Free Hindi Book How Did We Know About Photosysthesis In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
हम सब लोग सांस लेते हैं। हम अपने फेंफड़ों में हवा अंदर खींचते हैं और बाद में उसे नाक से बाहर छोड़ते हैं। जिस हवा का हम उपयोग करते हैं उसमें 1/5 वां हिस्सा ऑक्सीजन का होता है। हम बस ऑक्सीजन के अणुओं का इस्तेमाल करते हैं। इस ऑक्सीजन को हम शरीर में मौजूद कार्बन और हाईड्रोजन से मिलाते हैं। कार्बन, ऑक्सीजन के साथ मिलकर कार्बन डाईऑक्साइड बनती है और हाईड्रोजन, ऑक्सीजन के साथ मिलकर पानी बनता है।
जब हम बाहर सांस छोड़ते हैं तो हमारे फेफड़ों की हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कुछ कम हो जाती है। हम सांस द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड और पानी की भाप बाहर छोड़ते हैं। सांस लेने की यह प्रक्रिया 'रेसपिरेशन' कहलाती है। लैटिन के इस शब्द के मतलब होते हैं 'बार-बार सांस लेना'।
हम हमेशा सांस लेते रहते हैं। सभी मनुष्यों और जानवरों को भी ऐसा करना पड़ता है। मनुष्य और जानवर लाखों-करोड़ों सालों से इसी प्रकार सांस ले रहे हैं। फिर अब तक ऑक्सीजन खत्म क्यों नहीं हुई? ऑक्सीजन की जगह कार्बन-डाईऑक्साइड और पानी ने क्यों नहीं ले ली?
और फिर शरीर में उन तत्वों का क्या हुआ जो कार्बन और हाईड्रोजन उपलब्ध कराते थे? सांस लेते समय वे ऑक्सीजन के साथ मिलकर खत्म क्यों नहीं हुए?
हम जो भोजन करते हैं उससे शरीर में लगातार कार्बन और हाईड्रोजन की आपूर्ति होती रहती है। परन्तु भोजन में कार्बन और हाईड्रोजन कहां से आते हैं? हम विभिन्न प्रकार के पौधों के फल और सब्जियां खाते हैं। हम बहुत से जानवरों गाय, बकरी, मुर्गी का मांस भी खाते हैं। यह जीव अन्य पौधे खाकर जिन्दा रहते हैं। अंततः सारा कार्बन और हाईड्रोजन पौधों से आता है। किसी न किसी रूप में दुनिया के सभी जीव पौधों पर ही निर्भित और जिन्दा हैं।
परन्तु फिर पौधों में कार्बन और हाईड्रोजन कहां से आता है? पौधे तो कुछ नहीं खाते?
यह दो बड़े प्रश्न हैं हो जाती? हमारे खाने से सारा हमारे सांस लेने से सारी हवा क्यों नहीं खत्म भोजन क्यों नहीं खत्म हो जाता है?
हवा की अपेक्षा पौधों का अध्ययन करना कहीं ज्यादा आसान है। आप कम-से-कम पौधों को बड़ा होते हुए देख तो सकते हैं। पौधे बढ़ेंगे नहीं अगर आप उन्हें मिट्टी में बोने के बाद उन्हें पानी से नहीं सीचेंगे। ऐसा लगता है कि मिट्टी और पानी, दोनों से पौधों के विकास का पदार्थ बनता होगा।
1643 में बेल्जियम के एक वैज्ञानिक जैन बैप्तिस्ता फॉन हेल्मोन्ट (1577-1644) ने इस बारे में कुछ प्रयोग किए। उसने मिट्टी की एक निश्चित मात्रा का वजन किया और फिर उसमें एक मजनू (विलो) का पेड़ लगाया। उसने गमले को अच्छी तरह ढंक कर रखा जिससे उसके द्वारा पानी के अलावा उसमें कोई अन्य चीज न जाए। उसने पांच साल तक पेड़ को पानी से सींचा। बाद में उसने उसे उखाड़कर उसकी जड़ों की सारी मिट्टी को सम्भालकर गमले में वापिस डाला।
उसने पाया कि मजनू का पेड़ अब 146-पाउंड का हो गया था जबकि मिट्टी के वजन में सिर्फ 2-आउंस की कमी आई थी। उसे लगा कि मिट्टी से नहीं बल्कि पानी से पौधों ने अपने विकास के लिए पदार्थ बनाया होगा।
हेल्मोन्ट के जमाने में लोगों को यह नहीं पता था कि विभिन्न पदार्थों में अलग-अलग अणु होते हैं। हेल्मोन्ट को यह भी नहीं पता था कि पानी में सिर्फ ऑक्सीजन और हाईड्रोजन के अणु होते हैं जबकि पौधों में ऑक्सीजन और हाईड्रोजन के अलावा कार्बन के अणु भी होते हैं।
परन्तु मिट्टी और पानी के अलावा अन्य चीजों ने भी मजनू के पेड़ को छुआ था। पेड़ को निश्चित रूप से हवा ने स्पर्श किया था पर हेल्मोन्ट ने हवा के असर को शामिल नहीं किया। उस जमाने में सभी लोग ऐसा ही करते थे। क्योंकि हवा को कोई देख या छू नहीं सकता था, इसलिए लोग हवा के रोल को नजरंदाज करते थे।
हेल्मोन्ट ने हवा का अध्ययन भी किया पर मजनू के पेड़ के संदर्भ में नहीं। वो पहले व्यक्ति थे जिन्हें हवा अलग-अलग प्रकार की लगी। क्योंकि हवा अदृश्य और आकारहीन होती है इसलिए हेल्मोन्ट को हवा यूनानियों की 'केऑस' जैसी लगी मिलीजुली और बिना किसी आकार वाली। हेल्मोन्ट की भाषा में उस शब्द उच्चारण 'गैस' था। इसलिए आज भी हवा जैसी चीजों को हम गैस बुलाते हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | हमने फोटोसिंथेसिस के बारे में कैसे जाना | How Did We Know About Photosysthesis |
Author: | Arvind Gupta |
Total pages: | 35 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 3.7 ~ MB |
Download Status: | Available |
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