Free Hindi Book Vaidik Shatchakra Mandal In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
शरीरस्थ षट्चक्र मण्डल निरूपण
प्रकरण १
शरीरस्थ प्राणवाही नाड़ियों के जाल या नाड़ीचक्र
योगाभ्यासियों के उपकारार्थ योगज्ञ ऋषियों ने अपने योग ऐश्वर्यबल द्वारा ब्रह्माण्ड और मानव शरीर (पिण्ड) की रचना के मूलतत्त्वों का साक्षात्कार अथवा यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् ब्रह्माण्ड (लोक) और पुरुष को समान बताया है।
इन दोनों के यथार्थ ज्ञान के लिये इस पाञ्चभौतिक मनुष्य शरीर में जिन मुख्य प्राणवाही नाड़ियों (nerves) के संधिस्थानों या जालों (plexuses) में योगियों ने प्राणायाम के द्वारा अपनी जीवशक्ति को चेतन कर अपने प्राण को ब्रह्मरन्ध्र में प्रवेश कराया, तथा अपनी सुषुम्ना नाड़ी (spinal cord) के अन्तर्गत स्थित प्राणवाही नाड़ियों की ग्रन्थियों का भेदन कर शनैः शनैः अपने शिरस्थ सहस्रदलपद्म में कुण्डलिनी को पहुँचाया जाता है।
योगाभ्यास और रोगचिकित्सा दोनों के लिये शारीर-ज्ञान की आवश्यकता
योगियों और चिकित्सकों दोनों के लिये मनुष्य-शरीर का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। यह मानव-शरीर ऐसा पुरुष-शरीर है, जिसको ऋषियों और योगियों ने लोक के समान बताया है। आयुर्वेद में चरक ने लोक और पुरुष को समान कहा है। तन्त्र शास्त्र में शरीर को ‘खुद्र ब्रह्माण्ड’ कहा गया है।
हमारे स्मरणीय योगज्ञ ऋषियों ने अपने योगबल से इस मानव शरीर में प्राणतत्त्व और प्रधान प्राणवाही नाड़ियों का ज्ञान, तथा बाह्य जगत् अथवा ब्रह्माण्डीय सूर्य, चन्द्रमा, सप्तर्षि, पर्वत, समुद्र, नदियाँ (गंगा, यमुना आदि) और प्रधान तीर्थों के स्थानों का निरूपण किया था। उन्होंने अपने प्राण पर पूरा नियन्त्रण करने का अभ्यास कर लिया था।
वीर्य (बिन्दु), वायु और मन का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। ब्रह्मचर्य और प्राणों के अवरोध से योगाभ्यासी विधिवत् योगाभ्यास द्वारा अपने चित्त (मन) की चंचल वृत्तियों को रोकने का अभ्यास करते थे। फिर समाहित या एकाग्र चित्त द्वारा जिस वस्तु, ध्येय या शरीर-अवयव अथवा केन्द्र में वे संयम करते थे, उसका साक्षात्कार वे कर लेते थे।
आयुर्वेद और योगशास्त्र दोनों में योगियों के अनेक प्रकार के ऐश्वर्यबल से प्राप्त सिद्धियों का वर्णन मिलता है। योगाभ्यासी प्राणायाम द्वारा चित्त की वृत्तियों को रोकते हुए निरन्तर समाधि से अनेक सिद्धियाँ और कैवल्य पद को प्राप्त कर लेते हैं।
यम और नियमों का पालन न करने वाले योगाभ्यासियों के शरीर को हानि पहुँचती है। योग के लिये विशेष सुस्निग्ध और मधुर आहार, तथा योग के योग्य, पवित्र एवं निर्धूम स्थान की आवश्यकता होती है।
चित्त की एकाग्रता के अन्य उपाय
चित्त की एकाग्रता के अन्य उपाय भी हैं—जैसे कथा, इतिहास और पुराण-श्रवण, तीर्थयात्रा, सन्तों और विद्वानों के उपदेशों का श्रवण, तथा शास्त्रचिन्तन आदि। चित्त की शान्त दशा में भूख-प्यास तथा मल-मूत्र आदि के वेग का अनुभव नहीं होता और आत्मा तथा मन प्रसन्न रहते हैं।
योगियों ने समाधि द्वारा प्राप्त योग-ऐश्वर्यबल से शरीर और ब्रह्माण्ड के मूलतत्त्वों, तथा आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक भावों का साक्षात्कार किया। योग द्वारा ही उन्होंने नवीन भौतिक-विज्ञान (Physics) के अनेक यन्त्रों से भी कई गुना अधिक अपनी चक्षु, श्रोत्र आदि इन्द्रियों की शक्ति बढ़ा ली थी।
साधारण देखने-सुनने की शक्ति दिव्यशक्ति में परिणत हो गई थी। साधारण चक्षु और श्रोत्र दिव्यचक्षु (Tele-vision) और दिव्यश्रोत्र (Telepathy) में बदल गये थे। महाभारत और अन्य पुराणों की कथाओं में इस प्रकार की योगशक्ति के उदाहरण मिलते हैं।
आज भी भारत में कभी-कभी ऐसे योगी मिल जाते हैं, जिनमें यह शक्ति पाई जाती है। आज भारत के संन्यासियों में अनेक ऐसे तत्त्वज्ञ पुरुष वर्तमान हैं जो अपनी आत्मा और विश्व के कर्ता, पालक तथा हर्ता की आत्मा को एक ही मानते हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | वैदिक षट्चक्र मंडल | Vaidik Shatchakra Mandal |
Author: | Unknown |
Total pages: | 154 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 10.5 ~ MB |
Download Status: | Available |

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