Free Hindi Book Manovishlesan In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
आज किनी शिक्षित व्यक्ति को सिगमंड फायड का परिचय देने की आवश्य-कता नहीं। उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दियों में मानव-चिन्तन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली चार विभूनियां हैं: मार्क्स, डारविन, गांधी और फायड। इनमें से फायड ने मन और उसके अचेतन व्यापारों के जो रहस्य उद्घाटित किए, और अपनी खोजों के आधार पर हजारों स्नायु-रोगियों को स्वस्थ करके जो नई चिकित्सा-शैली स्थापित की, उसका चिकित्सा-जगत् के साथ-साथ मानवीय अध्ययन की अन्य शाखाओं पर भी कांतिकारी प्रभाव पड़ (है। हिन्दी आलोचना-साहित्य में भी फायड के साहित्य विषयक विचारों को लेकर बहुत काफी खंडन-मंडन हुआ है।
परन्तु अंग्रेजी न जानने वाले पाठकों के पास फायड के सिद्धान्तों का मूलरूप जानने का कोई उपाय नहीं था। कई आलोचक फायड के तथाकथित सिद्धान्त सारांश रूप में देकर अपना खंडन या मंडन का काम चला लेते थे। इसी कारण इस विषय में बहुत कुछ अज्ञान लेखन हुआ है।
इन व्याख्यानों में फायड ने बिलकुल बातचीत की भाषा में अपने मनोविश्ले-पण विपयक सिद्धान्त पेश किए हैं। इसलिए इस विपय का ज्ञान न रखनेवाले पाठक को इनसे सरल और प्रामाणिक सामग्री अन्यत्र नहीं मिल सकती। पहले भाग में 'ग़लतियों' पर विचार किया गया है। भापा-विज्ञान और मनोविज्ञान का मौलिक कार्य हिन्दी में उपलब्ध न होने के कारण अनुवाद में मूल जर्मन के, या उसके अंग्रेजी अनुवाद के उदाहरण लेने पड़े पर इन उदाहरणों को हिन्दी के पाठकों के लिए सुबोध बनाने का भरसक यत्न किया गया है। दूसरे भाग में 'स्वप्न' पर प्रकाश डाला गया है। एक-एक बात को पूरी तरह हृदयंगम करके आगे बढ़ने पर यह प्रकरण समझने में कठिनाई नहीं होगी। तीसरा भाग 'स्नायु-रोगों' के बारे में है जो बहुत कुछ टेक्निकल है, पर यदि पहली बात मन में स्पष्ट रूप से बैठाकर आगे पढ़ा जाएगा तो, परिश्रम और धैर्य से, इसे भी पूरी तरह समझने में सफलता मिलेगी, और कुल उपलब्धि से सारे परिथम की क्षति-पूर्ति हो जाएगी ।
मनोविश्लेषण के सिद्धान्त कई बार बड़े सरल रूप में रख दिए जाते हैं, और सुनने वाला उनके आधार पर कुछ धारणाएं बनाकर अपनी जानकारी को पूर्ण समझने लगता है। इन व्याख्यानों में कोरा सिद्धान्त-वर्णन नहीं है, जो अपेक्षया आसान काम था- इनमें फ्रायड ने यह दिखलाया है कि ये सिद्धान्त किन तथ्यों के कारण अनिवार्यतः बनाने पड़े और इन सिद्धान्तों को न मानने पर चिकित्सा और वैज्ञानिक व्याख्या में किस तरह त्रुटि रहती थी। इसलिए सारा निरूपण क्रमिनः सिद्धान्त-प्रतिपादन की शैली से हुआ है, और क्रमशः सारी बात गमझने जाने पर ही सिद्धान्त स्पष्ट होगा। किसी भी जगह गब सिद्धान्त नियं रूप में लिये हुए नहीं मिलेंगे।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मनोविश्लेषण | Manovishlesan |
Author: | Sigmund Freud |
Total pages: | 421 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 56 ~ MB |
Download Status: | Available |

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