Free Hindi Book Hum Bhukhe Nange Kyun Hey In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
आदमी जब परिश्रम करता है तभी सब चीजें तैयार होती हैं। परिथम करने से ही आदमी सुखी रह सकता है। परिश्रम के बिना आदमी ज़िन्दा भी नहीं रह सकता। परिश्रम न किया जाता तो यह मकान और महल कैसे खड़े होते ? परिश्रम न किया जाता तो सब तरह के औज़ार, कल-पुर्णे, मशीनें, कारखाने, मोटर, बग्धी, कुरसी, टेबल, आदि कैसे बनते ? परिश्रम न किया जाता तो बरतन कहाँ से आते, कपड़ा कहाँ से आता ? खेतों पर परिश्रम न किया जाता तो खाने को अत भी कहाँ से आया? परिश्रम करना सारी सनुष्य-जाति छोड़ दे तो अनाज की उत्पत्ति, कपड़े व दूसरे सामान की उत्पत्ति, मकानों का बनना और दुरुस्ती, बंद हो जाय; सफाई की जगह मैला हो जाय, जगह-जगह घास-फूस और पेड़ उग कर सारी पृथ्वी फिर जंगल बन जाये। अगर मनुष्य-जति परिश्रम करना छोड़ दे तो उन लोगों की हालत कैसी हो आय जो दूसरों के परिश्रम पर जीते हैं, जिनके बिस्तर करने को मौकर चाहिए, जिनके कपड़े पहनाने को नोकर चाहिये और जिनको रोटी बनाने को नौकर चाहिये? परिश्रम के बिना न रहने को घर हो सकते, न पहनने को कपड़े हो सकते, न खाने को रोटी मिल सकती। परिश्रम के विमा सारा मनुष्य-समाज जिम्दा नहीं रह सकता। कैसे अचरज की बात है कि आज-कल पूंजीपति लोग परिश्रम को ओछा काम और परिश्रमी को नीचा समशते हैं, तथा परिश्रम करनेवाले किसान-मज़दूर-कारीगर-लिपाही लोगों की हालत ही सब से ज्यादा खराब है ! मेहनत करने वाले गरीब लोग ही भूले-नंगे वेबर हैं!
औज़ार (साधन) परिश्रम करनेवाले के ही अधिकार में होने चाहिए
दुनिया में परिश्रम मुख्य चीज़ है। परन्तु परिश्रम के साथ ही उसके साथन या औज़ार भी चाहिए। साधन या औज़ार भी परिश्रम से ही बनते हैं। रोटी बनाने के लिए चकला-वेलन, तवा-थाली चाहिए। खेती करने के लिए फावड़ा-हल आदि चाहिए। कपड़ा तैयार करने के लिए राँच-चर्खा श्रादि चाहिए । मकान बनाने के लिए कन्नी-हथौड़ा-बसूला आदि साधन वा औज़ार चाहिए। यह साधन (ज़रिए) परिश्रम करनेवालों के साथ में, उनके ही कब्जे में, होने चाहिए। जो खेती करे उसी के कब्ज़े में हल, बैल, बजि, अनाज होना चाहिए। जो कपड़ा बुने उसी के कब्ज़े में सूत-थर्सा-राँच होना चाहिए। माल ढोनेवाले के कब्ज़े में गाड़ी होनी चाहिए। लकड़ी का काम करनेवाले के कब्ज़े में अपना बसूला, लोहे का करनेवाले के कुब्ज़े में अपना हथौड़ा, चमड़े का काम करनेवाले के कब्ज़े में अपनी रापी और हजामत बनानेवाले के कब्ज़ेमें अपना उस्तरा होना चाहिए। अगर परिश्रम करनेवाले के कुब्ज़े में औज़ार न होंगे, औज़ार दूसरे की मिल्कियत या कुब्ज़ेमें होंगे, और अगर उनके बनाने या प्राप्त करने का ज़रिया भी परिश्रम करनेवाले के पास न होगा, तो यह कुर भ कर सकेगा और भूखों मरेगा। उसे औज़ारवाले की अधीनता में रहना पड़ेगा। अगर परिश्रम करनेवाले के पास कुछ दिन बैठकर खाने पहनने रहने का इन्तज़ाम भी न होगा तब तो उसे उस दूसरे की पूर्व गुलामी में रहना पड़ेगा। कारीगर तभी स्वाधीन रह सकता है जर उसके साधन या औज़ार उसी के कब्जे में हों। भाजकल मामूली वर औज़ारों का भी ज़माना नहीं है, बल्कि हर धंधे की मशीनें बर गई हैं, जो मालदारों के कुब्ज़े में हैं। यह सब मशीनें या कारखाने परिश्रम करनेवाले कारीगरों के सामूहिक, पंचायती या राष्ट्रीय अधिका में होने चाहिए। तभी परिश्रम करनेवाले लोग स्वाधीनता और सुर से रह सकते हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | हम भूखे नंगे क्यों हैं | Hum Bhukhe Nange Kyun Hey |
| Author: | Unknown |
| Total pages: | 34 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 5.5 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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