Free Hindi Book Maine Gandhi Ko Kyun Mara? In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
मोहनदास करमचंद गांधी लगभग 1915 में भारतीय राजनीतिक पटल पर आविर्भूत हुए और उस पर तब तक हावी रहे, जब तक उनकी जीवन-लीला नाथूराम विनायक गोडसे द्वारा समाप्त नहीं कर दी गई। 30 जनवरी, 1948 की दोपहर नाथूराम गोडसे द्वारा चलाई गई तीन गोलियों ने गांधीजी का जीवन समाप्त कर दिया। नाथूराम गोडसे ने तत्क्षण ही अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
8 नवंबर, 1948 को दिल्ली के प्रसिद्ध लाल किले के मुकदमे में अदालत के विशेष न्यायाधीश ने नाथूराम से पूछा कि उनके खिलाफ मामले के बारे में उनका क्या कहना है? अभियुक्त क्रमांक 1, नाथूराम (Not clear in Eng Version-Translated with slight change) गोडसे ने प्रतिक्रिया में एक विस्तृत बयान दिया। अदालत में दिया गया बयान यहाँ पेश किया गया है।
गोडसे के बयान के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इसका एक पूर्ववर्त अजीबोगरीब इतिहास था, या यों कहिए कि राजनीतिक भूमिका थी। मुख्य अभियोजक श्री सी. के. दफ्तरी ने अदालत से अभियुक्त नाथूराम गोडसे को उनके द्वारा तैयार किए गए बयान को सबके समक्ष न पड़ने देने की गुजारिश की और इस बात की अनुमति माँगी कि केवल उनके खिलाफ आरोपों का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने की अनुमति दे। अदालत से इस अनुरोध करने के पीछे श्री सी. के. दफ्तरी का एक छिपा हुआ उद्देश्य था। अभियोजकों ने पाया कि जो वक्तव्य या स्पष्टीकरण गोडसे देने वाले थे, उसमें हत्या के आरोपों को स्वीकार करके नाथूराम न केवल गांधी से, बल्कि सत्ता में प्रतिष्ठित पार्टी की गलतियों, चूकों, लुप्त किए गए तथ्यों, वादों और धोखों को सबके सामने लाना चाहते थे। अभियोजन पक्ष शुरू से ही गोडसे के कृत्य के पीछे का कारण और इस तरह अदालती प्रक्रिया के माध्यम से सरकार की सच्चाई को सार्वजनिक होने नहीं देना चाहते थे। न्यायाधीश श्री आत्मा चरण ने श्री दफ्तरी से पूछा-
"मैं अभियुक्त को गवाही देने से कैसे रोक सकता हूँ? अभियुक्त के पास उसके बचाव में ऐसा कृत्य करने का कोई औचित्यपूर्ण कारण हो सकता है। या, ऐसा भी हो सकता है कि उसके पास आरोपों को खारिज करने के कोई और कारण हों! आप मुझे इस बात का प्रमाण दें कि क्या आपके पास कोई अधिकार या कानून है, जो आपकी आपत्ति का समर्थन करता है?"
