धूप के आइने में | DHOOP KE AAYINE MEIN HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

Dhoop Ke Aayine Mein

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

इन दिनों उसे जो भी मिलता, प्रेम के बारे में बड़े गंभीर प्रश्न करता। जबकि वह कहीं दूर भाग जाने की अविश्वसनीय कार्ययोजना के बारे में सोच रहा होता। उसकी कल्पना की धुंध में गुलदानों से सजी खिड़कियाँ, समंदर के नम किनारे, कहवा की गंध से भरी दोपहरें और पश्चिम के तंग लिबास में बलखाती हुई ख़वातीनें नहीं होती। उसके ख़यालों में एकांत का कोना होता। जिसमें कच्ची फेनी की गंध पसरी रहती। उस जगह न तो बिछाने के लिए देह गंध की केंचुलियाँ होती न ही ख़्वाबों की उतरनें। न वह साहिब होता, न गुलाम। न वह किसी से मुहब्बत करता और न ही नफ़रत। हालाँकि अब भी एक लड़की के बदन से उठते मादक वर्तुल उसे लुभाते रहते थे।

समय के सींखचों के पीछे से आती हुई रोशनी में गुज़रते हुए दिन देखता था। इन दिनों में अपने हाल के बारे में सोचते हुए उसे यक़ीन होने लगता कि वह कभी प्रेम में था ही नहीं। इन बीते तमाम सालों में जब कभी दुःख से घिरता तो गुलाम फ़रीद को पढ़ता। जब इच्छाएँ सताने लगतीं तो बुल्लेशाह के बागीचे की छाँव में जाता। जब मन उपहास चाहता तो अमीर ख़ुसरो को खोजने लगता। इस तरह कुछ बुनियादी बातें उसके आस-पास अटक जातीं कि प्रेम सरल होता है। उसमें गाँठें नहीं होतीं। प्रेम एक वन-वे सीढ़ी की तरह है। उसे कुंडलियों को खोलते हुए केंद्र की ओर बढ़ते जाना है। सच्चे प्रेम का ख़याल जब अपने मकसद तक पहुँचता तब पाता कि वह वहीं पर अटका हुआ है। उसी एक लड़की को छू लेने के निम्नतम विचार पर अटका हुआ।

उसके घर की बालकनी के बाहर एक निर्जीव क़स्बा था। वह आने वाले किसी धूल भरे बवंडर से घबराया हुआ दड़बे जैसे घरों में दुबका रहता। दिन के सबसे गए-गुज़रे वक़्त यानी भरी दोपहर में बेचैनी जागा करती। रास्ते तन्हाईयों से लिपटे हुए और दुकानदार ज़िन्दगी से हारे हुए से पड़े रहते। कोई ठौर-ठिकाना सूझता ही नहीं। कैसेट प्लेयर के आले के सामने लगे हुए आईने में गुसलख़ाने का खुला हुआ दरवाज़ा दिखता। उसमें लगी खिड़की के पार, दूर एक लाल और सफ़ेद रंग का टावर दिखता तो ख़याल आता कि रात इस जगह वह अपने जूड़े की पिन को मिट्टी में रोप कर भूल गई है।

रेत में खड़ी हुई जूड़े की पिन के साथ चली आई उन दिनों की स्मृतियाँ बुझने लगतीं तो वह और अधिक उकताने लगता। ख़ुद से सवाल करता। ऐसा तो नहीं होना चाहिए कि एक लड़की से जुड़ी बातें जब तक साथ दें, तब तक ही मैं सुकून में रहूँ। ऐसा हमारे बीच था ही क्या? दीवारों पर बैठे रहे और पीठ की तरफ़ छाँव बुझती गई। हाथ थाम कर उठे और अँगुलियों में अँगुलियाँ डाले सो गए। घुटने घुटने निकली जींस की जगह उसने क्रीम कलर की साड़ी बाँधी और कॉलेज चली गई। वह वैसी ही जींस और सफ़ेद शर्ट पहने हुए बस में चढ़ गया। आस्तीनों के बटन खोले और उनको ऊपर की ओर मोड़ता गया। जैसे देर तक हथेली को चूमते रहने के बाद आस्तीन के कफ़ साँस लेने के लिए जा रहे हों।

वह खिड़की के पास की मेज पर पाँव रखे हुए बैठा था। तीसरी बार ग्लास को ठीक से रखने की कोशिश में बची हुई शराब कागज़ पर फैल गई। उसने गीले कागज़ को बलखाई तलवार की तरह हाथ में उठाया, और कहा- "प्रेम-प्रेम कुछ नहीं होता।"

उसने कागज़ से उतर रही बूँदों के नीचे अपना मुँह किसी चातक की तरह खोल दिया। वे नाकाफ़ी बूँदें होंठों तक नहीं पहुँचीं, नाक और गालों पर ही दम तोड़ गईं।

हल्का अँधेरा था। बाहर निर्जीव क़ौम की बसाई हुई दुनिया थी। या दुनिया में एक मरी हुई क़ौम आकर बस गई थी। उसने अपनी भौहों पर अंगूठा घुमाते हुए फिर कहना शुरू किया- "धुंध में डूबे हुए शहरों की चौड़ी सड़कों पर हाथ थाम कर चलते हुए लोग प्रेम में नहीं होते। वे अतीत की भूलों को दूर छोड़ आने के लिए अक्सर एक-दूजे का हाथ पकड़े हुए निकला करते हैं। दोपहरों में गरम देशों के लोग बंद दरवाज़ों के पीछे आँगन पर पड़े हुए शाम का इंतज़ार करते हैं। ताकि रोटियाँ बेलते हुए बचपन में.........

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:धूप के आइने में | Dhoop Ke Aayine Mein
Author:Kishore Chaudhary
Total pages:121
Language: हिंदी | Hindi
Size:6.3 ~ MB
Download Status:Available


Dhoop Ke Aayine Mein written by Kishore Chaudhary | Ebook size 6.3 MB | Includes 121 Pages | Find the free PDF download link of “Dhoop Ke Aayine Mein” below and read it right away.

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