Free Hindi Book Bahucharchit Kahaniyan In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
मेरी 'बहुचर्चित कहानियाँ' अनेक संकलनों, पत्र-पत्रिकाओं, हिन्दी-उर्दू वेबसाइट्स में यत्र-तत्र सर्वत्र बिखरी पड़ी हैं। जिन्हें सम्पादकों का आशीर्वाद तो मिला ही है। साथ ही पाठकों का भरपूर आशीर्वाद भी मिला है। मुझे खुशी हो रही है कि पहली बार इन्हें एक पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। सुरंजन मेरे कथागुरू थे, जिन्होंने मुझे कथा के क्षेत्र में आगे बढ़ाया। 'तीन पीढ़ियाँः तीन कथाकार' को उन्होंने सम्पादित किया। जिसमें तीन अलग-अलग पीढ़ियों के तीन कथाकार थे। प्रथम पीढ़ी में सुरंजन जी ने मुंशी प्रेमचन्द जी को रखा था। जो हिन्दी कहानी के पितामह माने जाते हैं। उन्हीं के प्रयासों से तिलिस्म आयरी की दुनिया से निकलकर हिन्दी कहानी ने वास्तविक धरातल पाया। हालाँकि विश्व में प्रेमचन्द के समकालीन ओ हेनरी, चेखव, टालस्टाय, खलील जिब्रान, रविन्द्रनाथ टैगोर, शरतचंद आदि गैर हिन्दी भाषी साहित्यकार उत्कृष्ट कहानियाँ दे रहे थे। कुछ अनुवाद रूप में भी अन्य भाषों में सुलभथे। हिन्दी में भी उन दिनों अनेक कथाकार जैसे जयशंकर प्रसाद, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, गुलेरी, निराला, भगवतीचरण वर्मा, यशपाल आदि उत्कृष्ट साहित्यकार मौजूद थे। 'तीन पीढ़ियाँः तीन कथाकार' में प्रेमचंद जी की 'ये मेरी मातृभूमि नहीं', 'कजाकी', 'बड़े घर की बेटी' और 'कफ़न' को रखा गया था।
'तीन पीढ़ियाँ: तीन कथाकार' की द्वितीय पीढ़ी में सुरंजन जी ने आज़ादी के बाद के सांसे महत्वपूर्ण कथाकार मोहन राकेश को उस किताब में रखा था। इसमें राकेश की 'मलवे का मालिक', 'पाँचवे माले का फ्लैट', 'परमात्मा का कुत्ता' और 'मंदी' नामक उत्कृष्ट कहानियाँ थीं। जिन्हें हिन्दी साहित्य में आज भी महत्वपूर्ण रूप से देखा जाता है। मित्रत्रैयी (मोहन राकेश, राजेंद्र यादव और कमलेश्वर) ने हिन्दी में आधुनिक कहानियों को जन्म दिया।
'तीन पीढ़ियाँः तीन कथाकार' की तृतीय पीढ़ी में सुरंजन जी ने मुझे जगह दी थी, जिसमें मेरी 'नस्लें', 'मास्टर जी', 'अर्थपुराण' व 'एक श्वान की व्यथा' को स्थान दिया था। अनेक साहित्यकारों ने इसे सराहा था तो अनेक साहित्यकारों ने इसकी आलोचना भी की थी। खैर सुरंजन जी इस किताब के अन्य भाग भी लाना चाहते थे। ऐसा हो नहीं सका। बाद में 'तीन पीढ़ियाँः तीन कथाकार' की कहानियों पर ही "कथा संसार" (त्रैमासिक पत्रिका) का एक विशेषांक उन्होंने निकला था। आज भी हिन्दी की कई वेबसाइटस पर मेरी कहानियों पर पाठकों की टिप्पणी, प्रतिक्रिया मुझे नया सृजन करने के लिए प्रेरणा देती है। जब तक साँस हैं, तब तक कुछ और सार्थक कालजयी सृजन कर सकूं ऐसा माँ सरस्वती से ख़ाकसार का निवेदन है।
~ महावीर उत्तरांचली
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
|---|---|
| Name of Book: | बहुचर्चित कहानियाँ | Bahucharchit Kahaniyan |
| Author: | Mahaveer Uttranchali |
| Total pages: | 130 |
| Language: | हिंदी | Hindi |
| Size: | 1.8 ~ MB |
| Download Status: | Available |
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