श्री दफ्तरी को स्वीकार करना पड़ा कि उनके पास कोई ऐसा न्यायशास्त्र या अधिकार नहीं था, जिसके तहत वे गोडसे को उनके वक्तव्य को सार्वजनिक रूप से कह सकने से रोक सकते हों। अदालत ने श्री दफ्तरी की आपत्ति और गोडसे को न बोलने देने की अनुमति को खारिज किया और नाथूराम गोडसे को अपना बयान पढ़ने की अनुमति दी।
अगले दिन, प्रेस के पास बयान के कुछ अंश थे। दोनों वर्ग बुद्धिवादी थे- चाहे वकील, चाहे प्रेस। अब तक अँधेरे में रह रही जनता को भी गोडसे के इस कृत्य और कारणों का पता चल चुका था। उन्हें यह भी पता चला कि नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या के आरोप से इनकार भी नहीं किया।
उस समय पं. नेहरू प्रधानमंत्री थे। उनके आदेशों के तहत कुछ राज्यों में आंशिक, कुछ राज्यों में गोडसे के वक्तव्य को प्रकाशित करने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह देखा जा सकता था कि जून 1949 में शिमला के हाई कोर्ट में नाथूराम गोडसे द्वारा अपनी दलीलें और वक्तव्य पूरा सार्वजनिक करने तक सरकार इतनी सजग और सचेत हो चुकी थी कि जैसे ही न्यायाधीश अपने कक्ष में आए, पुलिस ने पत्रकारों पर झपट्टा मारा, उनसे उनकी कॉपियाँ छीन लीं और उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर दिया। पुलिसवालों ने तथ्यों की जाँच में लगे लोगों को भी जान से मारने की धमकी दी।
अदालत में नाथूराम गोडसे द्वारा दिए गए बयान पर लगातार मुकदमा चल रहा था। यह बयान अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था, जिस भाषा में गोडसे ने न्यायालय के समक्ष अपनी बात पेश की थी और जिसके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
दुनिया भर के लोग गांधी की मृत्यु के प्रकरण से जुड़े लोगों के बारे में जानने को उत्सुक थे। वे आश्चर्य करते थे कि वे किस प्रकार के महान् पुरुष रहे होंगे! कुछ 'प्रतिष्ठित' लेखकों ने इस विषय पर लेखन कार्य में रुचि ली। लेकिन ऐसा करने में उन्होंने विषय-सामग्री को विकृत किया, झूठ को सच बनाकर प्रस्तुत किया। सामग्री के सार में दुर्भावनापूर्ण व्यंग्य दिखाई पड़ता है। उन साहित्यकारों के तथाकथित साहित्य में द्वेष और दुर्गंधपूर्ण अंतर्दृष्टि का परिचय मिलता है। उन्होंने पाठकों को खुश करने के लिए इतिहास को घटिया और सनसनीखेज बनाने का प्रयास किया।
यही नहीं, प्रामाणिक बयान से स्पष्ट हो जाएगा कि आपकी छवि खराब करने के लिए कुछ लेखकों ने संदेह का माहौल पैदा किया और आपके वक्तव्य को लेकर गलत और बेईमानी से भरे संस्करण प्रकाशित करने का प्रयास किया। पाठक गोडसे के प्रामाणिक बयान को पढ़कर विशुद्ध तथ्यों का अपना आकलन कर सकते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। मैं स्वयं नाथूराम के बयान को उद्धृत करता हूँ। ईमानदार इतिहासकार मेरे कार्य पर विचार करेंगे और भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्य जान पाएँगे।
कानून मरणासन्न या मृत्यु के करीब व्यक्ति के बयान को एक विशेष प्रकार की पवित्रता का दर्जा देता है, सम्मान देता है। नाथूराम गोडसे ने जिन परिस्थितियों में यह कार्य किया, वह भी देश के प्रति किसी पवित्र कृत्य से कम नहीं।
लेखक (गोपाल गोडसे) नाथूराम गोडसे के छोटे भाई हैं और गांधी हत्याकांड में भी आरोपी थे। उन्हें साजिश का दोषी पाया गया और आजीवन निर्वासन की सजा सुनाई गई। उन्हें अक्तूबर 1964 में जेल से रिहा कर दिया गया, लेकिन एक महीने बाद भारतीय रक्षा अधिनियम के तहत दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और एक वर्ष से अधिक समय तक जेल में रहे। अंततः 1965 के उत्तरार्ध में उन्हें रिहा कर दिया गया।
इस पुस्तक में लाल किले की सुनवाई के दौरान नाथूराम विनायक गोडसे के बयान को संपूर्ण रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इससे पहले, घटनाओं का परिचय, जाँच का विवरण और विशेष अदालत के गठन का भी विवरण है। यह विवरण संपूर्ण कानूनी प्रक्रिया, जिसमें मुकदमा, अपील और पूरा घटनाक्रम सम्मिलित है, जो 15 नवंबर, 1949 को नाथूराम और आप्टे को फाँसी हो जाने के बाद प्रस्तुत किया गया।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मैंने गांधी को क्यों मारा | Maine Gandhi Ko Kyun Mara? |
Author: | Nathuram Godse |
Total pages: | 137 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 3 ~ MB |
Download Status: | Available |

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