीडियम) होती है। इसकी मोटाई मासिक चक्र के दिनों के आधार पर दिन-प्रतिदिन बदलती सहती है। अंडाशय में चननेवाले हॉर्मोन इस परिवर्तन को निर्घत्रित करते हैं। इन हॉमौनों की क्रिया से संतान बीज के स्वागत के लिए यह अपने को तैयार करता है और मोटा हो जाता है। डिंब के निषेचित न हो पाने की स्थिति में यहाँ सघन ऊतक टूट-टूटकर रज के रूप में बाहर आते हैं। प्रजनन क्षम काल में जब तक स्वी गर्भवती नहीं होती, का रक्तस्राव तीन से सात दिनों के लिए हर माह होता है।
गर्भाशय के मुख्य हिस्से को पिंड या Body और सचसे ऊपरी हिस्से की Fundas कहते हैं। गर्भाशय के दोनों ऊपरी कोनों से एक-एक पतली नाल निकलकर डिंब वाहिनी नलिका में मिलती है।
डिंब वाहिनी नलिका (Fallopian Tubes)
ये गर्भाशय के दोनों तरफ होती हैं। दोनों डिंब चाहिनी नलिकाएँ लगभग 4-4 इंच लंबी होती हैं और आखिरी सिरे पर अपनी-अपनी तरफ की डिंब ग्रंथियों के बहुत पास जाकर खुलती हैं। ये डिंब ग्रंथियों से सीधी नहीं जुड़ी होतीं, चल्कि उनके सन्निकट एक घेरा बनाती हैं। डिंब ग्रंथि से छूटने के चाद डिंब स्वाभाविक रूप से डिंब वाहिनी.....
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | गर्भ एवं प्रसव ज्ञान | Garbh Evam Prasav Gyan |
Author: | Dr. Shanti Ray |
Total pages: | 195 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 3.6 ~ MB |
Download Status: | Available |

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