Free Hindi Book Shri Chakra Nirupanam In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
'श्रीविद्या' साधनाका सर्वश्रेष्ठ साधन दश-चक्रात्मक 'श्रीचक्र' है। प्रस्तुत ग्रन्थमें दश-चक्रात्मक यन्त्रराज 'श्रीचक्र' का निरूपण किया गया है। श्रीदक्षिणामूर्ति शिव ही गुरु हैं; श्रीमहाषोडशीमन्त्र ही मन्त्रराज है तथा श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी ही परदेवता है। श्रीदक्षिणामूर्ति गुरु परम्परामें 'भौतिक, दैविक तथा आध्यात्मिक' तीन प्रकारकी साधना की जाती हैं। भौतिक सम्पदाका अधिकारी 'शिष्य' है। दैविक सम्पदाका अधिकारी 'आचार्य' है तथा आध्यात्मिक सम्पदाका अधिकारी 'गुरु' है। शिष्यके लिए अनुरोधात्मक 'शिष्यक्रम', आचार्यके लिए उपदेशात्मक 'आचार्यक्रम' तथा गुरुके लिए आदेशात्मक 'गुरुक्रम' है। साधक इन तीन क्रमोंसे 'पूर्णपीठ' पर आरूढ़ होकर, पूर्णपीठेश्वरी भोगरूपा सच्चिदानन्दमयी इच्छा-ज्ञान-क्रियात्मिका पूर्णा शक्तिके विमर्शात्मक वृत्तिरूपताको प्राप्त कर, पूर्णपीठस्वरूप मोक्षरूपी सच्चिदानन्दस्वरूप पूर्ण शिवके प्रकाशात्मक पब्रह्मस्वरूपको प्राप्त कर लेता है। यही 'श्रीविद्या' है। इसकी उपासना 'षोलह आवरण, पाँच कल्प तथा उपसंहार' के माध्यमसे की जाती है जो कि अत्यन्त सरल है।
प्रस्तुत ग्रन्थमें दो खण्ड हैं-१. ज्ञानखण्ड तथा २. सपर्याखण्ड। 'ज्ञानखण्ड' में 'श्रीविद्या' के पारम्परिक अत्यन्त गूढ़ रहस्योंका निरूपण सरल भाषामें किया गया है; जबकि 'सपर्याखण्ड' के अन्तर्गत अपने आप दीक्षित होनेकी विधि, पूजाविधि तथा वन्दनाका निरूपण हुआ है। यह एक सम्पूर्ण पद्धति है। ग्रन्थका मूल संस्कृत तथा अनुवाद हिन्दी भाषामें निरूपित है। यह संस्करण 'पराशक्ति श्रीमहात्रिपुर-सुन्दरीकी श्रीमहाषोडशी परम्परा'का अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थरत्न है।
ज्ञानखण्डम्
'श्रीचक्रनिरूपणम्' ग्रन्थका प्रथम खण्ड है- 'ज्ञान-खण्डम्'। प्रस्तुत ग्रन्थ अपने नामके अनुरूप मूल रूपमें श्रीचक्रका निरूपण करता है। इस ग्रन्थमें घोलह आवरण, पाँच कल्प तथा उपसंहार विद्यमान हैं जो कि श्रीचक्रके दसों चक्रोंका तथा उनमें अवस्थित देवताओंके स्वरूपका प्रदर्शन करते हैं। 'ज्ञानखण्डम् 'के अन्तर्गत विभिन्न आगम तथा शास्त्रोंसे समर्थित ज्ञानात्मक तथ्योंका प्रतिपादन किया गया है जिसका विशिष्ट विवेचन प्रसङ्गानसार स्थान-स्थान पर प्राप्त है। अब ग्रन्थके आवरण, कल्प तथा उपसंहारका विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है:-
प्रथमावरणमें सर्वप्रथम 'श्रीपरदेवता' के स्वरूपका वर्णन किया गया है। उसके बाद दशचक्रात्मक परयन्त्रराज 'श्रीचक्र' का निरूपण हुआ है। सृष्टिक्रमसे प्रारम्भ करके सबसे पहले 'भूपुर'का निरूपण किया गया है। 'भूपुर' में द्वारपाल तथा द्वारनायिकाके रूपमें सर्व-योगिनी स्वरूप सर्वभूत, क्षेत्रपति, गणनायक, वटुक भैरव, तिरस्करी, वनदुर्गा, कामदेव, वसन्त, शङ्खनिधि, पद्मनिधि, कुब्जकेशी, सिद्ध-लक्ष्मी, उन्मनी तथा दक्षिणकालिकाके स्वरूपका वर्णन हुआ है।
'भूपुर'की प्रथम रेखामें स्थित अणिमा आदि ग्यारह सिद्धियोंके स्वरूपका वर्णन हुआ है। अणिमा आदि ग्यारह सिद्धियाँ हैं-१. अणिमा, २. गरिमा, ३. लघिमा, ४. महिमा, ५. ईशिता, ६. वशिता, ७. प्राकाम्यका, ८. सर्वभुक्तिकरी, ९. इच्छा, १०. प्राप्ति तथा ११. सर्वार्थ सिद्धि।
'भूपुर' की द्वितीय रेखामें स्थित ब्राह्मी आदि आठ मातृकाओंके स्वरूपका वर्णन हुआ है। ब्राह्मी आदि आठ मातृकाएँ हैं-१. ब्राह्मी, २. माहेश्वरी, ३. कौमारी, ४. वैष्णवी, ५. वाराही, ६. माहेन्द्री, ७. चामुण्डा तथा ८. महालक्ष्मी ममृतका।
