Free Hindi Book Machhali Mari Hui In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
एक
'लेस्बियाँ' अर्थात् समलैंगिक यौनाचारों में डूब गई हुई स्त्रियों के बारे में, खासकर हिंदी में, बहुत कम ही लिखा गया है। भारतीय स्त्रियों के निजी चरित्र को नंगी आँखों से देखने का अवसर और 'संयोग' हम लोगों को नहीं मिल पाता है। कहीं पर्दादारी के कारण, और कहीं दूसरी जगह बे-पर्दगी के कारण !
दो
1959 (अगस्त) में 'लहर' पत्रिका, अजमेर के कहानी-विशेषांक में मेरी एक कहानी प्रकाशित हुई थी, 'बारह आँखों का सूरज'। 'विनोद' पत्रिका, कलकत्ता के वार्षिक अंक (1961) में, मैंने एक दूसरी कहानी लिखी, 'सामुद्रिक'। इन दो कहानियों के सिलसिले में मुझे होमोसेक्सुअलिटी के बारे में सूचनाएँ और घटनाएँ एकत्र करनी पड़ीं। लेकिन, 'मछली मरी हुई' लिखने के समय मैंने महसूस किया कि निर्मल पद्मावत की 'दास्ताने-हम्ज़ा' बयान करते हुए इन घटनाओं-सूचनाओं का उपयोग किया जा सकता है।
विदेशी भाषाओं में भी इस विषय पर गिनती की ही किताबें लिखी गई हैं। 'फीमेल सेक्स पर्वर्शन' (डॉ. मौरिस सिडेक्ल) 1938 में, और 'सेक्स वैरिएंट्स' (डॉ. जार्ज डब्ल्यू. हेनरी) 1941 में प्रकाशित हुई। स्त्रियों के समलैंगिक यौनाचारों के बारे में, इन्हीं दो किताबों में पहली बार बातें की गई। और, इस यौनाचार को एक मानसिक रोग की 'स्वीकृति' मिली ।
1951 में 'द होमोसेक्सुअल इन अमेरिका' (रोनाल्ड वेब्सटर कोरी) प्रकाशित हुई, और 'द सेकेंड सेक्स' (सिमॅन द बोवुऔं) 1952 में। फिर, 1954 में इस विषय पर पूरी एक किताब 'फीमेल होमोसेक्सुअलिटी' (फ्रैंक एस. कैप्रिओ) आई। इन किताबों के अतिरिक्त, डॉक्टर किन्से की पुस्तक 'सेक्सुअल बिहेवियर इन द ह्यूमन फीमेल' है। कुछ उपन्यास, कहानियाँ और आत्मकथाएँ भी अंग्रेजी साहित्य में हैं। डायना फ्रेडरिक्स की आत्मकथा 1939 में प्रकाशित हुई, जिसकी ओर विश्व-भर के बुद्धिजीवियों और मानसशास्त्रियों का ध्यान आकृष्ट हुआ।
यह कहना गैरजरूरी है कि मैंने ये सारी पुस्तकें पढ़ी हैं।
तीन
संसार के लगभग सभी 'सभ्य' देशों में पुरुषों का समलैंगिक आचरण कानून द्वारा वर्जित है। स्त्रियों को, अधिकतर देशों में यह स्वाधीनता अब तक मिली हुई है। पेरिस, न्यूयार्क, टोकियो-जैसे शहरों में संपन्न और स्वाधीन स्त्रियों ने अपने लिए ऐसे 'क्लब' और आराम्वर बनाए हैं, जहाँ अपनी 'प्रेमिका' के साथ एकत्र होकर, वे विभिन्न उपायों और उपचारों से समलैंगिक सहजाचार करती हैं। कानन इन्हें रोक नहीं पाता।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | मछली मरी हुई | Machhali Mari Hui |
| Author: | Rajkamal Chaudhuri |
| Total pages: | 147 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 7.3 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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