Free Hindi Book Adhe Adhure Hum Tum In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
चाँद छूने की ख्वाईश अधूरी ही रह गई मगर इस जिद ने मरीज-ए-दिल को दर्द सहना सिखा दिया।
फ्रेग मार्क के एक कथन से अपनी बात शुरू करता हूँ। वे कहते हैं 'सच्चा प्रेम भूत की तरह है, चर्चा उसकी सब करते हैं, देखा किसी ने नहीं। मैंने कहीं पढ़ा कि प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है, लेकिन किसका मिलन? शरीर का शरीर से मिलन या आत्मा का आत्मा से या आदमी का मतलब से। लोग कहते हैं कविता कवि के मन का दर्पण होता है। वह जो महसूस करता है या समाज में जो देखता है या कालखंड में जो घटित होता है, वह उसे शब्दों में पिरोता है। मेरी यह काव्य संग्रह "आधे-अधूरे हम-तुम" प्रेम के प्रारंभिक अवस्था यानि शैशावावस्था से लेकर, युवा होने तक फिर युवा से प्रौढ़ होते-होते, परिणय से पहले ही अलग होने की एक जीवन-यात्रा है।
कहते हैं प्रेम अनंत है, इसका ओर-छोर नहीं!... इसलिए इसको शब्दों में बयाँ भी नहीं किया जा सकता ! फिर भी अगर इसका उत्तर ही चाहिए कि प्रेम की पराकाष्ठा क्या है, तो एक शब्द में उसका उत्तर होगा, निष्काम समर्पण! प्रेम में अगर दिमाग और इन्द्रियों का हस्तक्षेप है तब प्रेम की शुद्धता बरकरार नहीं रहती। अगर इससे बचना है तो आपको प्रेम करना नहीं बल्कि प्रेम होना पड़ेगा। प्रेम की अन्तिम अभिव्यक्ति है, जब आप प्रेम करते नहीं बल्कि खुद प्रेम हो जाते हैं। परंतु आज के ज़माने में प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति है कि मैं तुम्हारी दोस्त बन के रह सकता/सकती हूँ पर तेरे साथ जीवन नहीं बिता सकता/सकती। या प्यार करता/करती हूँ पर शादी नहीं कर सकता/सकती। इसी अंतिम अभिव्यक्ति के साथ प्यार खत्म हो जाता है। तब मैंने लिखा....
मुहब्बत के सफर में.. मुकद्दर रूठ जाता है
इस राह का मुसाफिर.... अक्सर छूट जाता है
चलो साथ, करो वादे तो निभाना उमर भर विक्रम
दिल टूटे जो एक बार... तो दम छूट जाता है।
कविता एक तरह की सेल्फ थेरपी होती है और जब मैंने अपने दिल के एहसास, जज्बात और आगे जाकर दर्द कागज पर उकेरने लगा तो ऐसा लगा जैसे दिल हल्का हो गया। वक्त जो नासूर बनकर चुभ रहा था, अचानक टीस कम हो गई। इस काव्य-संग्रह ने मुझे अतीत से वतर्मान तक फिर से एक यात्रा पर ले आया। पहली मुलाकात से लेकर आखिरी मुलाकात तक, अपनत्व से मेरे काँधे पर रखा उसका प्रेम-भाव से लेकर हाथ छुड़ा कर जाती उसका बेवसीपन, सब एक चलचित्र की भाँति जीवंत हो उठा। सच कहें तो साथ छूटने का उतना गम नहीं था, जितना गम इस बात के लिए था कि वफा जो छनसे टूटा और दरक गया ताउम्र के लिए, एक हादसा में तब्दील हो गया और दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गया उमर भर के लिए।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | आधे अधूरे हम तुम | Adhe Adhure Hum Tum |
Author: | Vikramaditya Singh |
Total pages: | 101 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 2.2 ~ MB |
Download Status: | Available |

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