Free Hindi Book Gandhi Ke Bramhacharya Prayog In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
जोसेफ लेलीवेल्ड की पुस्तक 'ग्रेट सोल महात्मा गाँधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया (2011) पर भारत के एक प्रान्त में प्रतिबन्ध लगने की घटना से प्रेरित होकर यह अध्ययन आरम्भ हुआ। उस घटना के बाद एक समाचार आया कि 'राष्ट्रीय सम्मान कानून, 1971' को संशोधित करने के लिए सुझाव माँगे गए हैं। ताकि गाँधीजी को राष्ट्र-ध्वज और राष्ट्रीय संविधान की तरह सम्मान का राष्ट्रीय प्रतीक बना दिया जाए। सत्ताधारी हल्कों से लम्बे समय से यह सचेत प्रयास रहा है कि गाँधीजी और जवाहरलाल नेहरू की महानता निरन्तर प्रचारित हो। यहाँ तक तो सहा जाता रहा, यद्यपि इस में दूसरे अनेक समकालीन महापुरुषों के प्रति घोर अन्याय निहित है।
किन्तु यदि गाँधीजी के बारे में 'असम्मानजनक' बातें कहने के विरुद्ध कानून बनाने तक की बात हो, तब इसके पीछे तुच्छ राजनीतिक उद्देश्य ही है। गाँधी-नेहरू के प्रति आदर को यहाँ एक राजकीय मज़हब बना देना पहले से ही अनुचित है। इसने हमारी नई पीढ़ियों को राजनीतिक, सामाजिक ज्ञानार्जन के सम्बन्ध में जिज्ञासु और गतिशील होने के बजाय अन्ध-विश्वासी और पंगु बनाया है। यह कुछ-कुछ वैसा ही है, यदि भौतिकी के विद्यार्थियों को किसी वैज्ञानिक विशेष के प्रति अनालोचनात्मक श्रद्धा रखने के लिए बाध्य किया जाए।
लेलीवेल्ड की पुस्तक में गाँधीजी के निजी जीवन के बारे में कुछ विवादास्पद बातें ज़रूर हैं। बल्कि कुछ तथ्यों की विवादास्पद व्याख्या। यह प्रसंग सन् 1904-13 के बीच का है, जब गाँधीजी की दोस्ती हरमन कलेनबाख (1871-1945) से हुई। कलेनबाख जर्मन मूल के यहूदी और दक्षिण अफ्रीका के अत्यन्त धनी आर्किटेक्ट थे। कलेनबाख गाँधीजी के मित्र-सहयोगी थे, और उन पर गाँधी का भारी प्रभाव था। उन्होंने ही गाँधी के टॉल्स्टॉय फॉर्म के लिए ग्यारह सौ एकड़ ज़मीन भी दी थी। कलेनबाख का व्यक्तित्व आकर्षक था और वह खेलों के शौकीन भी थे। चार वर्ष तक दोनों ही घर में रहे। गाँधी के उनसे ऐसे प्रगाढ सम्बन्ध हो गए कि गाँधी उन्हें अपना अन्तरंग आत्मीय कहते थे। कलेनबाख ने भी अपने भाई को लिखे पत्र में गाँधी से अपने अनोखे सम्बन्ध का उल्लेख किया है। गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा में कलेनबाख का उल्लेख कई स्थलों पर किया है, और भारत आने के बाद भी उन दोनों के सम्बन्ध बने रहे। उनकी मैत्री ताउम्र चली।
अपनी मैत्री के प्रारम्भिक दौर में, दक्षिण अफ्रीका में गाँधी और कलेनबाख एक-दूसरे को 'अपर हाऊस' और 'लोअर हाऊस' कहते थे। इसका कोई स्पष्ट अर्थ नहीं मिलता। तब तक लम्बी अवधि तक गाँधी ने अपने कमरे में मेंटलपीस पर मात्र कलेनबाख की तस्वीर लगा रखी थी। ऐसे विविध तथ्यों के आधार पर लेलीवेल्ड ने दोनों के बीच किसी विशिष्ट सम्बन्ध का अनुमान लगाया है। उन्होंने कहा है कि गाँधी ने जैसे प्रेम-पूर्ण पत्र कलेनबाख को लिखे, वैसे अपने किसी अन्य सहयोगी को कभी नहीं लिखे। निस्संदेह, लेलीवेल्ड ने इस प्रसंग पर कोई निश्चित बात नहीं कही, किन्तु उनका अनुमान सही नहीं लगता।
