Free Hindi Book Madhopur Ka Ghar In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
बाबा मुझे दिल्ली से लेकर आए थे। दिल्ली की कहानी बाद में, लेकिन मेरे आने से बाबा और दादी के जीवन में अशान्ति आ गई। बाबा गाँव पर मुझे लेकर तकरीबन आधी रात पहुँचे थे। हमारा घर एक आँगन के चारों ओर बना हुआ था और इसमें कई कमरे थे। चूंकि दादी पीछे के एक कमरे में सोया करती थीं इसलिए बाबा मकान का आधा चक्कर लगाकर पीछे की ओर आए और उन्होंने मद्धिम आवाज में दादी को पुकारते हुए दरवाजे को भी थोड़ा खटखटाया। दादी ने घर के पिछवाड़े का दरवाजा खोला तो बाबा ने कमरे के अन्दर घुसते ही मुझे गोद से उतारा। मुझे देखते ही दादी ने बाबा से पूछा-
"ये किसको लेकर आए हैं?"
"ये लोरा है और अब ये हम लोगों के साथ रहेगी।"
"अगर ये यहाँ रहेगी तो मैं अब इस घर में नहीं रहेंगी।" दादी ने तपाक से बाबा को उत्तर दिया और वहाँ से चल पड़ी। सारा गाँव सोया हुआ था। उसी सन्नाटे के माहौल में दादी घर से बाहर निकल गईं और जोर-जोर से चिल्लाने लगीं और बाबा के लिए अपशब्द निकालने लगीं। अगल-बगल के घर के लोग बाहर सड़क पर आ गए, दादी से पूछने लगे कि आखिर हुआ क्या। पड़ोसियों और अन्य सभी गाँव वालों के लिए यह एक अप्रत्याशित और अजीब-सी घटना थी। दादी का बाबा के लिए अपशब्द निकालना और वह भी आधी रात को, पड़ोसियों के सामने। बाद में तो मैंने यही सुना कि दादी को पूरे गाँव के लोग शालीनता और सौम्यता की प्रतिमूर्ति मानते थे। अपशब्द निकालने की तो बात दूर थी, दादी को किसी ने कभी-भी जोर से बोलते हुए भी नहीं सुना था। खैर पड़ोस के लोगों ने दादी को किसी तरह समझाया तब दादी घर में वापस आने को तैयार हुईं। इस घटना के वक्त तो मैं बहुत छोटी-सी थी इसलिए मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था और ट्रेन की लम्बी यात्रा के बाद में थकी तो नहीं लेकिन भूखी-प्यासी जरूर थी लेकिन बाद में जब मैं बड़ी हुई और मुझे इस घटना की जानकारी मिली तो यह समझ में नहीं आया कि दादी उस रात घर से बाहर भागकर कहाँ जाना चाहती थीं, क्या करना चाहती थीं, उनका इरादा क्या था। बातों को सुनते-सुनते, लम्बे समय बाद मुझे बातें समझ में आने लगीं। लेकिन मेरी समझ के अनुसार ये बातें क्या थीं मैं उसे अभी खुलासा करना ठीक नहीं समझती हूँ। उससे पहले तो अभी जो हुआ और होने वाला था उसका ब्योरा।
गाँव का हमारा घर बड़ा था। इसमें आँगन के चारों ओर बरामदे के पीछे कमरे बने हुए थे। और रहने वाले थे केवल बाबा और दादी जो आँगन के तीन ओर बने कमरों वाले घर में रहते थे और आँगन के दक्षिणी भाग में नीचे और ऊपर की मंजिल मिलाकर पाँच-छह कमरों के मकान में बाबा के चचेरे भाई का परिवार रहता था। घर के बाबा वाले भाग में ऊपर और नीचे की मंजिल मिलाकर आठ कमरे थे। दादी नीचे के ही एक कमरे में रहती थीं और बाबा अपना ज्यादातर समय ऊपर के एक कमरे में बिताते थे। उस रात जब बाबा और दादी के बीच शान्ति बरकरार हुई तो बाबा चुपचाप अपने ऊपर वाले कमरे में मुझे लेकर चले गए।
अगले दिन से मुझे खिलाने, दूध वगैरह पिलाने और कमरे के बरामदे से सटी हुई बड़ी-सी छत पर टहलाने का काम बाबा खुद करने लगे। दादी और बाबा के बीच बोलचाल बन्द हो गई। एक छोटे-से बच्चे का मोहक रूप-रंग देखकर दादी को मेरे ऊपर दया तो जरूर आती होगी लेकिन वह अपने-आप को कमजोर नहीं होने देना चाहती थीं इसलिए मेरे प्रति किसी प्रकार के प्रेमभाव का प्रदर्शन वह नहीं करती थीं। बाबा और दादी के लिए खाना बनाने तथा घर को बुहारने आदि का काम मीना करती थी। बाबा को मेरे लिए दूध या दूध-चावल आदि बनाकर मीना ही दे दिया करती थी। ऊपर के कमरों को छोड़कर मेरा नीचे आना दिन में एकाध बार ही होता था, वह भी शौचकर्म से निवृत्त होने मात्र के लिए। बाबा तो दिन में कई बार नीचे जाते थे क्योंकि उनका तो सारा संसार ही नीचे रचा-बसा हुआ था लेकिन बाबा को बराबर यह ध्यान रहता था कि मैं ऊपर की मंजिल के घरों में अकेली हूँ और एक छोटी-सी नादान बच्ची हूँ। इसीलिए बाबा बराबर बीच-बीच में मुझे देखने आते थे और अपनी गोद में बिठाकर, सहलाकर, पुचकारकर ही वापस नीचे जाते थे। मैं तो उस समय बहुत छोटी थी। इसलिए मेरी स्मृतियों में तो यह सब कुछ कहीं दर्ज भी नहीं है। यह सब तो मैंने बाद में, बड़े होने पर जो कहानियाँ सुनीं कुछ बाबा की अन्य लोगों के साथ बातचीत के दौरान और कुछ जो बखान दादी ने किया अपने बेटों और पोतों से उनसे जान पाई।
तो आखिर क्या हुआ था ऐसा कि मेरे आने से दादी के जीवन में इतना बड़ा भूचाल आ गया कि उन्होंने बाबा से बोलचाल बन्द कर दी? वही दादी जो सभी के प्रति अपने प्रेमपूर्वक व्यवहार के लिए न सिर्फ अपने परिवार और गाँव बल्कि अपने पूरे कुटुम्ब में जानी जाती थीं उन्हें ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने इतना बड़ा कदम उठा लिया? बाबा और दादी के सम्बन्ध में आए तनाव की चर्चा पूरे गाँव में थी। दादी को यह बात तो जरूर अच्छी नहीं लगी होगी लेकिन फिर भी उन्होंने इतना बड़ा निर्णय कैसे ले किया? वह अब बाबा के साथ बैठकर बतियाते हुए कभी भी नहीं दिखाई देती थीं। बाबा घर के नीचे वाले भाग में खाना खाने के......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | माधोपुर का घर | Madhopur Ka Ghar |
Author: | Tripurari Sharan |
Total pages: | 172 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 33 ~ MB |
Download Status: | Available |

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