मैंने मांडू नहीं देखा | MAINE MANDU NAHIN DEKHA HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

निर्मल वर्मा बोले थे : स्वदेश जी, आप अब बिल्कुल ठीक हैं। आपकी आँखों में वही पहलेवाली चमक है।

सुनकर पहले सोचा, शायद निर्मल ने यह बात मेरा हारा हुआ हौसला बढ़ाने के लिए कही हो। फिर याद आया कि उनकी आब्ज़रवेशन न कभी गलत होती है और न वे झूठ कहते हैं-मैं सचमुच थोड़ा खुश हुआ, अँधेरे से उजाले में आने की निडर खुशी।

मेरे ठीक होनेवाली बात उन्होंने शीला सन्धू के घर में बताई, जहाँ हम थोड़े-से लोग 1996 के किसी ठंडे महीने की एक सर्द रात में साथ थे।

सात वर्ष मैं एक गहरी काली खाई में रहा। भाषा का इस्तेमाल भी धीरे- धीरे भूल गया। लेकिन अँधेरे से बतियाता रहता था अँधेरे की भाषा में। एक लगातार अशान्त रह रही आत्मा विचित्रा भाषाएँ सीख लेती है। और इसके शब्द नहीं होते किसी भी शब्दकोश में।

जब पता चल जाए कि रोग असाध्य है तो सब साथ छोड़ देते हैं-दोस्त भी, और चाहनेवाले भी। केवल दो लोग खाई के मुँह पर खड़े रहे-मेरी पत्नी गीता और मेरे दोस्त विकासनारायण राय। लेकिन बाहर निकलने के लिए पहली छलाँग तो मुझे लगानी थी। और नहीं लगाई यह छलाँग सात वर्ष, और नहीं आया बाहर। मैं तेजाब की नदी में तैर रहा था। लगा दी मैंने एक दिन एक छोटी-सी छलाँग और पकड़कर खींच लिया बाहर मुझे गीता और विकास ने। ले आए घर चंडीगढ़ के बहुत बड़े अस्पताल से। वह अस्पताल जहा के डॉक्टर आकाश से उतर आए देवता थे और नर्से फ़्लोरेन्स नाइटेन्गेल। अस्पताल में जब मुझे इंटेन्सिव केयर यूनिट से बाहर लाया गया, लगभग छूने की दूरी अस्पताल में जब मुझे इंटेन्सिव केयर यूनिट से बाहर लाया गया, लगभग छूने की दूरी पर खड़ी मृत्यु को परास्त करने के बाद, तब डनहें पता चला कि रोगी स्वदेश दीपक लेखक है। उन सबका प्यार एक रूके हुए झरने की तरह फूट पड़ा। पता नहीं, डॉक्टर को लेखक से निजी प्यार क्योंकर हो जाता है, इस शिक्षा के बावजूद कि मरीज से उचित दूरी बनाए रखें, ताकि उसके मर जाने पर निजी दुख न हो। उन्हें हैरानी होती थी कि मैं हमेशा अंग्रेजी क्यों बोलता था। असाध्य रोग हो तो हमें अपनी मातृभाषा बोलनी भी भूल जाती हैं, क्योंकि हमारा वास इन दिनों वर्जित स्मृतियों के देश में होता है। तब हम विदेशी स्वप्नलोक में चले जाते हैं।

घर आया। मुझे उजाले से डर लगना शुरू हो गया। सात वर्ष तलहीन खाई में रहने के बाद उजाला शत्रोपक्ष का योद्धा था। कमरे के बाहर निकलना बंद। गीता और विकास को डर कि कहीं यह दूसरा आक्रमण न हो, जिससे साक्षात् प्रभु जी भी हाथ पकड़ बाहर न निकाल सकेंगे। लगातार युद्धरत रहें तो शरीर के साथ आत्मबल भी कमजोर पड़ जाता है। मैं जो कुछ कहूँ, विकास को उसमें विश्वास हो जाता है। न वह बहस करता है, न हल्के दोस्तों की तरह हल्की सलाह देता है-स्वदेश, हिम्मत रखो। जल्दी ठीक हो जाओगे हिम्मत जैसे कि कोई रूठी हुई प्रेमिका हो जो लौट आएगी। खुरच ली जाती है हिम्मत भी, जब शरीर कौंचा जा रहा हो आधुनिक मेडिकल यन्त्रों से। तीन फुट ऊपर उठ जाता है शरीर कौंचा जा रहा हो आधुनिक मेडिकल यन्त्रों से। तीन फुट ऊपर उठ जाता है शरीर जब बिजली का झटका लगाया जाता है। तब यह नासमझ लोग बन जाएँगे एक आउटसाइडर बाहरी आदमी। मेरे लिए सब कुछ डरावना, घिनावना बन गया था-मैकाबर।

विकास ने पूछा : जैसी डॉक्टरों की हिदायत थी, टहलने जाते हैं:

स्वदेश: नहीं। डर लगता है।

विकास : लगेगा ही, सात साल से कमरे से बाहर जो नहीं निकले।

मुझे छोटी-सी खुशी मिली कि किसी ने तो मेरा कहा सच माना, लैक्चर नहीं पिलाया।

विकास : चलिए। कुछ दिन दिल्ली हो आते हैं। मैं भी वहाँ अकेला रह रहा हूँ इन दिनों।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:मैंने मांडू नहीं देखा | Maine Mandu Nahin Dekha
Author:Swadesh Dipak
Total pages:376
Language: हिंदी | Hindi
Size:5.8 ~ MB
Download Status:Available


Maine Mandu Nahin Dekha written by Swadesh Dipak | Ebook size 5.8 MB | Includes 376 Pages | Find the free PDF download link of “Maine Mandu Nahin Dekha” below and read it right away.

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