अन्तर्वेदना के स्वर | ANTARVEDANA KE SWAR HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

Antarvedana Ke Swar Hindi Book Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

समाज एक सुस्थिर शांत विकासोन्मुखी मिली-जुली सतत् चलने वाली समुचयित व्यवस्था है जो समाज के हर पहलू को प्रत्येक अंग को अपने में समेटे हुए परिवार के हर बिन्दूओं पर विहंगम दृष्टि रखता है। जीवन प्रकृत प्रदत्त प्रत्येक झंझावातों के क्रोड में ऐसा क्रम है जब निरंतर अहर्निश चलता ही रहता है। निश्चय ही समाज का हर व्यक्ति अपने मर्यादा का निर्वाह येन-केन-प्रकारेण करता ही रहता है। यह सत्य भी है कि वह उसके बिना रह नहीं सकता। प्रकृति का विकासोन्मुखी नियम अकाट्य है। प्रकृति और पुरुष का विधान उसकी अपरिमेय शक्ति का द्योतक है और उसका मिलन सृजन का स्रोत है। एक बिना दूसरा अधूरा-सा प्रतीत होता है। मानव मन अपने-अपने ढंग से चलता है। वातावरण संस्कार संगत का प्रभाव अवश्यम्भावी है उसी में उसके प्रत्येक बिंदु का सृजन होता है। उसमें उसके निर्माण बिना विकास-विनाश और उन्नति-अवनति के ताने-बाने गुने जाते हैं।

व्यक्ति का निर्माण उसके लगन परिश्रम और कार्य क्षमता पर निर्भर करता है। मन का मिलन सदा एक रस हो, शान्ति पूर्ण हो और विकासोन्मुखी हो। यह हर समय हर कही हर परिवार में समान रूप से सम्भवतः पूर्णरूपेण सर्वकालिक दृष्टिगोचर नहीं होता। इसका कारण मत्त भिन्नता के साथ सहन शीलता का अभाव ही माना जा सकता है और मन भिन्नता ही विरोधी विचार, विरोधी भाव दैनिक जीवन में किसी न किसी रूप में परिलक्षित होता है। यह व्यक्ति के स्वभाव संस्कार और वातावरण पर निर्भर करता है। परिवार व समाज में शांतिपूर्ण व प्रेम स्रेह से मिलजुल कर रहने का भाव उत्पन्न होता है।

प्रस्तुत रचना का लक्ष्य रंच अन्तर्द्वन्द्वों का उद्धरण प्रस्तुत करते हुए उसके हल का निवारण खोजना और उसका दिशा निर्देश कहाँ से प्रारम्भ हो उसका एक उचित मार्ग सहज प्रेम प्रदर्शन के साथ भावोन्मुखी एकत्व की ओर परिवार को ले जाने के प्रयास में गुम्फित है। मैंने देखा और परखा की समाज में शादी बाद (विवाहोपरांत) यो तो परिवार सुंदर ढंग से नेहपूर्ण वातावरण में चलता है। भावनाएँ एक-दूसरे से मेल खाती हुई उत्तरोत्तर बढ़ती है परंतु इसका अपवाद भी यत्र-तत्र देखने को मिलता है, ऐसा सर्वकालिक नहीं होता। किसी न किसी विषय पर विरोधाभास बढ़ते-बढ़ते परिवार में इतना दुरूह स्थिति उत्पन्न करता है की एक विकट वितण्डा खड़ा कर देता है की परिवार में टुटन-घुटन विक्षेदन तक की स्थिति उतपन्न हो जाती है। यह स्थिति परिवार समाज के लिए एक विडंम्बना ही है जिसमें व्यक्ति को येन-केन प्रकारेण जीना ही पड़ता है परंतु कभी-कभी किसी मोड़ पर अत्यधिक विरोध होने पर व्यक्ति (पति या पत्नी) सोचने के लिए विवश होते हैं और अपने मन में समाधान का एक मार्ग सुस्थिर करने को सोचते है। क्यों न कुछ धैर्य रखा जाये एवं बर्दास्त करने के साथ-साथ मन की कटुता और कुड़न को दरकिनार करते हुए मिलकर प्रेम से जीवन गुज़ारने का प्रयास किया जाये। इससे इतर कुछ दम्पति ऐसे भी होते है जिनमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम-मोहब्बत के स्थान पर कुंठाग्रस्त स्थिति में जीवन व्यतीत करने की बाध्यता बन जाती है यह सोच बनाना स्वभाविक है कि कभी भाव पुरुष या महिला दूरदृष्टि से मन को समझाकर देश काल परिस्थिति के अनुसार मन की भिन्नता को दूर करने का प्रयास करता है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:अन्तर्वेदना के स्वर | Antarvedana Ke Swar
Author:Dr. Rammurti Tripathi
Total pages:46
Language: हिंदी | Hindi
Size:0.8 ~ MB
Download Status:Available


Name of the Book is : Antarvedana Ke Swar | This Book is written by Dr. Rammurti Tripathi | The size of this book is 0.8 MB | This Book has 46 Pages | The Download link of the book "Antarvedana Ke Swar " is given Below, you can downlaod Antarvedana Ke Swar from the below link for free.

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