'भूपुर' की तृतीय रेखामें स्थित सर्वसङ्क्षोभिणी आदि ग्यारह मुद्राओंके स्वरूपका वर्णन हुआ है। सर्वसङ्क्षोभिणी आदि ग्यारह मुद्राएँ हैं-१. सर्वसङ्क्षोभिणी, २. महायोनि, ३. सर्वविद्राविणी, ४. सर्वा-कर्षिणी, ५. सर्ववशङ्करी, ६. सर्वोन्मादिनी, ७. सर्वमहाङ्कुशा, ८. सर्वखेचरी, ९. सर्वबीजा, १०. सर्वयोनि तथा ११. सर्वत्रिखण्डा मुद्रा। उसके बाद 'भूपुर' चक्रेश्वरी 'श्रीत्रिपुरा' के स्वरूपका वर्णन किया गया है।
द्वितीयावरणमें 'वृत्तत्रय' चक्रका निरूपण हुआ है। 'वृत्तत्रय' चक्रके प्रथम वृत्तमें स्थित कालरात्री आदि ऊनतीस मातृकाओंके स्वरूपका वर्णन किया गया है। कालरात्री आदि ऊनतीस मातृकाएँ हैं-१. कालरात्री, २. खातिता, ३. गायत्री, ४. घण्टा, ५. डार्णात्मिका, ६. चण्डा, ७. छात्मिका, ८. जया, ९. झङ्कारिणी, १०. ज्ञानरूपा, ११. टङ्कहस्ता, १२. ठङ्कारिणी, १३. डकारिणी, १४. ढङ्कारिणी, १५. णकारिणी, १६. तकारिणी, १७. थाणी, १८. दाक्षायणी, १९. धात्री, २०. नादा, २१. पार्वती, २२. फेट्कारिणी, २३. बन्धिनी, २४. भद्रकाली, २५. माया, २६. श्री, २७. षण्ढा, २८. सरस्वती तथा २९. हंसवती मातृका।
'वृत्तत्रय' चक्रके द्वितीय वृत्तमें स्थित अमृता आदि षोलह मातृकाम्बाओंके स्वरूपका वर्णन किया गया है। अमृता आदि षोलह मातृकाम्बाएँ हैं-१. अमृता, २. आकर्षिणी, ३. इन्द्राणी, ४. ईशानी, ५. उमा, ६. ऊर्ध्वकेशी, ७. ऋद्धिरात्री, ८. ऋद्धीश्वरी, ९. लता, १०. लका, ११. एकपादा, १२. ऐश्वर्यिका, १३. ओङ्कारात्मिका, १४. औषधा, १५. अम्बिका तथा १६. अक्षरात्मिका मातृकाम्बा।
'वृत्तत्रय' चक्रके तृतीय वृत्तमें स्थित कामेश्वरी आदि षोलह नित्याकलाओंके स्वरूपका वर्णन किया गया है। कामेश्वरी आदि षोलह नित्याकलाएँ हैं-१. कामेश्वरी, २. भगमालिनी, ३. नित्यक्लिन्त्रा, ४. भेरुण्डा, ५. वह्निवासिनी, ६. वज्रेश्वरी, ७. शिवदूती, ८. त्वरिता, ९. कुलसुन्दरी, १०. विमला, ११. नीलपताका, १२. विजया, १३. सर्वमङ्गला, १४. ज्वालामालिनी, १५. विचित्रा तथा १६. श्रीसुन्दरी नित्याकला। उसके बाद 'वृत्तत्रय' चक्रेश्वरी 'त्रिपुरेशिनी' के स्वरूपका वर्णन हुआ है।
तृतीयावरणमें 'षोडश दल' चक्रका निरूपण हुआ है। चक्रके षोलह दलोंमें कामाकर्षिणी आदि षोलह नित्यशक्तियोंके स्वरूपका वर्णन हुआ है। कामाकर्षिणी आदि षोलह नित्यशक्तियाँ हैं-१. कामा-कर्षिणी, २. बुद्धयाकर्षिणी, ३. अहङ्काराकर्षिणी, ४. शब्दाकर्षिणी, ५. स्पर्शाकर्षिणी, ६. रूपाकर्षिणी, ७. रसाकर्षिणी, ८. गन्धा-कर्षिणी, ९. चित्ताकर्षिणी, १०. धैर्याकर्षिणी, ११. स्मृत्याकर्षिणी, १२. नामाकर्षिणी, १३. बीजाकर्षिणी, १४. आत्माकर्षिणी, १५. अमृताकर्षिणी तथा १६. शरीराकर्षिणी नित्यशक्ति। इसके बाद षोडश दल चक्रेश्वरी 'त्रिपुरेश्वरी' के स्वरूपका वर्णन किया गया है।
चतुर्थावरणमें 'अष्टदल' चक्रका निरूपण किया गया है। चक्रके आठ दलोंमें अनङ्गकुसुमा आदि आठ देवियोंके स्वरूपका वर्णन हुआ है। अनङ्गकुसुमा आदि आठ देवियाँ हैं-१. अनङ्गकुसुमा, २. अनङ्ग-मेखला, ३. अनङ्गमदना, ४. अनङ्गमदनातुरा, ५. अनङ्गरेखा, ६. अनङ्गवेगिनी, ७. अनङ्गाङ्कुशा तथा ८. अनङ्गमालिनी देवी। इसके बाद अष्टदल चक्रेश्वरी 'त्रिपुरसुन्दरी' के स्वरूपका वर्णन हुआ है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | श्रीचक्र निरुपणम् | Shri Chakra Nirupanam |
Author: | Goswami Prahallad Giri |
Total pages: | 736 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 299 ~ MB |
Download Status: | Available |

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