वैसे भी, लेलीवेल्ड की पुस्तक गाँधीजी के निजी जीवन पर केन्द्रित नहीं है। कुल 425 पृष्ठ की इस पुस्तक में कलेनबाख-गाँधी सम्बन्ध पर बमुश्किल बारह पृष्ठ हैं। पुस्तक की भूमिका पढ़कर भी स्पष्ट हो जाता है कि पुस्तक का कैनवास बहुत बड़ा है। फिर, 74 वर्षीय लेलीवेल्ड एक गंभीर लेखक रहे हैं जो सनसनी फैलाने के उद्देश्य से नहीं लिखते। वह न्यूयार्क टाइम्स के पूर्व सम्पादक, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के पत्रकार तथा भारत और दक्षिण अफ्रीका पर चार दशक से भी अधिक समय से लेखन-अध्ययन करते रहे हैं। कलेनबाख के पत्रों को लेलीवेल्ड ने दूसरे कारणों से महत्त्वपूर्ण माना है। जिस तरह पश्चिमी मीडिया ने उसे प्रस्तुत किया, पुस्तक में वैसा कोई पक्का निष्कर्ष भी नहीं है। पूरी पुस्तक गाँधी के प्रति सहानुभूतिपूर्वक लिखी गई है। लेखक ने उन्हें महात्मा ही माना है जो सथा, पक्का राजनीतिकर्मी न होने के कारण अपनी कमज़ोरियाँ छिपाता नहीं था।
इसीलिए ब्रिटिश विद्वान लॉर्ड मेघनाद देसाई के अनुसार लेलीवेल्ड की पुस्तक पर प्रतिबन्ध दिखाता है कि "भारत अभी राजनीतिक रूप से भीरू है जो कठिन प्रश्नों एवं आलोचनाओं का सामना करने की ताब नहीं रखता"। देसाई की यह टिप्पणी लेलीवेल्ड की बजाय हम भारतीयों को ही कठघरे में खड़ा कर देती है। यही हमारी गाँधी-चर्चा का प्रसंग बनता है। हमें देसाई की चुनौती स्वीकार करनी चाहिए, और गाँधी-नेहरू की महानता का मानवीय और खुला मूल्यांकन करने के लिए तैयार होना चाहिए। उस से यदि किसी की गढ़ी गई मूर्ति टूटती है, तो टूटे। पर यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि एक व्यक्ति किसी क्षेत्र में महान हो सकता है, तो दूसरे क्षेत्र में साधारण बल्कि उससे भी कम हो सकता है। वह निजी जीवन में कहीं दुर्बल, अथवा कई निर्णयों में मोहग्रस्त, गलत भी हो सकता है। डॉ. राममनोहर लोहिया ने अपने महत्त्वपूर्ण लेख 'गाँधीजी के दोष' में यह कहा भी था। अतः गाँधीजी के बारे में असुविधाजनक सच कहना उनका निरादर करना नहीं है। बल्कि 'सत्य' को सामने रखना गाँधी के ही सिद्धान्त का सम्मान है।
गाँधीजी के बारे में असुविधाजनक सचाइयों की संख्या छोटी नहीं। यह उनके निजी व्यवहार ही नहीं, बल्कि वैचारिक, राजनीतिक दुर्बलताएँ, तथा दार्शनिक अन्तर्विरोधों के क्षेत्र में भी हैं। इन पर स्वयं गाँधी के सहयोगियों, समकालीनों ने कई बार बड़ी कठोर बातें कही हैं। भारत की नई पीढ़ियों को उनसे अवगत होना चाहिए। तभी उनका बौद्धिक.........
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | गांधी के ब्रह्मचर्य प्रयोग | Gandhi Ke Bramhacharya Prayog |
| Author: | Shankar Sharan |
| Total pages: | 132 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 2.9 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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