Free Hindi Book Rog Aur Yoga In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
इस पुस्तक का उद्देश्य
यह पुस्तक उन लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से लिखी गई है जो आम दैहिक तापों से पीड़ित हैं अथवा पीड़ितों से सम्बन्धित हैं, ताकि वे योग के अभ्यास द्वारा अपनी उस अवस्था से ऊपर उठ सकें जो उन्हें एक अभेद्य दीवार के सदृश चारों ओर से घेरे हुए है। इसका लक्ष्य लोगों को यह बताना है कि बाहर निकलने का एक रास्ता है। यही जानकारी सबसे महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह एक ऐसी ऊर्जा है जो मन में प्रविष्ट हो एक सशक्त विचार बन जब अभ्यास में उतरती है तो उन तकलीफों से उबरने का समर्थ साधन सिद्ध होती है। इसका प्रारूप उन चिकित्सकों के लिए एक संदेशिका या मार्गदर्शिका की तरह भी है, जो चिकित्सा के नये आयामों की खोज करना चाहते हैं। यह पुस्तक उन यौगिक क्रियाओं की उपयोगिता एवं बहुआयामिता की ओर इंगित करती है जिनका उपयोग उन बीमारियों के उपचार में किया जा सकता है जो अब तक आधुनिक चिकित्सा पद्धति के द्वारा नियंत्रित नहीं हो पाई हैं, और उनके इलाज के सभी प्रचलित तरीके विफल सिद्ध हुए हैं।
बहुत-सी बीमारियों का विवरण इस पुस्तक में नहीं दिया गया है, क्योंकि वे 'आम' नहीं हैं। सभी बीमारियों का विवरण योग चिकित्सा की विस्तृत पाठ्य-पुस्तक में ही किया जा सकता है। हमारा यह लक्ष्य भी नहीं है कि प्रत्येक बीमारी को विस्तार से समझाया जाए। हम यह मानकर चल रहे हैं कि पाठकों को, विशेषतः चिकित्सकों को सम्बन्धित संरचना, क्रिया विज्ञान एवं रोग विज्ञान की पूर्व जानकारी होगी। इन सभी विषयों को इस प्रकार की पुस्तक में समाविष्ट करना संभव नहीं है। जो उत्सुक व्यक्ति इन विषयों से अनभिज्ञ हैं, उन्हें सलाह दी जाती है कि सम्बन्धित विषय की पाठ्य-पुस्तक से संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें।
गुरु अथवा मार्गदर्शन की आवश्यकता
हम इस बात पर हमेशा से जोर देते रहे हैं कि किसी यौगिक क्रिया को स्वयं किताबों से पढ़कर करना या अनुभवहीन व्यक्ति से सीखना श्रेयस्कर नहीं है। चिकित्सा हमेशा अनुभवी व्यक्ति के निर्देशन में होनी चाहिए। दूसरी जरूरी बात यह है कि योग चिकित्सा आधे मन से या अनमने ढंग से करने से अच्छा है कि नहीं ही की जाए। यदा-कदा, जैसे-तैसे आसन करने से, जब मन यहाँ-वहाँ भटक रहा हो, कोई लाभ नहीं होगा। अक्सर अभ्यासी अपने इलाज में विफलता के लिए स्वयं के बजाए योग को दोषी ठहराने लगता है। यदि योगाभ्यास सही ढंग से सीखा और किया जाए तो अभ्यासी यदि एकदम से पूर्णरूपेण स्वस्थ नहीं भी हो, तो भी कम-से-कम उसकी बीमारी का आगे बढ़ना रुक जाएगा, और कुछ-न-कुछ लाभ तो अवश्य होगा।
लाभ काफी हद तक रोग की तीव्रता एवं समयावधि पर निर्भर है। इस बात में कोई शक नहीं है कि यदि रोगी कम उम्र का हो और बीमारी की.........
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | रोग और योग | Rog Aur Yog |
Author: | Dr. Swami Karmanand Saraswati |
Total pages: | 305 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 1.4 ~ MB |
Download Status: | Available |

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