मुझसे बुरा कौन | MUJHSE BURA KON HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

मेरा नवीनतम उपन्यास 'मुझसे बुरा कौन' आपके हाथों में है। क्रॉनोलॉजिकल रिकार्ड के लिये उद्धृत है कि प्रस्तुत उपन्यास मेरी अब तक पुस्तकाकार में प्रकाशित रचनाओं में 293वां है और जीतसिंह सीरीज में नौवां है। इस सीरीज का पिछला प्रकाशित उपन्यास 'गोवा गलाटा' था जो कि हार्पर कालिंस से ही पिछले साल फरवरी में प्रकाशित हुआ था। इस लिहाज से जीतसिंह कदरन जल्दी पाठकों की अदालत में हाजिर है जो कि पाठकों की अपेक्षाओं के, बल्कि माँग के, अनुरूप है। उपन्यास मैंने बहुत बहुत मनोयोग से लिखा है और जीतसिंह की 'जीता जो कुछ नहीं जीता' वाली छवि मैंने इसमें भी बरकरार रखी है हालांकि जीतसिंह को ऐसा ही चित्रित करते रहना मुझे उसके साथ ज्यादती लगने लगा है। अब वो स्थापित और प्रशंसित सीरीयल हीरो है, इसलिये वक्त की जरूरत ये जान पड़ती है कि आइन्दा उसकी छवि को भी लांड्री में धुलने के लिये भेजा जाये और उसे कल्फ लगा के, प्रैस कर के, प्रेजेंटेबल बना कर पेश किया जाये।

उपरोक्त सन्दर्भ में मैं अपने सुबुद्ध पाठकों की अमूल्य राय आमन्त्रित करता हूं। प्रार्थना करता हूं कि वो मुझे किसी भी माध्यम से अवगत करायें कि आइन्दा वो जीतसिंह के किरदार को किस रंग में देखना पसन्द करेंगे उसके पूर्वस्थापित रंग में या वैसी तब्दीली के साथ जिसका हिन्ट मैंने ऊपर दिया। पाठकों की राय को मैंने हमेशा तरजीह दी है इसलिये उम्मीद करता हूं कि इस सन्दर्भ में भी आप मुझे उससे वंचित नहीं रखेंगे।

जीतसिंह के प्रस्तुत नये उपन्यास के सन्दर्भ में मैं एक और बात अपने पाठकों की जानकारी में लाना चाहता हूं जो कि दिलचस्पी से खाली नहीं।

जीतसिंह के पिछले उपन्यास की स्क्रिप्ट जब मैंने हार्पर कालिंस के हवाले की थी तो मैंने उपन्यास के पांच नाम सुझाये थे जिनमें दो नाम 'गोवा गलाटा' और 'मुझसे बुरा कौन' भी थे। जो नाम चुना गया, वो 'गोवा गलाटा' था क्योंकि वो पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'कोलाबा कांस्पीरेसी' से ताल बिठाता जान पड़ता था लिहाजा मैंने पाठकों को खबर करना शुरू कर दिया कि प्रकाशनाधीन आगामी उपन्यास का नाम 'गोवा गलाटा' था।

फिर एक रोज मुझे सम्पादक महोदया का फोन आया कि उनकी सेल्स टीम की राय में सेल्स के लिहाज से 'मुझसे बुरा कौन' नाम ज्यादा दमदार लगता था लिहाजा उपन्यास का नाम वो रखा जाना चाहिये था। मैंने इस आधार पर सख्त ऐतराज जताया कि 'गोवा गलाटा' नाम पाठकों की जानकारी में जा चुका था, पसन्द किया जा चुका था इसलिये अब नाम तब्दील करना गलत था, नाजायज था। मेरे ऐतराज से प्रकाशक को इत्तफाक हुआ और नतीजतन 'गोवा गलाटा' नाम ही बरकरार रहा।

