Free Hindi Book Dukh Ke Do Din In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
'दुःख के दो दिन' मेरा पहला कविता संग्रह है। अपनी कविताओं को पुस्तककार रूप में लाना एक बड़ा साहसिक कार्य है। इससे पूर्व मैं कितना ही कुछ लिखती रही जो यहाँ-वहाँ बिखरा रहा है। मेरी कितनी ही डायरी ऐसी हैं जिनमें अभी भी ऐसी सामग्री लिखी पड़ी है जिनको सुधार कर के पुनः एक नया काव्य संकलन तैयार हो सकता है। लेकिन जैसा मैंने कहा कि अपने लिखे हुए को एक किताब में पाठकों के बीच रख पाना एक बड़ा साहसिक कार्य होता है। पिछले एक वर्ष में मुझमें यह साहस कहाँ से आया मैं नहीं जानती। मुझे हमेशा से लगता रहा कि मेरा लिखा हुआ शायद उस स्तर का नहीं है जिसे पुस्तक के रूप में लाया जा सके, लेकिन मैं एक बात हमेशा से जानती थी कि मैं सीधा सपाट लिख के भी गहरा लिख सकती हूँ। मुझमें अपनी कविताओं को पुस्तक रूप में ले आने का साहस और आत्मविश्वास मेरे आसपास के लोगों ने मुझे दिया, मेरी कविताओं की स्पष्ट आलोचना करने में और मुझे आगे बेहतर लिखने को प्रेरित करने में मेरी 'माँ' का एक बड़ा योगदान है। सच कहूँ तो मुझमें अपनी किताब प्रकाशित करवाने का पूरा आत्मविश्वास उन्हीं का ही दिया है। मेरी 'माँ' वो पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने मुझे कहा था कि मैं ऐसे ही लिखती रहे और अपनी किताब प्रकाशित करवाऊं, शायद मेरी कविताओं को उनसे बेहतर समीक्षक और एक पाठक मिल ही नहीं सकता, मेरा लिखा हुआ जितना सीधा सरल भाषा में होता था, वह उतना ही ज्यादा पढने वालों को आकर्षित किया करता। मैंने कभी खुद को एक अच्छा कवि नहीं माना।
पर हाँ, अपनी भावाव्यिक्ति के प्रति मैं हमेशा से भी सचेत रही। एक अच्छा कवि कैसा होता है यह आकलन भले ही मेरे पास न हो पर हाँ मैं अपने लिखे हुए से एक साधारण से साधारण पाठक की संवदेनाओं को शब्दांकित कर सकूँ यही मेरे लिए संतोष का विषय रहा है। लिखने का सुख यही है कि एक लेखक का लिखा हुआ, जिसमें वह अपना भोगा हुआ यथार्थ तो लिखे पर उसका वह लिखा हुआ अनगिनत पाठकों के मर्म को स्पर्श करे। ऐसा होने पर ही किसी भी लेखक के लिखे हुए को सफल लेखन माना जायेगा। हमारे लेखन की स्तरीयता की कसौटी क्या है यह तो आज के आलोचक ही जानें। किन्हीं नकारात्यक विचारों से घबराकर अपनी क्षमता पर संदेह करना अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा और ईश्वरीय शक्ति को नकारने जैसा है। फिर काव्य प्रतिभा या लेखन कौशल तो स्वयं 'माँ शारदे' की कृपा से ही संभव है। मैं अपने लिखे हुए से जन-जन की पीड़ा तक पहुँच सकूँ, अनकहे को वाणी दे सकूँ, कुछ ऐसा लिख सकूँ जो कि वर्षों के बाद भी साधारण जन के लिए प्रासंगिक रहे, यही मेरी काव्य प्रतिभा की सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
आज 4 नवंबर, २०२३ को अपनी 'माँ' की प्रथम पुण्यतिथि पर मैं अपना पहला काव्य संकलन उनके श्री चरणों में अर्पित करती हूँ। मेरी माँ के मुझमें जगाये हुए आत्मविश्वास, उनके स्रेह, उनके संस्कार और मुझे लेकर उनके जो भी सपने थे, उन सभी के प्रति नतमस्तक होते हुए यह काव्य संकलन उनके प्रति मेरी अपार श्रद्धा और प्रेम अर्पण का मेरा प्रथम प्रयास है। माँ का आभार या ऋण चुका पाना हम साधारण प्राणियों के बस की बात नहीं हो सकती। माँ तो माँ होती हैं। माँ हमारे साथ प्रत्यक्ष रूप से रहें न रहें पर उनके व्यक्तित्व की झलक उनके बच्चों में सदा विद्यमान रहती है।
अपने पहले काव्य संकलन 'दुःख के दो दिन' की आधारभूत प्रेरणा अपनी 'माँ' को स्मरण में रखते हुए मैं वैशाली अपना प्रथम लेखकीय प्रयास आप सभी के समक्ष रखती हैं।
आशा है मेरा लिखा हुआ उन सभी की संवदेनाओं को उकेर सकेगा जिन्होंने स्वयं ही अपने अंधकार से प्रकाश तक की यात्रा को संभव किया है, जो मेरी ही तरह गहन वेदना से उपजे जीवन सत्य को अर्जित कर अपनी कर्म यात्रा को प्रशस्त कर रहे हैं।
वैशाली
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | दुख के दो दिन | Dukh Ke Do Din |
Author: | Vaishali |
Total pages: | 88 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 1.2 ~ MB |
Download Status: | Available |

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