Free Hindi Book Kriyatmaka Kundalini Tantra In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
अब्राहम मोसलोव ने कहा है- 'दृश्य तर्क सम्मत, स्पष्ट और संगत ही महत्वपूर्ण ज्ञान नहीं है, प्रत्युत वह ज्ञान भी महत्वपूर्ण है जो अदृश्य, तर्कातीत, अस्पष्ट और रहस्यपूर्ण है। उसे स्पष्ट करना ही मेरा गन्तव्य है। आज के विज्ञान की सारी दौड़ बाहर से बाहर की ही है। अन्दर झांकना इसकी सीमा में नहीं आता और जो इसकी सीमा में नहीं आता उसे वह अविश्वसनीय कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है। जिन लोगों ने बहिर्मुखी दृष्टि रखी वे विज्ञानवादी बन गये, जो अन्तर्मुखी हुए वे ब्रह्मवादी बन गये। कुछ ऐसे भी रहे जो बिन देखे ही जिये, तन्त्र ऐसे व्यक्तियों को पशु-भाव से बद्ध मानता है।
योग के विविध आयामों में कुण्डलिनी तव सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। कुण्डलिनी की अन्तर्यात्रा स्थूलतम आधार से प्रारम्भ होकर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती हुई सूक्ष्मातिसूक्ष्म का भी अतिक्रमण कर परम सत्य तक पहुँचाती है। इस साधना की उच्चावस्था में योग के अनेक आयाम और विविध प्रक्रियायें भी समाहित हो जाती हैं। इसलिये यह साधना 'सिद्धयोग' और 'महायोग' नाम से भी जानी जाती है। कुण्डलिनी आंतरिक रूपान्तरण और जागरण की वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें अस्तित्व रूपांतरण (Existencial transformation) घटित होता है।
कुण्डलिनी के 'परम सत्य' की उपलब्धि में जीवन की सारी सीमायें, विरोध, इन्द्र और पीड़ायें समाहित व शांत हो जाती है। साधक को उस उपलब्धि के लिये स्वयं के भीतर यात्रा करनी होती है, स्वयं के अस्तित्व के साथ ही श्रम करना होता है, उपलब्धि की खोज में निकलना होता है, अपनी ही वृत्तियों व अंतःस्थितियों के साथ साधना करनी होती है और अपने ही भीतर के सोये हुए चेतना केन्द्रों की शक्तियों को जगाना होता है।
आज तक कुण्डलिनी साधना का प्रयोग सामान्यतः आश्रमों में कुछ चुने हुए साधकों पर किया जाता रहा है। सामान्य जन समूह उससे बिल्कुल ही अछूता और अपरिचित रहता आया है। यह में मानता हूँ कि उस काल की उपलब्ध विधियों के अपने खतरे थे, सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों की अपनी सीमायें थी, जिसके कारण उसे गिने-चुने लोगों तक सीमित रखना एक मजबूरी थी। परन्तु आज परिस्थितियों बदल चुकी है। जन-साधारण का काम विषयक ज्ञान (Sex knowledge) बढ़ा है। इस समय यदि व्यक्ति को अन्तर्मुखी नहीं बनाया गया तो यह विस्फोटक स्थिति उत्पन्न कर सकता है। मेरी कामना है कि प्रत्येक नया दम्पत्ति शिव और शक्ति की जीवन्त मूर्ति बने। यहाँ जो ध्यान प्रक्रिया का प्रयोग दिया गया है। वह प्राचीन होकर भी अनूठा और नये अनुसंधान जैसा है। इसमें कुण्डलिनी के मार्ग में आने वाले सारे सम्भाव्य खतरों का निराकरण है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | क्रियात्मक कुंडलिनी तंत्र | Kriyatmaka Kundalini Tantra |
Author: | Maharishi Yatindra |
Total pages: | 459 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 169 ~ MB |
Download Status: | Available |

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