Free Hindi Book Shakti Jagaran In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
आज साधना की चर्चा करते समय सबसे बड़ी मिसाल हो रही है - इस जबलपुर नगरी में माँ नर्मदा के तट पर। माँ नामकरण की साक्षात् शिव की आराधना है। हमारे मनीषियों ने माँ नर्मदा को कुण्डलिनी रूप में माना है। इसलिए हमारे महापुरुषों ने, साधकों ने, नवादा के किनारे की साधना को विशेष महत्वपूर्ण प्रदान किया है।
तो आइए - साधना का क्रम निर्धारित करें। आप पहले सिद्धासन में बैठें। सिद्धासन का मतलब है - अपने बाँए पैर की एड़ी को मलमूत्र त्याग के स्थान के मध्य में जगह और दाहने पैर की एड़ी को इसके ऊपर रख लें और स्थिर बैठें। शरीर बहुत उन्नत न हो, बहुत कठोर न हो, मेरुदंड कसा हुआ न रहे, सीधा स्थान। अपनी त्रिकुटी के मध्य भाग को देखें, जिह्वा को आप तालुका के साथ सटा लें और बांध कर लें और हाथों को अपने पैरों की उंगलियों पर रखें - इस प्रकार से बैठ जाओ (चित्र देखें)।
अब आप हमारे साथ पहले तीन बार ॐ का उच्चारण करेंगे। पहले ओंठ-ओन्ठ कार्टून इसके बाद कुछ देर बाद ॐ की ध्वनि उच्चारित करेंगे ॐ .... की ध्वनि पूर्ण होने पर - ॐ में सम्मिलित होने का प्रयास करेंगे (अभ्यास)। एक ही शब्द में ''ॐ'' समाहित होने का प्रयास करेंगे। फिर शनैः शनैः श्वास छोड़ेंगे - ॐ की धारणा करते हुए पुनः ॐ को उठायें अब ओंठ बंद कर लें। जब ओंठ बंदहोगा पहला व्याख्यान तब ध्यान से देखेंगे तो मस्तिष्क में एक प्रकार का कम्पन होने लगेगा। इसे "ओम् (ओंकार) वृत्त" कहा गया है। ओंठ बन्द कर ओम् के उच्चारण का अभ्यास करें (अभ्यास)। थोड़ी देर रोकें उसी शब्द में समाहित होने का प्रयास करें। फिर शनैः शनैः श्वास छोड़ें। पुनः ओम् के उच्चारण का अभ्यास ...
पातंजलि ऋषि ने योग सूत्र का आरम्भ करने के पूर्व "चित्त वृत्ति निरोधः योगः" चित्त वृत्तियों का निरोध करना योग बताया है। परमात्मा कृष्ण ने "योगः कर्मसु कौसलम्" इस रूप में योग को समझा है।
हमारे शरीर में तीन बन्ध हैं उड़ियान बन्ध, जालन्धर बन्ध और मूल बन्ध। जब सृष्टि का आरम्भ हुआ उस समय ज्ञानमय सृष्टि थी। व्यक्ति को बोध था। उसको अपने आपको जानने के लिए साधना की आवश्यकता नहीं थी। भगवान हिरण्यगर्व ने उस ज्ञान सृष्टि के अन्तर्गत अपने मानसिक पुत्र सनत, सनन्दन, सनातन कुमार से सृष्टि के विस्तार की बात कही कि तुम सृष्टि का विस्तार करो। सनकादिकों ने कहा कि सब जगह जब पूर्ण परमात्मा ही व्याप्त है तो हम सृष्टि किसकी करें। तो भगवान हिरण्यगर्व को यह महसूस हुआ कि ज्ञान सृष्टि के द्वारा सुष्टि का विकास सम्भव नहीं उन्होंने कर्ममय सृष्टि आरम्भ की। शरीर के अन्दर विकसित होने वाली चेतना के जो मार्ग थे उनकी गति अवरुद्ध कर दी बन्धों के द्वारा (मूल, जलन्धर, उड़ियान बन्ध के द्वारा) देखें)।
दक्ष प्रजापति आदि अपने पुत्रों को उन्होंने मैथुनी सृष्टि के द्वारा पैदा किया। इस प्रकार सृष्टि का विस्तार और विकास तो हुआ किन्तु ज्ञान लुप्त हो गया, मनुष्य की चेतना अवरुद्ध हो गई।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | शक्ति जागरण | Shakti Jagaran |
Author: | K N Dube |
Total pages: | 84 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 85 ~ MB |
Download Status: | Available |

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