हिंदू संस्कृति और पर्यावरण | HINDU SANKRUTI AUR PARYAVARAN HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

आज जब हम अपने चारों ओर देखते हैं तो लगता है कि भारत ने सभी क्षेत्रों में अच्छी प्रगति की है। उसकी जरूरतें काफी हद तक पूर्ण हो रही हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि इतनी तरक्की के बावजूद मानव सुखी और संतुष्ट नहीं है, कहीं न कहीं उसके मन में असन्तोष है। वह सभी स्तरों पर अनेकानेक समस्याओं का सामना कर रहा है। इनमें से एक समस्या जो सबसे गंभीर रूप में हमारे सामने मुँह बाए खड़ी है वह है, 'पर्यावरण प्रदूषण'। यह एक विश्वव्यापी समस्या है। 'प्रकृति का चक्र' टूटने से यह समस्या पैदा हुई है। क्यों टूटा प्रकृति का चक्र ? अधिक सुखी होने की लालसा में हमने उपभोग बढ़ाया, उपभोग की पूर्ति के लिए अधिक उत्पादन किया, और अधिक उत्पादन हुआ प्रकृति संतुलन की कीमत पर। ध्यान देने की बात यह है कि प्रकृति संतुलन को दरकिनार कर जो उत्पादन की बहुलता की गई वह मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि भोग लालसा की पूर्ति के लिए की गई और इस अधिक उत्पादन से प्रकृति का विनाश हुआ। प्रकृति का यही विनाश हमारे दुःख का कारण बन गया।

ऐसा क्यों ?

क्या विडम्बना है कि सुख प्राप्त करने के लिए हमने दुःखों को जन्म दिया। अतः कहीं न कहीं विसंगति अवश्य है। चाहे यह हमारे सोच में हो या मौजूदा व्यवस्था में हो। प्रत्येक व्यवस्था एक निश्चित चिंतन का परिणाम होती है। इससे तय है कि यह विसंगति भी हमारी सोच का नतीजा है। हमें देखना चाहिए कि इसका उद्गम कहाँ है ? हमारा आज का चिन्तन पुराने पश्चिमी चिन्तन से प्रभावित है। आज की व्यवस्था और उसका चरित्र, वर्तमान सोच और विकास का मॉडल सभी पाश्चात्य हैं।

पश्चिम का मशीनी विश्व दृष्टिकोण

जब कोई चिन्तन दो-ढाई शताब्दी तक प्रभावी बना रहता है तो उससे आम जन की सोच प्रभावित होना स्वभाविक है। इससे जन-रुझान और रहन-सहन पर असर पड़ता है। जिन्दगी एक विशेष सांचे में ढल जाती है। संस्कृति और सभ्यता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मशीनी विश्व के दृष्टिकोण ने जीवन को वस्तुवादी बनाया। इसके अनुसार जब यह बात प्रमाणित है कि मृतक के भौतिक अवशेष के कणों में समानता नहीं है तो यह बात भी सही है कि जो कुछ हम प्रकृति में चारों ओर देखते हैं उसमें भी समानता नहीं है। समानता के अभाव में जीवन की भौतिकता एक ऐसी दौड बन गया है जिसमें हर संसाधन का शोषण कर बलशाली द्वारा जीतने की स्पर्धा आरंभ हो गई है। जब सभी इस प्रकार अंधाधुंध शोषण करने वाले बन गए हैं तो इस शोषण की स्पर्धा में दोष किसे दिया जा सकता है? इसका दुष्परिणाम चाहे मनुष्य को भुगतना पड़े अथवा प्रकृति को अथवा धरती माता को। दुनिया के इस मशीनी नजरिये और जीवन पद्धति के प्रभाव के कारण जिन्दगी का भौतिकीकरण, व्यक्ति में बदलाव, समाज और पर्यावरण का क्षरण शुरू हो गया। व्यक्तिगत आधार पर भौतिकवाद.......

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:हिंदू संस्कृति और पर्यावरण | Hindu Sankruti Aur Paryavaran
Author:Suruchi Prakashan
Total pages:20
Language: हिंदी | Hindi
Size:6.3 ~ MB
Download Status:Available


Hindu Sankruti Aur Paryavaran written by Suruchi Prakashan | Ebook size 6.3 MB | Includes 20 Pages | Find the free PDF download link of “Hindu Sankruti Aur Paryavaran” below and read it right away.

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