Free Hindi Book Kundalini Shakti Kaise Jagrat Kare In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
ईश्वर द्वारा मनुष्य को दिए गए उपहारो या ताकतों में बुद्धि का विशेष महत्त्व हे । जिज्ञासा बुद्धि का प्रधान लक्षण है, बुद्धि है ओर सही तरह काम कर रही है तो मनुष्य ज्ञान प्राप्त किए बिना रुक नहीं सकता। जानकारियां जुटाना बुद्धि का प्रथम मूल कार्य है । प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करना भी बुद्धि ही का कार्य है ओर कसौरियों पर कस कर प्रमाण जुटाना अथवा तथ्य को सिद्ध कर लेना भी बुद्धि के ही कार्यं क्षेत्र में आता है । यह बात अलहदा है कि बुद्धि ही मनुष्य को माया में उलञ्ा भी देती हे, लेकिन यह भी सत्य है कि बुद्धि ही ब्रह्म की ओर जाने का-ग्रथम सोपान भी हेै।
बहरहाल-- जीवन हे, तो बुद्धि है । बुद्धि है तो जिज्ञासा है । जिन्लासा है तो ज्ञान हे । सान ही जीवन् का. मधुरतम फल हे । ज्ञान से पूर्णता ओर शांति उत्पन्न होती है-जो वैराग्य उत्पनन करते है । वैराग्य माया को नष्ट करता है । माया के प्रभाव से मुक्ति ब्रह्म तक पहुंचने का ठोस आधार है । अतः अपना हित चाहने वाले को सदेव ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए।
जिस प्रकार विश्व को जीतने की इच्छा रखने वाले को सर्वप्रथम स्वयं को जीतना चाहिए ( क्योकि खुद को जीत लेने के बाद कु भी जीतने को शेष नहीं रह जाता), उसी प्रकार ज्ञान चाहने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम अपने बारे में जानना चाहिए- अपने शरीर के विषय में नहीं, अपने ' स्व ' अपनी आत्मा के विषय मे । दूसरे शब्दों मे उसे अध्यात्म विद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए (क्योकि आध्यात्मिक सान पालेने के बाद किसी ओर ज्ञान को पाना शेष नहीं रह जाता) । इसीलिए अध्यात्म विद्या को महाविद्या या गुह्यविद्या (गुप्त विद्या) कहा गया हे । इसे गुप्त रखा भी गया हे- क्योकि एक तो यह इतनी गहन, गूढ, क्लिष्ट, महत्त्वपूर्ण, उलज्ञाव पूर्ण ओर रहस्यमयी है कि जन सामान्य की रुचि इसमें सहज ही उत्पनन नहीं होती । दूसरे इस विद्या का साधक एेसी चमत्कारिक ओर विलक्षण, दिव्य शक्तियां सहज ही प्राप्त कर लेता है, जो किसी अपात्र को मिल जाएं तो शक्तियों का दुरुपयोग होने से अनर्थं हो जाए। इन्दं कारणों से इस विद्या को गुप्त रखा गया। सुयोग्य गुरु से सुपात्र शिष्य का मेल होने पर ही इस विद्या को अगे सौपा गया।ईश्वर द्वारा मनुष्य को दिए गए उपहारो या ताकतों में बुद्धि का विशेष महत्त्व हे । जिज्ञासा बुद्धि का प्रधान लक्षण है, बुद्धि है ओर सही तरह काम कर रही है तो मनुष्य ज्ञान प्राप्त किए बिना रुक नहीं सकता। जानकारियां जुटाना बुद्धि का प्रथम मूल कार्य है । प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करना भी बुद्धि ही का कार्य है ओर कसौरियों पर कस कर प्रमाण जुटाना अथवा तथ्य को सिद्ध कर लेना भी बुद्धि के ही कार्यं क्षेत्र में आता है । यह बात अलहदा है कि बुद्धि ही मनुष्य को माया में उलञ्ा भी देती हे, लेकिन यह भी सत्य है कि बुद्धि ही ब्रह्म की ओर जाने का-ग्रथम सोपान भी हेै।
बहरहाल-- जीवन हे, तो बुद्धि है । बुद्धि है तो जिज्ञासा है । जिन्लासा है तो ज्ञान हे । सान ही जीवन् का. मधुरतम फल हे । ज्ञान से पूर्णता ओर शांति उत्पन्न होती है-जो वैराग्य उत्पनन करते है । वैराग्य माया को नष्ट करता है । माया के प्रभाव से मुक्ति ब्रह्म तक पहुंचने का ठोस आधार है । अतः अपना हित चाहने वाले को सदेव ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए।
जिस प्रकार विश्व को जीतने की इच्छा रखने वाले को सर्वप्रथम स्वयं को जीतना चाहिए ( क्योकि खुद को जीत लेने के बाद कु भी जीतने को शेष नहीं रह जाता), उसी प्रकार ज्ञान चाहने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम अपने बारे में जानना चाहिए- अपने शरीर के विषय में नहीं, अपने ' स्व ' अपनी आत्मा के विषय मे । दूसरे शब्दों मे उसे अध्यात्म विद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए (क्योकि आध्यात्मिक सान पालेने के बाद किसी ओर ज्ञान को पाना शेष नहीं रह जाता) । इसीलिए अध्यात्म विद्या को महाविद्या या गुह्यविद्या (गुप्त विद्या) कहा गया हे । इसे गुप्त रखा भी गया हे- क्योकि एक तो यह इतनी गहन, गूढ, क्लिष्ट, महत्त्वपूर्ण, उलज्ञाव पूर्ण ओर रहस्यमयी है कि जन सामान्य की रुचि इसमें सहज ही उत्पनन नहीं होती । दूसरे इस विद्या का साधक एेसी चमत्कारिक ओर विलक्षण, दिव्य शक्तियां सहज ही प्राप्त कर लेता है, जो किसी अपात्र को मिल जाएं तो शक्तियों का दुरुपयोग होने से अनर्थं हो जाए। इन्दं कारणों से इस विद्या को गुप्त रखा गया। सुयोग्य गुरु से सुपात्र शिष्य का मेल होने पर ही इस विद्या को अगे सौपा गया।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | कुंडलिनी शक्ति कैसे जागृत करे | Kundalini Shakti Kaise Jagrat Kare |
Author: | Vivek Kaushik |
Total pages: | 260 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 97 ~ MB |
Download Status: | Available |

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