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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्व संध्या पर ब्रिटिश आर्मी कमांड ने खुद को अपने अस्तित्व पर मँडराते संकट का सामना करते हुए पाया था। लंदन गंभीर खतरे की हालत में था। विंस्टन चर्चिल नामक एक ख़ास व्यक्ति के मुताबिक़, इस शहर ने 'दुनिया के सबसे बड़े लक्ष्य की' शक्ल ले ली थी, एक क़िस्म की विशालकाय गाय की, शिकारी पशुओं को आकर्षित करने के लिए बाँध दी गई बेशक़ीमती मोटी गाय की शक्ल ।
ज़ाहिर है कि यह शिकारी पशु था, एडोल्फ हिटलर और उसकी सेनाएँ। अगर ब्रिटेन की आबादी का मनोबल हिटलर के बमवर्षकों के आतंक से टूट जाता, तो यह इस राष्ट्र के ख़त्म हो जाने का संकेत होता। एक ब्रिटिश जनरल ने आशंका जताई थी कि "यातायात थम जाएगा, बेघर लोग मदद के लिए चिल्लाएँगे, शहर में अराजकता फैल जाएगी।" लाखों नागरिक तनाव से भर उठते, और फ़ौज तक को लड़ने की गुंजाइश नहीं होती, क्योंकि वह पगलाई भीड़ को सँभालने में बुरी तरह व्यस्त होती। चर्चिल का पूर्वानुमान था कि लंदन के कम-से-कम तीस से चालीस लाख लोग शहर छोड़कर भाग जाएँगे।
अगर कोई उन तमाम संभावित विपत्तियों के बारे में पढ़ना चाहे, तो उसे एक ही पुस्तक को पढ़ लेना काफ़ी होगाः सिकोलॉजी डे फूले 'भीड़ का मनोविज्ञान', जो उस समय के सर्वाधिक प्रभावशाली फ़्रांसीसी विद्वान गुस्ताव ले बॉन ने लिखी थी। हिटलर ने इस पुस्तक को शुरू से आख़िर तक पढ़ा था। मुसोलिनी, स्तालिन, चर्चिल और रूज़वेल्ट ने भी उसी तरह पढ़ा था।
संकट की घड़ियों में लोग किस तरह की प्रतिक्रिया करते हैं, ले बॉन की यह पुस्तक उसका आँखों देखा हाल जैसा वर्णन प्रस्तुत करती है। वे लिखते हैं कि लगभग तुरंत ही "लोग सभ्यता के पायदान की एक साथ कई सीढ़ियाँ उतर जाते हैं।" दहशत और हिंसा भड़क उठती है, और हम मनुष्य अपने वास्तविक स्वभाव को उजागर कर देते हैं।
19 अक्टूबर 1939 को हिटलर ने अपने सेनापतियों को जर्मनी के हमले के बारे में हिदायतें दीं। उसने कहा, "ब्रिटेन के प्रतिरोध-के-संकल्प के मर्म पर लुफ्तवाफ़े का बेरहम इस्तेमाल तयशुदा वक़्त पर किया जा सकता है और किया जाएगा।"
ब्रिटेन में हर किसी को सिर पर मँडराते ख़तरे की आहट सुनाई दे रही थी। जब कुछ नहीं सूझा, तो लंदन में ज़मीन के तले शरणार्थी शिविरों का जाल बिछाने की योजना पर विचार किया गया, लेकिन फिर इस योजना को इन चिंताओं के चलते त्याग दिया गया कि मुमकिन है, दहशत से जकड़ी हुई आबादी उन शरणस्थलों से कभी बाहर ही न आए। अंततः, युद्ध के संभावित शिकारों की पहली लहर की देखभाल के लिए शहर के बाहर हड़बड़ी में मानसिक रोगों के कुछ चिकित्सालय खोले गए। और फिर हमले की शुरुआत हुई।
7 सितंबर 1940 को जर्मनी के 348 बमवर्षक विमानों ने इंग्लिश चैनल को पार किया। मौसम सुहावना था, जिसकी वजह से लंदन के बहुत से लोग घरों से बाहर थे, इसलिए जब शाम 4.43 बजे सायरन बजा, तो सारी आँखें आसमान की ओर उठ गईं।
सितंबर का वह दिन इतिहास में ब्लैक सेटरडे के नाम से, और उसके बाद जो हुआ उसे 'बम वर्षा' के नाम से दर्ज किया जाने वाला था। अगले नौ महीनों के दौरान लंदन पर 80,000 से ज़्यादा बम बरसने जा रहे थे। सारे इलाक़े पूरी तरह नष्ट हो गए। राजधानी की कोई दस लाख इमारतें श्रतिग्रस्त हो गईं या पूरी तरह से तबाह हो गईं, और ब्रिटेन में 40,000 से ज़्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी।
तब अँग्रेज़ों ने किस तरह की प्रतिक्रिया की थी? जब देश पर महीनों बम बरसते रहे, तब क्या हुआ? क्या लोग पगला गए थे? क्या उन्होंने वहशियों की तरह आचरण किया था?
मैं कैनेडा के एक मनोचिकित्सक के आँखों देखे हाल के बयान के साथ षुरुआत करता हूँ।
अक्टूबर 1940 में, डॉ. जॉन मैकर्डी ने लंदन के दक्षिण-पूर्व में उस ग़रीब इलाक़े की यात्रा की थी, जिसने ख़ासतौर से सबसे ज़्यादा आघात झेला था। वह इलाक़ा कुल मिलाकर बमों के गिरने से बने गड्डों और ढही हुई इमारतों के मलबे के रूप में ही बचा रह गया था। अगर कोई एक जगह निश्चित तौर पर अराजकता की गिरफ्त में आई थी, तो वह यही थी।
हवाई हमले की चेतावनी दिए जाने के कुछ पलों बाद वहाँ जो कुछ इस डॉक्टर ने देखा, वह क्या था? "छोटे बच्चों ने मैदानों में अपना खेलना जारी रखा, दुकानदार अपने भाव-ताव में लगे रहे, पुलिसकर्मी अपनी राजसी ऊब के साथ यातायात को निर्देश देते रहे और साइकिल सवार मौत और यातायात के नियमों की उपेक्षा करते रहे। जिस हद तक मैं देख सका, ऐसा कोई नहीं था, जिसने आसमान की तरफ़ सिर उठाकर देखा भी हो।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | ह्यूमनकाइंड | Humankind |
Author: | Rutger Bregman |
Total pages: | 439 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 7 ~ MB |
Download Status: | Available |

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