अब कहना न होगा प्रस्तुत उपन्यास को लिखते वक्त मुझे नाम के चयन की कोई दिक्कत जो अक्सर होती थी न हुई क्योंकि प्रकाशक का, उसकी सेल्स टीम का पसन्दीदा नाम तो पहले से ही तैयार था जोकि 'गोवा गलाटा' का नहीं रखा जा सका था।

लिहाजा प्रस्तुत उपन्यास का फाइनल, स्वीकार्य, नाम 'मुझसे बुरा कौन'।

यहां अब ये विडम्बना देखिये कि जो नाम लेखक और प्रकाशक दोनों की सम्मति से पास था, माकूल था, उसको मेरे हितचिन्तक, करीबी, पाठक दोस्तों जैसे पाठक नकारने लग गये; बोले, नाम 'कोलाबा कांस्पीरेसी', 'गोवा गलाटा' जैसा, उसी तर्ज और मिजाज का होना चाहिये था जैसा मैं चाहकर भी गढ़ न सका।

अब आप ही फैसला करेंगे कि 'मुझसे बुरा कौन' प्रस्तुत उपन्यास के लिये मौजूं नाम है या नहीं! वैसे शेक्सपियर को याद करें तो नाम में क्या रखा है!

यहां इस बात का जिक्र अनुचित न होगा कि इस नाम की सार्थकता स्थापित करने के लिये मैंने बड़े यत्न से उपन्यास के मिजाज का बखान करती वो चन्द सतरें बनायीं जो कि आपने टाइटल की बैंक में छपी देखीं।

उपन्यास कैसा बन पड़ा है, इसका फैसला हमेशा की तरह आपने ही करना है। इसके प्रति आपकी अमूल्य, निष्पक्ष, निर्भीक राय की मुझे प्रतीक्षा रहेगी। राय कैसी भी हो, मेरे सिर माथे होगी इसलिये बेहिचक लिखें, ये जान के लिखें कि आपकी राय की आपके लेखक के लिये बहुत अहमियत है, उसी से उसने फैसला करना होता है कि आइन्दा उसने क्या लिखना है और क्या लिखने से परहेज करना है। ताकीद है कि मैंने मैजोरिटी के साथ चलना है। अगर मैजोरिटी कहती है कि उपन्यास बढ़िया है तो यकीनन बढ़िया है; अगर मैजोरिटी कहती है कि उपन्यास किसी काम का नहीं तो भले ही अपनी निगाह में मैंने कोई बड़ा कमाल ही क्यों न कर दिखाया हो, वो जरूर खामियों से भरपूर है जिससे मुझे इबरत हासिल करना है और आइन्दा बेहतर लिखकर दिखाना है।

कारोबारी लेखन ऐसे ही चलता है जो स्वान्तः सुखाय होने की जगह जनता सुखाय होता है- होना ही चाहिये। हलवाई ने जिनके लिये मिठाई बनाई जब वो उन्हें ही बद्मजा लगी तो हलवाई के कारोबारी मिशन को फेल ही तो माना जायेगा क्योंकि मिठाई कोई अपने लिये तो बनाता नहीं!

मैं बड़े हर्ष के साथ सूचित करता हूं कि मेरे पूर्वप्रकाशित उपन्यास 'क्रिस्टल लॉज' को 'गोवा गलाटा' से भी ज्यादा वाहवाही हासिल हुई है और ये लेखकीय लिखने के वक्त तक मुतवातर हासिल हो रही है। ये मेरे लिये बहुत सुखद आश्चर्य है, बहुत हौसला अफजाह बात है कि अब तक हर बार ऐसा हुआ कि हार्पर कॉलिंस से जो भी नया उपन्यास छपा वो वहीं......

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:मुझसे बुरा कौन | Mujhse Bura Kaun
Author:Surendra Mohan Pathak
Total pages:242
Language: हिंदी | Hindi
Size:5.6 ~ MB
Download Status:Available


Mujhse Bura Kaun written by Surendra Mohan Pathak | Ebook size 5.6 MB | Includes 242 Pages | Find the free PDF download link of “Mujhse Bura Kaun” below and read it right away.

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