Free Hindi Book Alif Laila In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
खाड़ी देश का राजा जमशाह अत्यन्त शक्तिशाली, न्यायप्रिय, दयालु एवं नीतिवान था। एक कुशल शासक के रूप में उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। जमशाह के दो बेटे थे। बड़े बेटे का नाम शहरयार और छोटे बेटे का नाम शाहजमां था। दोनों भाइयों में बड़ा गहरा प्यार था।
जमशाह के निधन के बाद उसके बड़े बेटे शहरयार की ताजपोशी की गयी। शहरयार भी अपने पिता की भाँति समझदार, सहनशील तथा दयालु था। वह बड़ा दूरदर्शी भी था। उसने अपने छोटे भाई शाहजमां को तातार देश का शासक बना दिया। तातार देश पहुँचकर शाहजमां ने समरकन्द को अपनी राजधानी बनाया। दोनों भाइयों के दिन हँसी-खुशी से गुज़रते चले गये। अचानक एक दिन शहरयार को अपने छोटे भाई शाहजमां की याद सताने लगी। उसने उसी दिन अपने वज़ीरे आज़म को समरकन्द के लिए रवाना कर दिया। आठ दिन की यात्रा समाप्त करने के बाद वज़ीरे आज़म समरकन्द जा पहुँचा और शाहजमां के दरबार में पहुँचकर अपने बादशाह शहरयार का फ़र्मान सुनाते हुए उसने बड़े अदब से कहा- "हुजूर ! हमारे बादशाह सलामत ने आपको याद फ़र्माया है। वह आपको देखने के लिए बहुत बेचैन हैं।"
अपने भाई का सन्देश सुनकर शाहजमां बहुत प्रसन्न हो उठा। वह भी बहुत दिनों से अपने भाई से मिलने के लिए बेक़रार था। अपने भाई की कुशल पूछने के बादशाह शाहजमां ने वज़ीरे आज़म को राजसी महल में ठहरा दिया और कहा- "आप यहाँ आराम कीजिये। हम आज से दस दिन बाद यात्रा करेंगे।"
इतना कहकर शाहजमां ने सेवकों को वज़ीरे आज़म की सेवा में नियुक्त कर दिया। ग्यारहवें दिन शाहजमां वज़ीरे आज़म के साथ यात्रा पर निकल पड़ा। नगर के बाहर वज़ीरे आज़म का काफ़िला ठहरा हुआ था। तभी शाहजमां किसी अशुभ की आशंका से बेचैन हो उठा।
उसने वज़ीरे आज़म से कहा- "आज हमारी बायीं आँख फड़क रही है, इसलिए हम यह यात्रा कल से आरम्भ करेंगे।"
"जैसी आपकी मर्जी!" कहकर वज़ीरे आज़म ने काफ़िले के लोगों को अगले दिन के लिए तैयार रहने का आदेश दे दिया।
सांझ ढलते ही रात के अँधेरे में शाहजमां छिपकर अपने डेरे से बाहर निकला और अपने राजमहल की ओर चल दिया।
अपने महल में पहुँचकर वह बेगम की प्रतीक्षा करने लगा। बेगम नहीं आयी। हारकर शाहजमां बेगम के शयनकक्ष की ओर जा पहुँचा। वह जैसे ही बेगम के शयनकक्ष के दरवाज़े पर पहुँचा, उसे एक विचित्र दृश्य दिखाई दिया। उसने देखा कि उसकी बेगम राज्य के एक मामूली कर्मचारी के साथ पलंग पर लेटी हुई थी और उससे प्यार भरी बातें कर रही थी। शाहजमां के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। वह सोचने लगा- किसी ने सच ही कहा है कि औरत के अनेक रूप होते हैं।
शाहजमां ने अपना खंजर निकाला और बेगम के शयनकक्ष में जा पहुँचा। "आप!" अपने पति को देखकर बेगम को मानो काठ मार गया।
वह कर्मचारी भी शाहजमां को देखकर डर के मारे थर-थर काँपने लगा। शाहजमां ने उस कर्मचारी को वहाँ से भागने से पहले ही क़त्ल कर दिया। उसके बाद उसने अपनी बेगम को भी मार डाला और रात के अँधेरे में दोनों लाशों को ठिकाने लगा दिया।
राज़ राज़ ही रह गया।
उसके बाद शाहजमां जिस प्रकार छिपकर आया था, वैसे ही अपने डेरे पर वापस लौट गया। उसे न किसी ने आते देखा और न किसी ने जाते देखा। अगले दिन वह उसी काफ़िले के साथ अपनी यात्रा पर चल दिया। आठ दिन की यात्रा पूरी करने के बाद वह वज़ीरे आज़म के साथ फ़ारस पहुँच गया।
फ़ारस के बादशाह शहरयार को जब अपने भाई के आने का समाचार मिला, तो वह तुरन्त उसकी अगवानी करने पहुँच गया। उसने अपने भाई को गले से लगा लिया। फिर वह उसे एक नये राजमहल में ले गया, जो उसने उसी के लिए बनवाया था। उस राजमहल की शोभा निराली थी। उस महल की दीवारों के चारों ओर बाग़-बाग़ीचे थे, जहाँ पक्षी चहचहा रहे थे। महल के बीचोबीच एक सरोवर था, जिसमें रंगीन कलियाँ खिल रही थीं।
महल की सुन्दरता को देखकर शाहजमां ने कहा- "भाई जान ! आपने महल तो बहुत आलीशान बनवाया है।"
"तुम्हें पसन्द है। बस, मेरी मेहनत सफल हो गयी। अब तुम अपने कपड़े बदल लो.......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | आलिफ लैला | Alif Laila |
Author: | Bani Prakashan |
Total pages: | 137 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 1.5 ~ MB |
Download Status: | Available |

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