Free Hindi Book Sampurna Kahaniyan In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
बट बाबा
गाँव से सटे, सड़क के किनारे का वह पुराना वट वृक्ष।
इस बार पतझड़ में उसके पत्ते जो झड़े तो लाल-लाल कोमल पत्तियों को कौन कहे, कोंपल भी नहीं लगे। धीरे-धीरे वह सूखता गया और एकदम सूख गया-खड़ा ही खडा।
शाम को निरधन साहु की दुकान पर इसी पेड़ की चर्चा छिड़ी हुई थी। जब से इस गाँव के खुशहाल किसान मुखिया अनन्त मंडर' की दुनिया बिगड़ गई, उनका बैठकखाना उजड़ गया, तभी से निरधन साहु की दुकान पर ही गाँव के लोगों की मंडली शाम को बैठती। दिन भर के थके माँदे किसान, खेतिहर मजदूर नोन तेल, चावल-दाल लेने अथवा यों ही थोड़ी देर बैठकर चिलम पीने, सुख-दुख की कहानी कहने सुनने चले आते। शाम को थोड़ी देर बैठकर बातें करने का यही एकमात्र सहारा था। हाँ तो, उस शाम को वहाँ पर इसी पेड़ की चर्चा छिड़ी हुई थी। आठ दस व्यक्ति बैठे हुए थे। फरजन मियाँ ने कहा- "अरे! क्या पूछते हैं, हमारे दादा कहते थे कि उनके बाप के बचपन में भी यह ऐसा ही बूढ़ा था।... ओह!"
बैठे हुए लोगों में से प्रत्येक ने इसी प्रकार की कुछ न कुछ बातें कहीं। बूढ़ा निरधन साहु का शरीर काला ज्वर से कंकाल मात्र रह गया था, तिस पर में खाँसी, कुछ बोलते ही 'खाँय खाँय करने लगता था। उसकी अठारह वर्ष की बेटी लछमनिया दुकान चलाती थी. बुढ़िया वसूल तगादा करती और शहर से सिर पर 'सौदा-पत्तर' ले आती थी। बूढ़ा बैठा बैठा दिन गिन रहा था। अभी जो उसने पेड़ के सूखने की बात सुनी, तो खाँसता और कराहता हुआ घर से बाहर निकल आया। बोला "बड़कवा बाबा सूख गइले का?"
बैठी हुई मंडली ने एक स्वर में कहा-"हाँ!"
"अब दुनिया ना रही" कहकर वह जो खाँसने लगा तो बीस मिनट तक खाँसता ही रहा। खाँसी शान्त होने पर, भर्राए स्वर में, लम्बी निःश्वास लेता हुआ बोला "अब ना बचब हो राम!"
हिमालय और भारतवर्ष का जो सम्बन्ध है, वही सम्बन्ध उस वृद्ध पेड़ और गाँव का था। वह उन्नत मस्तक विशाल पेड़ प्रतिदिन सवेरे मटमैले अन्धकार में, गाँव के आँगन-आँगन में दृष्टि दौड़ाकर, पूर्व क्षितिज पर न जाने क्या देखकर एक बार
सिहरता... सिसकता, फिर टप टप आँसू बहाकर शान्त हो जाता। सोता हुआ गाँव जब अँगड़ाई लेकर उठता तो उसकी जटाएँ हिलती डुलती रहतीं। पेड़ पर पक्षियों का कलरव होता रहता।
जाड़े का दिन हो या गर्मी का मौसम, चाहे वर्षा की ही झड़ी क्यों न लगी हो, सुबह से शाम तक उसके नीचे औरत, बूढ़े, बच्चे, जवान, गाय-भैंस बैलों की छोटी-सी टोली बैठी ही रहती थी। चैत्र वैशाख की दोपहरी में तो सारा गाँव ही उसकी शीतल छाया का सहारा लेता। गाँव का लुहार यहीं बैठकर हल वगैरह की मरम्मत करता, घर बनानेवाले मजदूर बाँस यहीं बैठकर फाड़ते छीलते। औरतों का ओखल मूसल चलता रहता, बच्चों का घरौंदा खेल, जटाओं को बाँधकर झूला झूलना, बूढ़ों की अनुभव अभिमान-मिश्रित बातें तथा नौजवानों की नजर बचाकर-नववधुओं और भाभियों की छेड़छाड़ भी चलती रहती। पेड़ की एक तरफ की जमीन में अनेक खुदे हुए काले चूल्हे, उसके पास जली अधजली लकड़ियाँ सदा बिखरी रहतीं। रात में व्यापारी गाड़ीवानों का यही 'रैन बसेरा था। इसके अतिरिक्त कभी बारात तो त डोली. कभी गाजे-बाजे, हाथी-घोड़ा थोड़ी देर तक यहीं बैठकर सुस्ताते, गाँव का मनोरंजन कर चले जाते। डोलियाँ रुकतीं, किशोरी बालिकाएँ, बाल वृद्ध डोली, लाल डोली, लाल कन्ने है।' रटते दौड़ते, डोली की खिड़की खुलती, सब उ से देखते।
किशोरी लड़कियाँ मन ही मन अरमान सजाने लगतीं, हौंसले भरे छोटे छाट लड़के दौड़कर माँ से कहते में भी ऐछी ही दुलहन लूँगा।'
एक जमाना था, जब प्रत्येक शाम को उसके नीचे दिवाली' की बहार रहती थी। प्रत्येक घर से घी से भरा पूरा एक एक दीप जाता था। सारी रात जगमग-जगमग... किन्तु इधर कई वर्षों से तो नए सहुआइन का दीपक ही थोड़ी देर तक टिमटिमाकर बुझ जाता, जुगनू की चकगक ग्रारी रात होती रहती।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | सम्पूर्ण कहानियाँ | Sampurna Kahaniyan |
Author: | Phanishwarnath Renu |
Total pages: | 623 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 5.9 ~ MB |
Download Status: | Available |

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