जैन तंत्र शास्त्र | JAIN TANTRA SHASTRA HINDI BOOK FREE PDF DOWNLOAD

Jain Tantra Shastra Hindi Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

प्रस्तुत सकलन में जैन धर्म के तीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सकलित हैं-(१) चतुविशतितीर्थकर अनाहत मन्त्र-यन्त्र विधि, (२) श्री कल्याण मन्दिर स्तोत्र तथा (३) भवतामर स्तोत्र ।

उक्त ग्रन्थो मे सम्बन्धित ऋद्धि, मन्त्र यन्त्र उनकी साधन विधि तथा प्रभावादि का उल्लेख भी इसमे किया गया है।

पूर्वाचार्यकृन 'श्री चतुविशति नीर्थवर अनाहत यन्त्र-मन्त्र विधि' नामक ग्रन्थ अब तक रेवल बन्नड भाषा में ही उपलब्ध था। श्री १०८ गणधराचार्य श्री कुथुसागर जी महाराज द्वारा उका कपड-ग्रन्य का प्रथम हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया, ऐतदथ सम्पूण ममाज उनका अत्यन्त अनुग्रहीत है।

'कल्याण गन्दिर म्तोय' यथार्थ म मानव कल्याण का मन्दिर ही है। जैन धर्म के दोनो सम्प्रदायो- श्वेताम्बर तथा दिगम्बर में इसे समान रूप से प्रनिष्ठा प्राप्त है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय इमे सिद्धसेन दिवाकर की तथा दिगम्बर सम्प्रदाय जाचार्य कुमुदचन्द्र की रचना मानता है। इस म्तोत्र का रचना-वाल ग्यारहवी शताब्दी के बाद का माना जाता है। यह चमत्कारिक स्तोत्र भी दीर्घकाल न अनुपलब्ध था। खुरई निवासी प० कमलकुमार जैन शाम्त्री 'कुमुद' के कठिन परिश्रम के फलस्वरूप ही यह सुलभ हो पाया है।

'भक्तामर स्तोत्र' का रचना-काल भी सुनिश्चित नहीं है, परन्तु इसवे प्रणेता उज्जयिनी ने महाराजा विक्रमादित्य के समय में विद्यमान थे, ऐसी मान्यता है। यह मताम भी श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनो सम्प्रदायो द्वारा मान्य है तथा मेभी जैन मतानुयायी इसे मनोभिलाषाओ की पूर्ति करने वाला स्वोकारते हैं।

आधुनिक युग म श्रुतज्ञान परम्परा के प्रतिष्ठापक मुनि श्री १०८ धरसेनाचार्यजी'ने पञ्चपरमेष्ठी वाचक णमोकार मन्त्र को 'अनादि निधन' कहा है। इस मन्त्र के प्रति अनादि निधन शब्द का प्रयोग शब्दात्मक पुद्गल (Matter) के पयाय का परिवर्तन तथा उसका ध्रौव्यपुद्गल द्रव्यात्मकता हाने मे त्रिकालाबाधित सत्य की कसौटी पर आज के वैज्ञानिक साधना द्वारा सिद्ध हो गया है।

मुनि थी भूतवली न पुगादन्न की परीक्षा मन्त्र साधना विधि से की थी तथा उमभ मफलता मिलन बाद ही उन्हे श्रुत का ज्ञान कराया गया था, अस्तु मन्त्र-शास्त्र भी द्वादशाग रप श्रुत के विद्यानुवाद का विपय रहा है। मन्न-साधना के द्वारा ही एकाग्रता को प्राप्त कर, क्रमश मोक्ष-सोपान पर आरूढ हुया जा सकता है।

मन्त्र के उच्चारण से उत्पन्न हुई तरगो की आकृति की रचना Photograph of Vibrations हो यन्त्र का प्रतिरूप है। चांदी, ताम्र आदि पर लिखित मन्त्र स्वरूप को ही यन्त्र कहा जाता है। वह मन्त्र को स्मरण कराने का माधन होता है। यथार्थ मे ध्वन्यात्मक उच्चारण से आकाश म्थित वायु के माध्यम में कम्पायमान तरगो से जो आकृति रचित होती है, उसका जो ज्ञान म्वात्मज्ञान के द्वारा होगा, वही उस यन्त्र द्वारा भी प्राप्न होता है।

यन्त्र मे लौकिक-कार्य सम्पादन को शक्ति अन्तनिहित रहती है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:जैन तंत्र शास्त्र | Jain Tantra Shastra
Author:Pt. Rajesh Dixit
Total pages:193
Language: हिंदी | Hindi
Size:2.6 ~ MB
Download Status:Available


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