सुभाष चंद्र बोस की अधूरी आत्मकथा | SUBHASH CHANDRA BOSE KI ADHOORI ATMKATHA HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

सुभाष ने सन् 1912 में अपनी पंद्रह साल की उम्र में ही अपनी माँ से पूछा था, "आज के इस स्वार्थी युग में कितने निस्स्वार्थी बेटे अपनी माँ के लिए अपने निजी हितों का बलिदान करने और संघर्ष करने के लिए तैयार हैं? माँ, क्या तुम्हारा बेटा अभी इसके लिए तैयार है?" सुभाष जब भारतीय सिविल सेवा को त्यागपत्र देने जा रहे थे, तब उन्होंने अपने बड़े भाई शरत को 6 अप्रैल, 1921 को पत्र लिखा, "मैं इस बलिदान का अर्थ जानता हूँ। इसका अर्थ गरीबी, पीड़ा, कठोर श्रम और संभवतः कुछ ऐसी कठिनाइयाँ हैं, जिन्हें व्यक्त करना मैं आवश्यक नहीं समझता, पर आप इन्हें भलीभाँति समझ सकते हैं। किंतु यह बलिदान विवेकपूर्ण ढंग से जान-बूझकर करना आवश्यक है। बाबा कहते हैं कि अधिकतर तथाकथित नेता वास्तव में निस्स्वार्थी नहीं होते हैं, पर क्या वाकई कोई वजह है कि वे मुझे निस्स्वार्थी बनने से रोकना चाहते हैं?" स्वयं को निस्स्वार्थ सेवा के रूप में प्रस्तुत करनेवाली यह भावना ही थी, जिसने सुभाषचंद्र बोस को शुरुआत में ही नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया था।

सन् 1921 में जिन दिनों भारत में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, सुभाषचंद्र बोस देशबंधु चितरंजन दास के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे। सोलह वर्ष के अथक परिश्रम, कई जेलों की कैद और लंबे समय के देश निकाले के बाद महात्मा गांधी के द्वारा उनका चयन सन् 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में किया गया था। गांधीजी के इस चयन का पता सन् 1937 में अक्तूबर माह की अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कलकत्ता सभा में लगा था। महात्मा गांधी के आशीर्वाद के उपरांत सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद की जिम्मेदारी सँभालने से पहले योरप की यात्रा करने का तय किया। सुभाष ने नवंबर 1937 के आखिर में जनवरी 1938 तक एमिली शेंकल के साथ अपने पसंदीदा स्वास्थ्य रिसार्ट वेगास्टीन, आस्ट्रिया में समय बिताया और वहीं दिसंबर 1937 में दस दिनों में ही अपनी अधूरी आत्मकथा के दस अध्याय भी लिखे थे।

सुभाष के द्वारा उनकी हस्तलिपि में लिखी पांडुलिपि नेताजी रिसर्च ब्यूरो के अभिलेखागार में अभी भी सुरक्षित है। बोस के जीवन के शुरुआती बीस वर्षों की इस विवेचना का अंत अप्रैल 1921 में उनके भारतीय सिविल सेवा के त्यागपत्र के साथ खत्म होता है। अकसर ऐसा नहीं देखा गया है कि उनके जीवन के बारे में लिखे उनके पत्रों को उनकी प्राथमिक स्रोत सामग्रियों के साथ पढ़ा गया हो, जिसमें उनके पत्र और टिप्पणियाँ भी शामिल हैं। यह पुस्तक पाठकों को उसी प्रथम व्यक्ति के बोध से परिचित कराने के उद्देश्य से लिखी गई है। इस अधूरी आत्मकथा के प्रथम भाग की पूर्णता दूसरे भाग में मौजूद उनके बचपन, किशोरावस्था एवं युवावस्था के रोचक सत्तर पत्रों से होती है। इस प्रकार इस खंड में प्रस्तुत सामग्री सुभाष के उस सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन कराती है, जिसमें उनका मानसिक और बौद्धिक विकास हुआ था। इस पुस्तक के पाठक उन धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक, बौद्धिक और राजनीतिक प्रभावों की वास्तविकता से भी परिचित होंगे, जिन्होंने भारत के श्रेष्ठतम सुधारवादी, राष्ट्रवादी व्यक्तित्व और चरित्र को गढ़ा था। प्रस्तुत आत्मकथा और पत्र की सरल एवं सीधी भाषा लेखक की रूढ़िहीनता तथा विद्रोही जीवन के प्रवाह को समझना आसान कर देती है। यहाँ तक कि इन पत्रों में वर्णित समकालीन तथ्यों से इनकी भावना और विचारों की गहराई का भी पता चलता है, जिनका संबंध आत्मकथा से भी प्रतीत होता है।

बोस दिसंबर 1937 में अपनी आत्मकथा के सिर्फ नौ अध्याय ही लिख सके थे और इसके तुरंत बाद ही वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गए, जिसकी व्यस्तता और भागमभाग वाले सार्वजनिक जीवन के कारण वे इसे पूरा न कर सके। हालाँकि उनकी मूल पांडुलिपि के शुरुआती नोट्स की टिप्पणियों से स्पष्ट हो जाता है कि वे इसे पूरा करने के इच्छुक थे। टिप्पणियों का विवरण :

1. जन्म-माता-पिता-पारिवारिक इतिहास

2. स्कूली शिक्षा

(अ) पी.डी. स्कूल

(ब) आर.सी. स्कूल

3. कॉलेज सन् 1913-16, 1916-17,

सन् 1917-19 स्काटिश सी. कॉलेज

सन् 1919-प्रयोगात्मक मनोविज्ञान

4. सन् 1919-21 कैंब्रिज

5. सन् 1921-23

6. सन् 1924-27

7. सन् 1927-29

8. सन् 1929-31

9. सन् 1929-31

10. सन् 1932-1933 फरवरी

11. सन् 1933-36 मार्च भारत में व्यतीत समय

12. सन् 1936-37 मार्च

13. सन् 1937 मार्च-दिसंबर

उपरोक्त विवरण 'नेताजी कलेक्टेड वर्क्स' के प्रकाशित बारह खंडों में भी उपलब्ध है। सुभाषचंद्र बोस ने सन् 1920 से 1942 तक के स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में सन् 1934 और 1942 में 'द इंडियन स्ट्रगल' नामक शीर्षक अपनी पुस्तक में विवेचनात्मक रूप से लिखा है। हालाँकि यह उनकी आत्मकथा नहीं थी, बल्कि इसमें उन्होंने इस संघर्ष में अपने

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:सुभाष चंद्र बोस की अधूरी आत्मकथा | Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha
Author:Sisir Kumar Bose
Total pages:230
Language: हिंदी | Hindi
Size:5 ~ MB
Download Status:Available


Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha written by Sisir Kumar Bose | Ebook size 5 MB | Includes 230 Pages | Find the free PDF download link of “Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha” below and read it right away.

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