Free Hindi Book Sab Maya Hey In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
स्त्री की पारंपरिक आदर्श छवि के कई प्रतिमानों से मुक्त इस चिरप्रतीक्षित पुस्तक की मुख्य पात्र मुझे इसलिए भी प्रिय है कि वह स्त्री को अधिक मनुष्य होने का अवसर देती है।
माया की परिपक्वता में एक परिष्कृत चेतना के दर्शन होते हैं। वह हर अस्तित्व जन्य दबाव से मुक्त है। या कहें कि अपेक्षाओं, नैतिक-सामाजिक नियमावलियों आदि के हर दबाव पर विजय कर आयी है। प्रतीत होता है वह लंबे आत्मसंवाद में रही है और अब उसके पास हर प्रश्न, हर जिज्ञासा का ठोस उत्तर है। उसके वाक्यों में एक दृढ़ कथन है।
पात्रों की भरमार नहीं होना 'सब माया है' का एक उल्लेखनीय पक्ष है। यहाँ दृश्यों की भीड़ भी नहीं। यह दो पात्रों की यात्राओं की कहानी है। ये यात्राएँ बाहरी भी हैं और भीतरी भी। बाहरी यात्राओं में पहाड़ हैं, मैदान हैं, समंदर हैं, जिनके बहाने बहुत-सा गूढ़-अगूढ़ किया गया है।
भीतरी यात्राओं का माध्यम हैं प्रश्नोत्तर। अधिकतर प्रश्न नायक की ओर से आते हैं। प्रश्न साधारण हैं, उत्तर अप्रत्याशित। उत्तर पाठक को चौंकाते हैं, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं और अंततोगत्वा पाठक पात्रों की यात्रा में साथ हो लेता है।
ऐसा इसलिए कह रही हूँ, क्योंकि मेरे लिए यह सीरीज मेरे अपने मानस की छानबीन का मामला रहा। इस वृत्तांत से गुज़रते हुए अपने बहुत से कॉन्सेप्ट्स से प्रथम साक्षात्कार हुआ। यह मनोविज्ञान पर लेखक की अंदरूनी पकड़ का परिणाम है।
नायक और नायिका का रिश्ता इस पुस्तक का एक और अनूठा पक्ष है। यह रिश्ता ना दोस्ती का है (नायिका के दावे के बावजूद), ना प्रेम का और ना ही इन दोनों के कहीं बीच की कोई स्थिति है।
कहीं लगता है नायक, नायिका के प्रभामंडल के प्रभाव क्षेत्र में है तो कहीं नायिका की नायक पर भावनात्मक निर्भरता महसूस होती है। यह मायालोक में सबसे रोचक जिज्ञासा बिंदु है कि कौन किस पर भारी? माया कहीं-कहीं डॉमिनेटिंग दिखती है और नैरेटर सबमिसिव। कहीं-कहीं घटनाएँ और संवाद माया को नायक के मुकाबले बुद्धिमती स्थापित करते हैं। ठीक उसी समय नायक जानबूझकर अल्पज्ञानी बना हुआ महसूस होता है। लगता है जैसे नैरेटर चाहता है कि हर दुविधा का निवारण माया की जुबानी हो। वस्तुतः यह दो पात्रों का पारस्परिक समझ का रिश्ता है, जहाँ संयोगवश एक पात्र पुरुष है और दूसरा स्त्री।
यह स्त्री पात्र लेखक के भीतर स्त्री की इच्छित छवि का प्रतिबिंब ना होकर, 'लेखक कैसी स्त्री होना चाहेगा' की अभिव्यक्ति है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि डॉ. अजित स्त्री मन के लेखक हैं। यह बात दो तरह से समझी जा सकती है। लेखक के पास एक स्त्री के मन की समझ है और लेखक की स्वयं के अंदर के स्त्री तत्व से बहुत निकटता है। माया लेखक के भीतर की स्त्री है।
एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू जो मेरे संज्ञान में आया वह यह कि हिंदी लेखन का ढाँचा मूल रूप में पितृसत्तात्मक है। ऐसे में लेखक का अपनी नायिका को इतना स्पेस देना सुखद है। यह लेखक का सदियों और पीढ़ियों से अपने इर्द-गिर्द स्थापित रूढ़ियों की नकार भी है।
माया प्रचलित स्त्री पात्रों से कहीं अधिक मनुष्य है शायद इसलिए कि यह पात्र थोड़ा ग्रे है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | सब माया हे | Sab Maya Hey |
Author: | Dr. Ajit |
Total pages: | 178 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 0.9 ~ MB |
Download Status: | Available |

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