Free Hindi Book Sri Maha Ganapati Varivasya In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
श्रीमहागणपतिवरिवस्या की रचना का मुख्य प्रयोजन तो श्रीविद्या उपासना में आनेवाले प्रत्यूहों की निवृत्ति ही है। परशुराम कल्पसूत्र में लिखा है-इत्थं सद्गुरो राहित दीक्षः महाविद्याराधनप्रत्यूहापोहाय गणनायकीं पद्धतिमामृशेत् । सद्गुरु से दीक्षा ग्रहण करके श्रीविद्या साधान में आनेवाले 'प्रत्यूहों' विघ्नों की निवृत्ति के लिये विघ्नराज गणेश की उपासना करनी चाहिये। क्योंकि आत्यन्तिक कल्याण करनेवाले जितने भी साधन है उनमें श्रीविद्या साधन ही सर्वश्रेष्ठ साधन है। और "श्रेयांसि बहुविघ्नानि" कल्याणकारी कार्यों में अनेक विघ्न आते हैं। अतः आध्यात्मिक कार्य हो या सांसारिक सर्वत्र सर्वप्रथम श्रीगणेश पूजन का विधान है- एवं परंपरा भी। छोटे कार्यों में स्मरण, बड़े कार्यों में पूजा, और महान् कार्यों में गणेश उपासना का विधान करते है हमारे वेदादि शास्त्र ।
हमारी आचार्य परंम्परा में वेद और तन्त्रशास्त्र इन दो शास्त्रों को ही परम प्रमाण माना गया है "अनन्ता वै वेदाः" जैसे वेद अनन्त है इसी प्रकार तन्त्र शास्त्र भी अनन्त है। उन मे कुछ तो भोगपरक यानि संसार कार्यों की सिद्धि के लिये, कुक्त योग और भोग परक है, उन में भोग और तत्वज्ञान है। अतः तन्त्रशास्त्र मे भोग और योग दोनों की प्राप्ति के लिये अनेक प्रकार की साधनाओं का वर्णन प्राप्त होता है। कौन साधन किस व्यक्ति के लिये उपयुक्त है यह शास्त्रज्ञ गुरु ही बता सकता है, जैसे रोगों की यथार्थ चिकित्सा विद्वान् और अनुभवी चिकित्सक ही कर सकता है, वैसे ही उपासना के द्वारा साधनाओं का रहस्य जाननेवाला और तन्त्रशास्त्र का ज्ञाता ही गुरु कहा जाता है। तन्त्रशास्त्र के दीक्षा प्रकरण मे शिष्य द्वारा गुरु की परीक्षा और गुरुद्वारा शिष्यपरीक्षा का विधान है, और सद्गुरु और सशिष्य के लक्षण भी लिखे है, अतः इन लक्षणों से युक्त गुरु और शिष्य का संबन्ध श्रेयस्कर सिद्ध होता है, नहीं तो गोस्वामीजी की कहावत चरितार्थ ही तो है-
'गुरु शिष्य अन्ध बधिर का लेखा । एक नहि सुना एक नहि देखा ।।
इस विषय मे तो कुछ विशेष वक्तव्य की आवश्यकता है परन्तु विषयान्तर और विस्तर भय से अधिक लिखना समुचित प्रतीत नहीं होता है। अस्तु अब मूल विषय पर कुछ विवेचन आवश्यक है ।
श्रीगणेश भोग प्रधान देवता है। विघ्न बाधाओं की निवृत्ति और इष्टसिद्धि की प्राप्ति होती है विघ्नराज गणेश की उपासना से । तन्तशास्त्रों में विविध प्रकार के गणेश मंत्रों की उपासना का विधान प्राप्त होता है, जैसे एकाक्षर गणेश, शक्ति गणेश लक्ष्मीगणेश, क्षिप्रप्रसादन विनायक, हेरम्ब गणेश, त्रैलोक्यमोहन गणपति, भोगगणेश, हरिद्रा गणेश उच्छिष्ट गणेश और महागणपति । शास्त्रों मे इन के मन्त्र आदि यन्त्र और.........
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | श्रीमहा-गणपति वरिवस्या | Sri Maha Ganapati Varivasya |
Author: | Shri Dattatreyanand Nath |
Total pages: | 151 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 17 ~ MB |
Download Status: | Available |

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