Free Hindi Book Samay Ki Ret Par In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
वह जी रहा है। इस बीच उसने बहुत कुछ झेला है, बहुत कुछ छूट गया है, कुछ है जो अब भी शेष है, जी रहा है-इसी उधेड़बुन में जी रहा है कि शायद उसका भवितव्य अब भी उसे कोई ठौर दे पाये, अपने पर भरोसा है और किंचित आत्म-विश्वास भी, कि शायद अब भी कुछ ऐसा घटे जो जीवन पर उसे यकीन दे सके। शायद यह हो, शायद ऐसा ही हो। वह अक्सर ऐसा ही सोचता है- अपने में खोते जाने की पुरानी आदत है उसकी। गनीमत है कि वह खो न सका, बचा रह गया है, इसीलिए तो वह है, वर्ना इसकी भी सम्भावना थी कि वह रहता ही नहीं। अक्सर उसे इसी तरह सोचते देखा गया है। अपने पर झुंझलाते, बरसते, लोगों के बीच भी अकेले हो जाने और कहीं और टिकने का उसका स्वभाव किसी को अच्छा नहीं लगता। वह कब कैसा रहेगा, कैसा व्यवहार करेगा, किस क्षण उसमें क्या घटित होगा, यह उन बरसाती बादलों की तरह होता जो क्षण में बरसते हैं और क्षण में ही विलुप्त हो जाते हैं जैसे कि उनका कोई आसरा ही न हो। ऐसा न समझें कि वह इसी तरह का है। वह बहुत सच्चा और खरा है। आप उस पर यकीन कर सकते हैं, पर उसे अपने पर ही यकीन नहीं होता। कोई राह भी नहीं इसकी कि वह अपने में पक्का हो सके। टूट-टूटकर बार-बार बिखरने के बाद वह बचा रह सका है तो शायद यह उसकी शक्ति ही है, कोई दूसरा होता तो ऐसा भी रहता, कहना कठिन है। कई बार ऐसा हुआ है कि वह अपने से ऊबा है, खुद पर झल्लाकर उसने जीवन खत्म करने की सोची है, पर हिम्मत बटोरकर जिन्दा रहना तय किया है तो इसमें उसकी दृढ़ता की कम, जिम्मेदारियों की भूमिका अधिक है। जिम्मेदारी, हाँ, जिम्मेदारी। माँ-बाप, भाई-बहन, पत्नी-बच्चे। सबकी देख-रेख और उनके लिए जीने के शगल ने ही उसको जिलाए रखा है वरना तो...
'नहीं नहीं। ऐसा भी नहीं है कि मैं परिस्थितियों से लड़ नहीं सकता। टूट नहीं सकता कभी मैं अन्तिम क्षण तक। लेकिन कब तक कोई लड़ता ही रहे। कभी तो अन्त हो इसका। सब तरफ अँधेरा ही अँधेरा तो है।' वह ऐसा कहकर सिर झटकता और फिर किसी बीते दिन में डूब जाता। 2004 की बात है, जब उसके पिता ने अपनी अन्तिम साँस ली थी। करीब छह महीनों की लगातार भागदौड़ और सेवा-सुश्रुषा के बावजूद वह उन्हें बचा नहीं पाया था। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के निजी वार्ड के कमरा नम्बर 63 में अस्पताल से छुट्टी के ठीक एक दिन पहले अचानक वे बेसुध हो गये। देह का बायाँ हिस्सा निस्पन्द हो गया। साँसें बेतरतीब हो गयीं। लगातार भागदौड़ करने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें आई.सी.यू. यानी गहन चिकित्सा कक्ष में दाखिला दिया। उसकी साँसें चढ़तीं, दिल बैठता जाता। अज्ञात की आशंका से वह अन्दर से काँप उठता। पर हुआ वही जो होना था। डॉक्टरों की भरपूर मेहनत के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका और वे चले गये। उनका जाना उसके लिए एक बड़ी विपदा का कारण बना। घर टूट रहा था। भाई सँभाले नहीं सँभल रहे थे। उनकी पत्नियों के बीच कहा-सुनी और ईर्ष्या द्वेष की आग सब कुछ झुलसा देने पर आमादा थी। वह क्या करता ? पिता के पार्थिव शरीर को अग्नि के हवाले कर, अन्तिम कर्म सम्पन्न कर श्राद्ध के लिए गाँव.......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | समय की रेत पर | Samay Ki Ret Par |
| Author: | Niranjan Prasad Srivastava |
| Total pages: | 302 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 2.6 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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