Free Hindi Book Shapit Log In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
शील कहती है, 'सब एक ही आग में जल रहे हैं न ? यह असन्तोष और अतृप्ति हमें समाप्त करके ही रहेगी क्या ? यह अभि शाप शाश्वत है न ?'
जय सोचता है, शील को आखिर उसकी जलन का अन्दाज क्योंकर हो गया ? असन्तोष और अतृप्ति तो जय के अपने हिस्से की चीजें हैं, शील को उनका आभास कब होने लगा ? और किस अभि शाप की बात कर रही है शील, उसका तो अभी पूरा का पूरा भविष्य पड़ा हुआ है ।
'तुम मेरे तार पर आये हो न ? मुझे विश्वास नहीं होता । सच, कमी कभी बहुत संकीर्ण बन जाती हूं।'
तो श्राज उदार बनेगी शील। जय भीतर-भीतर हंसता है। उसकी उदारता का कुछ भी लाभ उठा पायेगा क्या वह ? सच, सब कुछ परिवर्तनशील है। कितनी बदली-बदली सी लग रही है शील भी !
'तुम कुछ सोच रहे हो न ।'
'हाँ, शील । अव तक का जीवन केवल सोचते ही सोचते तो बीत गया । शायद यही नियति है अपनी ।'
'क्या सोचते हो ? जान सकती हूं क्या?' वह आंखों में देखती हुई बोलती है।
'नहीं, शील। उसकी प्रधिकारिणी शायद अब तुम नहीं रहीं। समय बहुत बलवान है।' वह बोलते बोलते रुक जाता है और फिरु बहुत गहरे खो जाता है नीलू खड़ी है। गुलाब की पंखुड़ियों सी कोमल और उसी रंग की साड़ी में लिपटी। माथे पर सोने का टीका । कानों में हीरे जड़े लम्बे-लम्बे झुमके । कलाइयों पर सोने के कंगने । निखर-निखर आया गुलाबी रंग। आम्रपाली की मुद्रा में खड़ी उसे एकटक निहारे जा रही है और वह है कि काठ बन गया है, निर्वाक्-निश्चेष्ट ।
'जानते हो, बहुत मुश्किल से ये क्षण मिले हैं। विवाह अभी-अभी सम्पन्न हुआ है। सब लोग जगे हैं। क्या देखते हो ?' उसकी ग्रावाज की मधुरता जैसे पहले से बढ़ गयी है अब भी कितनी निर्द्धन्द्ध है निलिमा। पर वह कुछ नहीं बोल पायेगा। कुछ नहीं बोल पाता । नहीं यह सब अप्रत्याशित नहीं है। इस सवको घटना था और इसमें शायद बहुत हद तक उसकी मूक सहमति भी थी। पर आज उसे लग रहा है, इन सब को झेलना आसान नहीं है।
'नीलू..!' वह मुश्किल से मुँह खोलता है। लगता है जीभ कहीं तालू से चिपक चुकी है।
'बुद्ध हो। किसी के बना देने से मैं किसी और की योड़े हो गयी।' वह समीप आकर बोलती है।
वह आगे बढ़ता है, पर पैर एक कदम के बाद रुक जाते हैं।
'हिचकते क्यों हो ? मेरे इसी रूप के लिये तुम ललच रहे थे ? याद है क्या कहा था तुमने नीलू मेरी एक ही ख्वाहिश है कि मैं तुझे दुल्हन के रूप में देखता। कोई खास अन्तर तो नहीं श्रा गया।" बया कुछ बोले जा रही है नीलू । क्या सच, उसने नीलू के इस रूप की कामना की थौ ?
'पर नीलू।' वह कठिनाई से बोल पाता है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | शापित लोग | Shapit Log |
Author: | Bhagvati Charan Mishra |
Total pages: | 122 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 4 ~ MB |
Download Status: | Available |

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