Free Hindi Book Azadi Ki Khoj In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
आज़ादी में ही सत्य उद्घाटित हो सकता है
कैसे कोई तबदील हो, कुछ 'बनने' की प्रक्रिया से परे बस अस्तित्व की सहज स्थिति में रूपांतरण कैसे हो? वो शख्स जो कुछ बन जाने के चक्र में फँसा है, संघर्ष और कामनाओं में उलझा है, वो खुद ही से भिड़ा हुआ है-वो उस स्थिति को कैसे जाने जो सद्गुण है, स्वतंत्रता है? उम्मीद है कि मैं सवाल को स्पष्ट कर पा रहा हूं। यानी कुछ ना कुछ होने-बनने के लिए मैं बरसों से जद्दोजहद करता आ रहा हूं: ईर्ष्या से मुक्त होने के लिए, उससे पीछा छुड़ाने के लिए। कैसे मैं इसे छोडूं और सहज हो जाऊं, जैसा हूं। क्योंकि जब तक मैं ऐसा कुछ करने के चक्कर में रहता हूं, जिसे मैं सदाचार कहता हूं, पुण्य कहता हूं तो मैं ज़ाहिर तौर पर अपने ही चक्रव्यूह में फंस के रह जाता हूं; और उस चक्रव्यूह में कोई स्वतंत्रता नहीं होती। सो मैं बस इतना ही कर सकता हूं कि सजग हो जाऊं, होने-बनने की अपनी इस प्रक्रिया के बारे में शांत, सजग। अगर मैं छिछला हूं, उथला-उथला, तो मैं शांत रूप से इस बारे में सजग हो सकता हूं कि हां में छिछला हूं, कुछ और होने के किसी प्रयास में अटके बिना। अगर मैं क्रोधी हूं, ईर्ष्यालु या बेरहम हूं, दूसरों से जलता हूं, तो मैं उसके बारे में होशपूर्ण रह सकता हूं, बिना कोई टकराव खड़ा किए। जिस घड़ी आप किसी गुण-अवगुण में उलझते हैं, आप संघर्ष को ही बल देने लगते हैं, और यूं प्रतिरोध की दीवार को और मज़बूती दे देते हैं। प्रतिरोध की इसी दीवार को ही 'सदाचार' समझ लिया जाता है, किंतु ऐसे सदाचारी के जीवन में सत्य का दर्शन कभी नहीं हो सकता। वो तो केवल स्वतंत्र शख्स ही है जिसके दर पर सत्य दस्तक देता है, और हां, आज़ाद होने के लिए याद्दाश्त का पोषण काम नहीं आता, वह तो सदाचार है, यानी गुण-अवगुण में उलझ कर रह जाना।
सो निरंतर चलती इस जंग के बारे में, इस जद्दोजहद के बारे में हमें चौकन्ना रहना होगा। बिना किसी टकराव के, बिना निंदा के महज़ सजग, और अगर आप सचमुच ही सजग होते हैं, निष्क्रिय, लेकिन चौकसी से भरे हुए, तो आप देखेंगे कि ईर्ष्या, जलन, लोभ, हिंसा और ऐसी तमाम चीजें गायब हो जाती हैं, और तब एक व्यवस्था उभरती है- सहज-स्फूर्त, एक व्यवस्था जो सदाचार नहीं होती, एक बंद दायरे में बंधी नहीं होती। क्योंकि सद्गुण, नेकी तो स्वतंत्रता है, किसी तरह की मजबूरी नहीं है। सिर्फ आज़ादी में ही सत्य उद्घाटित हो सकता है। इसलिए नेकी ही बुनियादी मुद्दा है, न कि सदाचारी होना, क्योंकि नेकी ही व्यवस्था लाती है। वो सिर्फ सदाचारी ही है जो उलझा है, द्वंद्व में पड़ा है, वो केवल सदाचारी ही है जो प्रतिरोध के यंत्र के रूप में अपनी इच्छा शक्ति को मज़बूत करता है, और.......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | आज़ादी की खोज | Azadi Ki Khoj |
Author: | J. Krishnamurti |
Total pages: | 159 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 3.4 ~ MB |
Download Status: | Available |

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